तेलंगाना में शुक्रवार को तीन बड़े नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर किया. आत्मसमर्पण करने वाले इन तीनों नक्सलियों के सिर पर 20-20 लाख रुपए का इनाम रखा था. इन तीन में दो तीन दशक से अधिक समय से अंडरग्राउंड थे. जबकि तीसरी महिला नक्सली 21 साल से भूमिगत जीवन जी रही थी. ये तीनों प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) की राज्य समिति के वरिष्ठ सदस्य थे. शुक्रवार को हैदराबाद में तेलंगाना के पुलिस महानिदेशक (DGP) बी. शिवधर रेड्डी के सामने इन्होंने सरेंडर किया.इन तीनों का सरेंडर राज्य की माओवादी-विरोधी रणनीति में एक बड़ी सफलता मानी जा रही है. आत्मसमर्पण करने वाले नेताओं में सिद्दीपेट जिले के मूल निवासी कुंकटी वेंकटैया उर्फ रमेश उर्फ विकास (52) शामिल हैं, जो 36 साल से अंडरग्राउंड था.
- कुंकटी वेंकटैया दंडकारण्य विशेष क्षेत्रीय समिति (DKSZC) के अंतर्गत दक्षिण बस्तर संभागीय समिति (DVC) के प्रभारी था.
- इसके अलावा हनुमानकोंडा जिले का मूल निवासी मोगिलिचेरला वेंकटराजू उर्फ राजू उर्फ चंदू (45) 35 साल से भूमिगत था. वह DKSZC में चेतना नाट्य मंच (CNM) का प्रभारी था.
- जबकि तीसरी नक्सली छत्तीसगढ़ की मूल निवासी थोडेम गंगा उर्फ गंगव्वा उर्फ सोनी (42) 21 साल तक भूमिगत रहे और दक्षिण बस्तर डीवीसी में जनताना सरकार के प्रभारी थी. बताया गया ये तीनों तीनों ही भाकपा (माओवादी) संरचना के प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने सशस्त्र संघर्ष में दशकों बिताए थे.
इन माओवादियों के सरेंडर पर NDTV से विशेष बातचीत में डीजीपी बी. शिवधर रेड्डी ने कहा कि इनका सरेंडर माओवादी आंदोलन के लिए एक बड़ा झटका हैं और यह माओवादी कार्यकर्ताओं में इस बढ़ती हुई समझ को दर्शाता है कि यह विचारधारा अब प्रासंगिक नहीं रही. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि पार्टी अपने सशस्त्र संघर्ष से नाता तोड़ चुकी है और आंतरिक संघर्षों और वैचारिक मतभेदों से ग्रस्त है.
डीजीपी ने बताया कि सीपीआई (माओवादी) पोलित ब्यूरो सदस्य मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ सोनू ने एक महत्वपूर्ण बयान जारी कर स्वीकार किया है कि पार्टी अपनी राह से भटक गई है. डीजीपी ने पोलित ब्यूरो सदस्य के बयान को "महत्वपूर्ण" बताया, क्योंकि वह संभवतः माओवादी पार्टी का नेतृत्व कर सकते थे, और कहा कि यह चरमपंथी समूह में बदली हुई सोच को दर्शाता है.
डीजीपी ने आगे बताया कि 2025 में अभी तक 412 माओवादियों ने तेलंगाना पुलिस के सामने आत्मसमर्पण किया है. उन्होंने बताया कि इनमें से लगभग 90% आत्मसमर्पण छत्तीसगढ़ के माओवादियों ने किए हैं, जो दर्शाता है कि तेलंगाना नीति का राज्य की सीमाओं पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है.
डीजीपी ने इतनी अधिक संख्या में माओवादियों के सरेंडर के पीछे राज्य की आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति को जिम्मेदार बताया, जो 1991 से लागू है और जिसका अन्य राज्यों ने भी अनुसरण किया है, और अंतर-राज्यीय सीमा पर ऑपरेशन कर तीव्र उग्रवाद-रोधी अभियान रोके.
20-20 लाख की इनामी राशि के साथ मिलेंगी कई अन्य सुविधाएं
डीजीपी रेड्डी ने कहा, "हम सक्रिय रूप से आत्मसमर्पण को प्रोत्साहित करते हैं, और ज़्यादा से ज़्यादा लोग आत्मसमर्पण करने के संकेत भेज रहे हैं." उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार उन्हें सभी लाभ प्रदान करेगी, जिसमें इस मामले में डिमांड ड्राफ्ट के माध्यम से दिए जाने वाले 20-20 लाख रुपये के नकद इनाम सहित, उन्हें "सम्मान और सुरक्षा के साथ अपना जीवन फिर से बनाने" में मदद करना शामिल है.
डीजीपी ने बताया कि इन तीनों को इनामी राशि के साथ-साथ पुनर्वास के लिए कई अन्य सुविधाएं मिलेंगी. तेलंगाना की सरेंडर नीति के तहत इन तीनों को सम्मानपूर्वक सामाजिक जीवन का पूरा मौका दिया जाएगा.
डीजीपी शिवधर रेड्डी ने उम्मीद जताई कि यह रुझान जारी रहेगा. उन्होंने विश्वास के साथ कहा, "माओवादी उग्रवाद निश्चित रूप से कम हो रहा है. हमें निकट भविष्य में और अधिक आत्मसमर्पण की उम्मीद है, और तेलंगाना में माओवादियों के फिर से संगठित होने की कोई संभावना नहीं है."
डीजीपी शिवधर रेड्डी ने उम्मीद जताई कि यह रुझान जारी रहेगा. उन्होंने पूरे विश्वास के साथ कहा, "माओवादी उग्रवाद निश्चित रूप से कम हो रहा है. हमें निकट भविष्य में और अधिक आत्मसमर्पण की उम्मीद है, और तेलंगाना में माओवादियों के फिर से संगठित होने की कोई संभावना नहीं है."