''मैं तो आ गया लेकिन वहां के लोगों की चिंता है'' : कोलकाता के अजहर हक ने शेयर किया अफगानिस्‍तान का अनुभव

अजहर के अनुसार, स्‍थानीय लोगों ने खाने सहित हर बात में उनकी बहुत मदद की. बाहर सिचुएशन बहुत खराब थी.

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अजहर हक पिछले 25 माह से अफगानिस्‍तान में रहकर एजुकेशन पर काम कर रहे थे

नई दिल्‍ली:

Afghanistan crisis: अफगानिस्‍तान में जब तालिबान (Taliban) का नियंत्रण हुआ, कोलकाता निवासी अजहर हक (Azhar Haq)उस समय इसी मुल्‍क में थे. NDTV से बातचीत में उन्‍होंने उस समय के अनुभव साझा किया.अजहर 25 माह से काबुल में एजुकेशन पर काम कर हो. बातचीत के दौरान उन्‍होंने बताया कि अफगानिस्‍तान में  इतनी जल्‍दी हालात खराब हो जाएंगे, इसका अहसास नहीं था. उन्‍होंने कहा किअफगानिस्‍तान पर तालिबान के कब्‍जे के बाद के दिन तनाव में गुजरे हालांकि स्‍थानीय लोगों में काफी मदद की.  लंदन स्‍कूल ऑफ इकोनोमिक्‍स के एलुमनीअजहर ने कहा, 'मैं तो अफगानिस्‍तान से निकल आया लेकिन जब वहां के लोग बोलते हैं हमें यहां से निकालिए, हमे मदद चाहिए तो दिल भर आता है. उन्‍होंने कहा, 'मैं तो आ गया लेकिन वहां के लोगों की चिंता है. ' '

अजहर हक ने बताया, 'मैं 25 महीनों से अफ़ग़ानिस्तान में था. वहां गांव-गांव जाकर एजुकेशन खासकर महिला एजुकेशन पर काम करता था. महिलाओं का बच्चों का वहां बहुत पार्टिसिपेशन हैकोई भी डेवलेपमेंट हो लोग वहां बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं. मुझे वहां कोई तकलीफ़ नहीं हुई.' मूल रूप से बंगाल के कोलकाता शहर के रहने वाले अजहर ने बताया, 'मैं जलालाबाद शहर गया था. कुछ खबरें मिल रही थीं कि सिचुएशन खराब हो रही है, लेकिन ये नहीं पता था कि इतनी जल्दी सिचुएशन खराब हो जाएगी.मैंने 15 तारीख़ को फ्लाइट बुक की थी.15 की मिस हो गई फिर 16 को भी नहीं मिली. काबुल एयरपोर्ट का मंजर बयां करते हुए उन्‍होंने बताया, 8-10 हज़ार लोग वहां मौजूद थे. सबको एक उम्मीद थी कि लोग वहां से निकल जाएं लेकिन फ़्लाइट नहीं मिली तो एक हफ़्ता काबुल में रहा. वैसे मुझे भरोसा था कि लोकल लोग सपोर्ट करेंगे. 

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अजहर के अनुसार, स्‍थानीय लोगों ने खाने सहित हर बात में उनकी बहुत मदद की. बाहर सिचुएशन बहुत खराब थी. इंटरनेट बंद होने का डर लगा रहता था. तीन दिन के बाद मुझे मौका मिला और यूएन की ओर से निकाला. उन्‍होंने कहा कि उस समय  दिल टूटता है कि जब वहां के लोग बोलते हैं कि हमें यहां से निकालिए, हमें मदद चाहिए. जो मुश्किलों में हैं वो अब भी है. मैं तो यहां आ गया लेकिन वहां के लोगों की चिंता है. 
 

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