मेरा मकसद लोगों को शिक्षा के प्रति जागरूक करना है : मनीष सिसोदिया

मनीष सिसोदिया ने कहा कि चीन की प्रणाली मां-बाप से भी मेहनत कराता है. हर अभिभावक को बच्चे की पढ़ाई पर रोज 10 मैसेज मिलते हैं. मेहनत, कंडक्ट, क्लास परफॉर्मेंस की जानकारी दी जाती है. चीन की शिक्षा प्रणाली हर बच्चे को एक ही मंत्र देती है कि मेहनत ही लाइफ स्टाइल है. स्कूल से निकल कर बच्चे सरकारी नौकरी की लाइन में नहीं लगते. वे दुनिया के बाजारों में धाक जमाते हैं.

विज्ञापन
Read Time: 5 mins

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और दिल्ली में शिक्षा क्रांति के जनक पूर्व शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने शुक्रवार को भारत की शिक्षा व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने के उद्देश्य से एक बड़ी पहल की शुरूआत की. उन्होंने “दुनिया की शिक्षा व्यवस्था और भारत” वीडियो सीरीज की शुरूआत की है, जिसका मकसद देश की जनता को शिक्षा के प्रति जागकरूक करना है, ताकि वह जैसी शिक्षा अपने बच्चों को देना चाहते हैं, वैसे ही नेताओं का चुनाव कर सकें. अपने पहले एपिसोड में मनीष सिसोदिया ने जापान, सिंगापुर, चीन, कनाडा, फिनलैंड के विकसित होने में शिक्षा के महत्व को बताया है. उन्होंने कहा कि भारत की आजादी के 18 साल बाद आजाद हुआ सिंगापुर आज शानदार शिक्षा के दम पर सबसे अमीर देशों में शामिल है. भारत तब बदलेगा, जब शिक्षा बदलेगी और शिक्षा तब बदलेगी, जब हमारे नेताओं की सोच बदलेगी. इसलिए अगर नेताओं की सोच न बदले तो नेता बदल दो.

मनीष सिसोदिया कहा कि कुछ दिन पहले मेरी और एआई ग्रॉक की शिक्षा पर दिलचस्प बातचीत हुई. लाखों लोग हमारी चैट पढ़ रहे थे. लोग सवाल पूछ रहे थे. सुझाव दे रहे थे. लोगों को यह जानने की उत्सुकता थी कि दुनिया की शिक्षा प्रणाली क्या है? कैसी है? भारत इसके सामने कहां खड़ा है? इस रुचि को देखकर मैं एक सीरीज शुरू कर रहा हूं, “दुनिया की शिक्षा व्यवस्था और भारत.” पहले एपिसोड में पांच देश, पांच कहानियां. सवाल एक है कि भारत की शिक्षा दुनिया के मुकाबले कहां खड़ी है? 

मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज से करीब 150 साल पहले, 1872 में जापान ने कानून बनाया कि हर बच्चे को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है. यह हमने 2011 में “शिक्षा का अधिकार” से किया. जापान की शिक्षा ने वहां के हर इंसान को मजबूत बनाया कि परमाणु हमले से तबाह होने के बाद भी वे तेजी से खड़े हुए. अपनी शिक्षा, टेक्नोलॉजी, कैमरा, कार, रोबोट, रिसर्च से 20-25 साल में फिर टेक्नोलॉजी के बादशाह बने. उन्होंने कहा कि हम आजादी के आठवें दशक में उत्तीर्ण प्रतिशत (पासिंग परसेंटेज) का जश्न मना रहे हैं. सोचने की बात है कि जापान के स्कूलों में बच्चे “मैं” नहीं, “हम” सीखते हैं. पढ़ाई टीमवर्क से शुरू होती है. जिम्मेदारी और देशभक्ति किताबों में नहीं, दिनचर्या में शुरू होती है. जापान के स्कूलों में कोई सफाई कर्मचारी नहीं होता. बच्चे अपनी क्लास, टॉयलेट, कॉरिडोर साफ करते हैं. जापान ने शिक्षा से राष्ट्रीय चरित्र गढ़ा.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि भारत की आजादी के 18 साल 1965 में सिंगापुर आजाद हुआ. आजादी के समय उनके पहले प्रधानमंत्री ली कुआन यू रो पड़े, क्योंकि सिंगापुर के पास न जमीन थी, न पानी, न खनिज, न संसाधन, न पैसा. दिल्ली-मुंबई की झुग्गियों जैसे हालात थे. लेकिन उनके पहले नेता व प्रधानमंत्री ने कहा, हमारे पास बच्चे हैं. हम उन्हें शानदार शिक्षा देंगे. उनके दम पर एक नया सिंगापुर खड़ा होगा और यही हुआ. सिंगापुर में इंजीनियर से सफाई कर्मचारी तक सभी को शानदार शिक्षा मिलती है. सफाई कर्मचारी को भी उतनी ही गुणवत्ता की ट्रेनिंग मिलती है, जितनी इंजीनियर को. सिंगापुर ने हर बच्चे को शिक्षा के लिए सब किया. जीरो संसाधनों से सिंगापुर दुनिया के सबसे अमीर देशों में शामिल हो गया है. 


मनीष सिसोदिया ने कहा कि चीन की प्रणाली मां-बाप से भी मेहनत कराता है. हर अभिभावक को बच्चे की पढ़ाई पर रोज 10 मैसेज मिलते हैं. मेहनत, कंडक्ट, क्लास परफॉर्मेंस की जानकारी दी जाती है. चीन की शिक्षा प्रणाली हर बच्चे को एक ही मंत्र देती है कि मेहनत ही लाइफ स्टाइल है. स्कूल से निकल कर बच्चे सरकारी नौकरी की लाइन में नहीं लगते. वे दुनिया के बाजारों में धाक जमाते हैं.

मनीष सिसोदिया ने कहा कि कनाडा के स्कूलों में 100 से ज्यादा भाषाएं बोली जाती हैं. बच्चे हर देश, नस्ल, संस्कृति, धर्म से आते हैं. कनाडा इस विभिन्नता से डरता नहीं. इसे अवसर मानता है. कनाडा की संसद शिक्षा के लक्ष्य तय करती है. हर उम्र तक बच्चे में कौन सी योग्यता होनी चाहिए, यह संसद तय करती है. स्कूल पाठ्यक्रम में तो विशेषज्ञ बनाते ही हैं, साथ ही लीडरशिप, प्रेजेंटेशन, कम्युनिकेशन, विजन बिल्डिंग, स्ट्रैटेजिक प्लानिंग, कम्युनिटी बिल्डिंग सिखाते हैं. भारत में ये एक्स्ट्रा करिकुलर माने जाते हैं. कनाडा में ये मेन करिकुलम का हिस्सा हैं. इसीलिए कनाडा शिक्षा में लीडर है.

Advertisement

मनीष सिसोदिया ने कहा कि 200 से ज्यादा मीटिंग्स हुईं. सभी प्राइवेट स्कूल सरकारी कर दिए गए. यह नियम लागू कर दिया गया कि 7 साल की उम्र से असली पढ़ाई शुरू होगी. इससे पहले बच्चा खेलेगा, कूदेगा और समझेगा, लेकिन एबीसीडी या नंबर नहीं सीखेगा. वहां सोचने, समझने, बात करने की शैली सिखाई जाती हैं. फिनलैंड में स्कूल इंस्पेक्टर नहीं हैं. सरकार टीचर्स की ट्रेनिंग पर खर्च करती है. उन्हें अपने टीचर्स पर भरोसा है. फिनलैंड में टीचर बनना सबसे मुश्किल है. टीचर यूनिवर्सिटी में दाखिला आईआईटी, आईआईएम से भी कठिन है. 5 साल की कठिन पढ़ाई करनी पड़ती है. यही फिनलैंड, सिंगापुर, कनाडा, चीन को शिक्षा में आगे ले गया. 

मनीष सिसोदिया ने कहा कि अब सवाल है कि भारत कौन सा मॉडल अपनाएगा? क्या हम टीचर्स पर भरोसा कर सकते हैं? क्या हम शिक्षा पर खर्च कर सकते हैं? क्या प्राइवेट स्कूलों की असमानता खत्म कर सकते हैं? हमें जापान या सिंगापुर की नकल नहीं करनी. हम भारत हैं. हमारी जरूरतें, जमीनी सच्चाइयां अलग हैं. देश तब बदलेगा, जब शिक्षा बदलेगी. शिक्षा तब बदलेगी, जब नेताओं की सोच बदलेगी. अगर नेताओं की सोच न बदले, तो नेता बदल दो. यह भारतीय होने के नाते हमारा काम है. हम अपने बच्चों के लिए जैसी शिक्षा चाहते हैं, वैसा नेता चुनें. 

Advertisement
Featured Video Of The Day
Owaisi के 'सिर्फ मुसलमानों का एनकाउंटर' वाले बयान पर EX DGP Prashant Kumar का जवाब सुनिए
Topics mentioned in this article