अपशिष्ट जल की निगरानी से 2 हफ्ते पहले ही कोविड-19 के संभावित प्रकोप का पता लग सकता है

स्वीडन स्थित केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर प्रसून भट्टाचार्य भी इससे सहमति जताते हैं कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी को रोकने के उपाय में अपशिष्ट जल निगरानी को शामिल किया जाना चाहिए.

विज्ञापन
Read Time: 20 mins
अध्ययन के दौरान कुल 43 नमूनों में से 40 नमूने संक्रमित मिले. (सांकेतिक तस्वीर)
नई दिल्ली:

अपशिष्ट जल की निगरानी करने से अधिकारियों को दो हफ्ते पहले ही कोविड-19 (Covid-19) के मामलों में होने वाली संभावित वृद्धि का पता लग सकता है. यह दावा भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) गांधीनगर के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में किया है. इस अनुसंधान टीम में गुजरात जैवप्रौद्योगिकी अनुसंधान केंद्र (GBRC) के वैज्ञानिक भी शामिल थे और उन्होंने अध्ययन के दौरान गांधीनगर में अपशिष्ट जल में सार्स-सीओवी-2 (कोरोना वायरस) की अनुवांशिकी सामग्री और कोविड-19 के मामलों के बीच संबंध का पता लगाने की कोशिश की. इस दौरान उन्होंने पाया कि अपशिष्ट जल की निगरानी बीमारी की पहले ही चेतावनी देने में कारगर हो सकती है.

आईआईटी गांधीनगर में पृथ्वी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर एवं अनुसंधान का नेतृत्व करने वाले मनीष कुमार ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘ यह भारत में साप्ताहिक निगरानी के आधार पर पहला सबूत है कि अपशिष्ट जल की निगरानी से कोविड-19 की पूर्व में ही चेतावनी दी जा सकती है.'' उन्होंने कहा, ‘‘नतीजे बहुत ही उत्साहजनक है और हम इसे अधिकारियों से साझा करने की योजना बना रहे हैं.'' प्रोफेसर कुमार ने कहा कि यह वक्त की जरूरत है कि अधिकारी कोविड-19 महामारी से निपटने की नीति में अपशिष्ट जल निगरानी को भी शामिल करें.

कोरोना वायरस के यूके स्ट्रेन के सामने आए 13 नए मामले, कुल मरीजों की संख्या हुई 71

स्वीडन स्थित केटीएच रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर प्रसून भट्टाचार्य भी इससे सहमति जताते हैं कि भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोविड-19 महामारी को रोकने के उपाय में अपशिष्ट जल निगरानी को शामिल किया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि इस अध्ययन को गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी) की साझेदारी में किया गया और अध्ययन जर्नल इनवायरमेंटल रिसर्च की समीक्षाधीन है.

Advertisement

यह अनुसंधान पिछले साल मई में अहमदाबाद में किए गए अध्ययन पर आधारित है जिसके तहत अनुसंधान दल ने भारत में पहली बार अपशिष्ट जल में सफलतापूर्वक कोरोना वायरस के होने का पता लगाया था. नवीनतम अध्ययन में अनुसंधान दल ने गत वर्ष सात अगस्त से 30 सितंबर के बीच चार अपशिष्ट जल शोधन इकाइयों से लिए गए 43 नमूनों में सार्स-सीओवी-2 आरएनए (अनुवांशिकी सामग्री) का विश्लेषण किया. अध्ययन के दौरान सप्ताह में दो बार नूमने एकत्र किए जाते थे और यह प्रक्रिया दो महीने तक चली. अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक सार्स-सीओवी-2 के तीन जीन पर गौर किया गया और इनमें से दो या सभी की उपस्थिति की सूरत में नमूने को पॉजिटिव माना गया.

Advertisement

Coronavirus India Updates: भारत में कोरोना के यूके स्ट्रेन से संक्रमित 2 और मरीज आए सामने

अध्ययन के दौरान कुल 43 नमूनों में से 40 नमूने संक्रमित मिले. इसके बाद इन नमूनों और संक्रमण के आधिकारिक आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया और देखा गया कि इससे अपशिष्ट जल के नमूनों में वायरस के अंश के संघनन में कितना बदलाव हो रहा है. नॉट्रेडम विश्वविद्यालय के एरोल बिविन्स ने कहा, ‘‘हमे अपशिष्ट जल में सार्स-सीओवी-2 के जीन पहले मिले इसके बाद मरीजों में संक्रमण के लक्षण सामने आए.'' अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि बड़े इलाके के अपशिष्ट जल शोधन इकाइयों से एकत्र नमूनों की जांच कर और उनमें आरएनए के स्तर से इलाके में लोगों के बीच संक्रमण का स्तर पता चल सकता है.

Advertisement

Video: कोविड-19 टीकाकरण से जुड़े हर सवाल का जवाब

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
Featured Video Of The Day
Rajkummar Rao ने शादी में क्यों लगाया लड़की की तरह सिंदूर? | NDTV India
Topics mentioned in this article