8 महीनों बाद सरकार ने MSP औऱ जीरो बज़ट खेती पर कमेटी तो गठित कर दी, लेकिन किसान मोर्चे की नाराजगी बदस्तूर जारी

न्यूनतम समर्थन मूल्य और जीरो बजट खेती को लेकर आखिरकार 8  महीने बाद भारत सरकार ने कमेटी गठित कर दी.  लेकिन इस कमेटी में रखे सदस्यों और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी का जिक्र न होने के चलते संयुक्त किसान मोर्चे ने अपने को इस कमेटी से बाहर रखने का फैसला किया है.

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सरकार द्वारा गठित कमेटी पर किसानों की नाराजगी जारी

नई दिल्ली:

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और जीरो बजट खेती (Zero Budget Farming)  को लेकर आखिरकार 8  महीने बाद भारत सरकार ने कमेटी गठित कर दी.  लेकिन इस कमेटी में रखे सदस्यों और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानूनी गारंटी का जिक्र न होने के चलते संयुक्त किसान मोर्चे ने अपने को इस कमेटी से बाहर रखने का फैसला किया है. किसानों के रूख को देखकर ऐसा लग रहा है मानों फिर से एकबार सरकार और संयुक्त किसान मोर्चा आमने सामने हैं.

सोमवार देर शाम को भारत सरकार ने एक गजट (Gazette) के ज़रिए जीरो बजट खेती, MSP के पारदर्शी निर्धारण और फसल प्रणाली पर एक बड़ी कमेटी गठित करने की शुरुआत कर दी है. गजट नोटिफीकेशन के मुताबिक पूर्व कृषि सचिव ( Agriculture Secretary) संजय अग्रवाल को इस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया है. इसके अलावा दो दर्जन से ज्यादा कृषि अर्थशास्त्री समेत तमाम किसान संगठनों के लोगों को शामिल किया गया है.

बहरहाल, किसान संघर्ष समिति के ज्यादातर धड़े को इस कमेटी की कई बातों पर आपत्ति है. उनकी पहली आपत्ति इस कमेटी के अध्यक्ष संजय अग्रवाल को लेकर ही है. उनका कहना है कि पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल ने ही तीन कृषि कानून बनाए थे. किसानों के इस गुट का कहना है कि समिति के गठन नोटिफिकेशन में MSP को कानूनी अधिकार देने का ज़िक्र नहीं है. साथ ही कमेटी में शामिल ज्यादातर लोग सरकार के हैं या उनके पक्ष में रहने वाले हैं. इतना ही नहीं, किसान संयुक्त मोर्चे से केवल तीन नाम मांगे गए. किसानों का कहना है कि इस कमेटी में बहुमत के आधार पर फैसले लेते वक्त सरकार की तरफ सदस्यों का झुकाव रहेगा.

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यही वजह है कि योगेंद्र यादव (Yogendra Yadav),  राकेश टिकैत ( Rakesh Tikait) जैसे प्रमुख धड़े इसमें शामिल न होने की बात कह रहे हैं. भारतीय किसान यूनियन ( Bhartiya Kisan Union)  के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा,”इस कमेटी में हम अपना कोई सदस्य नहीं भेजेंगे. इसमें सब सरकारी के नजदीकी है. इसमें काले बिल का ड्राफ्ट बनाने वाले को ही अध्यक्ष बना दिया गया है. ये क्या किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य देंगे ?

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इसके विपरीत बीजेपी समर्थित भारतीय किसान संघ ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. कमेटी में शामिल भारतीय किसान संघ के प्रमोद कुमार चौधरी ने सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है. संयुक्त किसान मोर्चे के न शामिल होने पर उन्होंने कहा कि सबको अपनी बात रखने का अधिकार है.

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उधर इस विषय पर राजनीति भी गरमा गई है. आम आदमी पार्टी के राघव चड्ढा ने आरोप लगाया है कि इस कमेटी में पंजाब का प्रतिनिधित्व नहीं है. आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने कहा,” भारत का फूड बास्केट कहलाने वाले पंजाब को इस कमेटी से बाहर रखा गया है. बड़े दुख की बात है.”

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किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए नवंबर महीने में प्रधानमंत्री ने कमेटी बनाने का आश्वासन दिया था. अब 8 महीने बाद जब कमेटी बनी है तो एक महत्वपूर्ण किसान संगठन ने उसका बहिष्कार करने का फैसला कर दिया है. इतना ही नहीं, भारतीय किसान मोर्चा (Bhartiya Kisan Morcha) ने 31 जुलाई को देश भर में न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून को लागू करवाने के मुद्दे पर प्रदर्शन करने का फैसला ले रखा है. जाहिर है कि किसान संगठन अब फिर से इस विषय पर सरकार को घेरने की रणनीति बना रहे हैं. देखना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार कैसे नाराज किसान संगठनों को मनाती है.