ऐसे समय जब दूसरी लहर में बेंगलुरू में बड़ी संख्या में लोगों की कोरोना के कारण मौत हो रही है, सबसे बड़ी समस्या इस संक्रमण के कारण जान गंवाने वाले लोगों को 'अंतिम संस्कार' की है. कोरोना प्रोटोकाल के पालन की इस समय जरूरत होती है और कई बार इस स्थिति में परिवार के सदस्य खुद भी कोरोना पॉजिटिव होते हैं. ‘Here I Am' विभिन्न धर्मों को मानने वाले ऐसे कार्यकर्ताओं का ग्रुप है जो कोरोना प्रभावितों के दफनाने/अंतिम संस्कार के लिए Bangalore Archdiocese के अंतर्गत टीम बनाता है. निकोल सामाजिक कार्यकर्ता है जबकि उसकी कजिन टीना चेरियन फाइनल ईयर की मेडिकल स्टूडेंट. ये युवा महिलाएं इस समय बेंगलुरू में दिन के कई घंटे कब्रिस्तान (cemetery) में बिताती हैं.
सेंट जोसेफ आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज में पढ़ने वाली निकोल ने NDTV को बताया, 'ऐसी मदद करके मुझे अच्छा महसूस होता है और इसके लिए मुझे परिवार का पूरा समर्थन हासिल है, इससे ही हमारे लिए हर दिन इतनी अधिक संख्या में शव को 'देख पाना' संभव हो पाता है. मुझे नहीं लगता कि हमारे लड़की होने से इसमें कोई फर्क पड़ता है. हां, हम युवा हैं लेकिन सवाल यह है कि अभी नहीं तो कब?' टीना बताती है, 'एंबुलेंस गेट पर आती है और हम शवों को स्ट्रेचर पर या ताबूत में ही कब्र तक पहुंचाते हैं. हम ताबूत को कब्र तक ले जाकर उतारते हैं और फिर चले जाते हैं. यदि उन्हें प्रेयर सर्विस की जरूरत होती है तो हमारे पास कुछ पादरी (Fathers) हैं, वे यह काम करते हैं. यह अपने आप में संतोष देने वाला काम है क्योंकि इन परिवारों की मदद करने वाला कोई नहीं है.'
बेंगलुरू शहर में कोरोना महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुर्ह हैं. ऐसे में ‘Here I Am' ग्रुप, पहली लहर से लेकर अब तक करीब 1400 अंतिम संस्कार में मदद कर चुका है, इसमें से 800 पिछले माह यानी मई में ही थे जब दूसरी लहर अपने मारक रूप में थी. ‘Here I Am' ग्रुप के असिस्टेंड डायरेक्टर, फादर राजेश ने NDTV को बताया, 'हमारे पास 60 से 70 कार्यकर्ता हैं जो चार जोन में विभाजित किए गए हैं. ये विभिन्न कब्रिस्तान में तैनात हैं. ये शव की पैकिंग और हॉस्पिटल या घर से शव को कलेक्ट करने जैसे काम देखते हैं. हम शवों को पैक करके कब्रिस्तान पहुंचाते हैं. हम फ्री एंबुलेंस सेवा भी उपलब्ध करा रहे हैं. यही नहीं, यदि कोई बहुत गरीब है तो हम उन्हें ताबूत उपलब्ध कराने की भी कोशिश करते हैं और कब्र खोदने वाले को भी भुगतान करते हैं.' उनका मानना है कि कोविड गाइडलाइन के तहत दफन करने की प्रक्रिया से परिजनों को संतुष्ट करना मुश्किल होता है. हम परिवार को सांत्वना प्रदान करते है कि ऐसे मुश्किल वक्त में हम आपके साथ हैं.' उन्होंने कहा कि हम इन लोगों के बोझ भी कम करते हैं क्योंकि कई बार जब किसी परिवार के सदस्य की मृत्यु हो जाती है और यदि इस परिवार के अन्य लोग भी पॉजिटिव हैं तो वे घर के बाहर नहीं निकल सकते. ऐसे में उन्हें पता नहीं होता कि अंतिम संस्कार/दफनाने का इंतजाम किस तरह से किया जाए. हम यह जिम्मेदारी लेते हैं और हर जरूरी चीज करके ऐसा उचित अंतिम संस्कार करते हैं ताकि वे संतुष्ट हो सकें. कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग देने के लिए ग्रुप ने बेंगलुरू में कोविड अंत्येष्टि (funerals) में मदद करने वाले Mercy Angels के काम का अनुसरण किया है.
‘Here I Am' ग्रुप के डायरेक्टर संतोष रोयान कहते हैं, 'हम पीपीई (Personal Protection Equipment) किट को लेकर ट्रेनिंग देते हैं, शव को किस तरह छूना है और दूरी को किस तरह बनाकर रखना है. हमारा एक सेंट्रलाइज्ड नंबर है और केवल क्रिस्चियन (ईसाई) ही नहीं, कोई भी हमें इस नंबर पर कॉल कर सकता है ' ग्रुप कड़ी मेहनत करके इस उद्देश्य पर खरा उतरने की पूरी कोशिश कर रहा है कि 'सम्मानजनक जीवन हर इंसान का मूलभूत अधिकार है तो गरिमापूर्ण मौत भी हर किसी का अधिकार है. '
लॉटोलैंड आज का सितारा श्रृंखला में हम साधारण नागरिकों और उनके असाधारण कार्यों को दिखाते हैं. 'Here I Am' को सहयोग देते हुए लॉटोलैंड उन्हें 1 लाख रुपये का नकद प्रोत्साहन देगा.