"2023 आंदोलन का साल होगा, हिंदू-मुस्लिम सियासत की एक्सपायरी डेट आ चुकी" : RJD नेता मनोज झा

2024 के चुनाव पर मनोझ झा ने कहा कि ये चुनाव बिल्कुल अलग किस्म का चुनाव होगा. अब लोग व्यक्ति बनाम व्यक्ति नहीं चाहते हैं.

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कांग्रेस की 'भारत जोड़ो' यात्रा पर मनोज झा ने कहा कि देश में इस तरह की यात्राओं की बहुत जरूरत है.

नई दिल्ली:

राष्ट्रीय जनता दल के नेता मनोझ झा का कहना है कि साल 2023 आंदोलन का रहेगा. एनडीटीवी से खास बातचीत करते हुए कहा कि उन्होंने कहा कि अब हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद की सियासत की एक्सपायरी डेट आ चुकी है. उन्होंने कहा कि अगर सरकार ऐसे ही अपने नीतिगत फैसले लेती रही, विज्ञापनों से अपनी असफलाओं तो छुपाती रही, संसदीय लोकतंत्र को दबाती रही, विरोध में उठे स्वर को देशद्रोही करार देते रहे तो यकीन मानिए 2023 आंदोलन का साल होगा. लोग संसद के भरोसे अपने सरोकार को नहीं छोड़ेंगे. 

2022 की सबसे बड़ी सियासी घटना कौनसी है, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि इस साल जनता ने सत्ता और विपक्ष दोनों को ही संदेश दिया है कि अपनी सियासत के तौर-तरीकों को बदलना होगा. राज्यों के चुनाव में हर चुनाव का अपना एक संदेश है. हिमाचल चुनाव से एक अलग संदेश मिला है, जिसकी लोग अक्सर चर्चा नहीं करते. गुजरात में एक अलग विश्लेषण की जरूरत है कि वहां कभी भी कांग्रेस का वोट शेयर इतना कम नहीं हुआ. उसकी क्या वजह रही हैं. लेकिन जनता ने आखिरी मैसेज दिया है कि आसमानी मुद्दों पर बात नहीं होनी चाहिए. हिंदू-मुस्लिम, मंदिर-मस्जिद बहुत हो गया. 

2024 के चुनाव पर मनोझ झा ने कहा कि ये चुनाव बिल्कुल अलग किस्म का चुनाव होगा. अब लोग व्यक्ति बनाम व्यक्ति नहीं चाहते हैं. मुद्दे चाहते हैं. जो भी गठबंधन या महागठबंधन मुद्दों को विमर्श में लाएगा, रोजगार के सवाल को, सामाजिक सौहार्द के सवाल को, महंगाई के सवाल को, अभिव्यक्ति की आजादी के सवाल को उठाएगा वही जीतेगा. एक तरह से मंदिर-मुस्जिद की राजनीति की सियासत की एक्सपायरी डेट आ चुकी है. 

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कांग्रेस की 'भारत जोड़ो' यात्रा पर उन्होंने कहा कि देश में इस तरह की यात्राओं की बहुत जरूरत है. पिछले आठ वर्षों में हम बहुत टूटे हैं. किस-किस तरह के बयान आते हैं और वो लोग संसद में बैठते हैं. गोडसे को महान देशभक्त बताते हैं, छुरी को तेज करने की बात करते हैं. क्या हमने ऐसी कल्पना की थी. बंटवारे के वक्त भी हम इतना नहीं बंटे थे. मेरे हिसाब से जो भी भारत तोड़ो मानसिकता के खिलाफ एकजुट हो रहा है, मैं समझता हूं कि उसका स्वागत होना चाहिए. भाजपा में भी कई सांसद हैं, जो देश के मौजूदा हालात से खुश नहीं हैं. उन्हें अपने प्रधानमंत्री पर गर्व है, लेकिन लोकतांत्रिक तरीकों का अभाव उन्हें कष्ट पहुंचाता है.

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