मौसम विभाग ने मंगलवार को बताया है कि इस साल देश में मॉनसून सामान्य रहने का अनुमान है. लेकिन विभाग ने यह भी कहा कि मॉनसून सीज़न के दूसरे भाग में अल नीनो का असर दिख सकता है. हालांकि मौसम विभाग का कहना है कि सभी अल नीनो साल खराब मॉनसून वाले साल नहीं होते हैं. उधर, निजी कंपनी स्काईमेट के अनुसार इस साल मॉनसूनी बारिश सामान्य से कम होगी. कुल मिलाकर मौसम विभाग की तरफ से आई अच्छी ख़बर के बावजूद आशंका बनी हुई है. इस साल सामान्य बारिश हो, यह इसलिए भी ज़रूरी है, क्योंकि पिछले साल भारत के किसानों ने बड़ा नुकसान उठाया है. पिछले साल किसानों को पहले गर्मी ने, फिर कम बारिश ने और फिर असमय बारिश ने तबाह कर दिया.
रबी सीज़न 2022
पिछले साल मार्च-अप्रैल के आसपास भयावह गर्मी पड़ी. 122 साल के इतिहास की सबसे भीषण हीटवेव देखने को मिली. इस दौरान देश के कई इलाकों में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक चला गया था, जिसके परिणामस्वरूप गेहूं के बीज छोटे रह गए, और उपज आधी रह गई. रबी सीज़न के दौरान गेहूं का कुल उत्पादन लगभग 11 करोड़ टन रहा, जो 2021 की तुलना में 38 लाख टन कम रहा. हीटवेव के चलते समूचे उत्तर भारत में गेहूं की फसल को 10 से 35 फीसदी तक नुकसान हुआ. इसके अलावा, आम, अंगूर, बैंगन और टमाटर की उपज भी कम हुई. वर्ष 2019-20 के दौरान देश में दो करोड़ टन आम का उत्पादन हुआ, और इसी साल करीब 50,000 टन आम का निर्यात भी हुआ था, लेकिन वर्ष 2021-2022 में आम का निर्यात सिर्फ 27,872 टन रह गया. IPCC के मुताबिक, आने वाले समय में ज़्यादा तापमान की वजह से चावल उत्पादन में 10 से 30 फीसदी की कमी की आशंका है, जबकि मक्का उत्पादन में 25 से 70 फीसदी तक की भारी गिरावट का अंदेशा है.
खरीफ सीज़न 2022
रबी के बाद खरीफ के समय आसमान से समय पर बारिश नहीं हुई, लेकिन किसानों की आंखों से खूब आंसू गिरे. मॉनसून के देर से आने और कम आने के चलते वर्ष 2022 के खरीफ़ सीज़न में भी नुकसान हुआ. दरअसल, जून से सितंबर के बीच उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बारिश कम हुई, और 91 जिलों के 700 ब्लॉकों में सूखे जैसे हालात पैदा हो गए थे. इसकी वजह से धान की बुआई में ही 50 से 75 फीसदी की कमी दर्ज की गई.
सितंबर-अक्टूबर 2022
फिर सितंबर और अक्टूबर के दौरान असमय और ज़्यादा बारिश होने के चलते कम बुआई से परेशान चल रहे किसानों की तैयार फसल भी चौपट हो गई, जिनमें मक्का, दालें और मोटे अनाज, यानी मिलेट भी शामिल थे.
बड़ी बात क्या है...?
पिछले साल इस तबाही वाली तस्वीर के पीछे ला नीना का हाथ था. यह ला नीना का लगातार तीसरा साल था, जिसे 'ट्रिपल डिप' कहा जाता है. वर्ष 1950 से 2022 के बीच ऐसा सिर्फ़ दो बार हुआ है. वैसे, कुल मिलाकर पिछले छह दशक के दौरान मॉनसून की औसत बारिश में करीब 6 फीसदी की कमी आई है. यानी बड़ी तस्वीर यह है कि अब जलवायु परिवर्तन का असर हमारे देश की उपज पर दिख रहा है. उस देश की उपज पर, जो कृषि प्रधान है. आप समझ सकते हैं कि अगर इतने बड़े पैमाने पर जलवायु परिवर्तन का असर फसलों पर हुआ, तो क्या होगा? सिर्फ किसान ही नहीं, आम उपभोक्ता भी महंगाई की मार झेलेंगे. खाद्य संकट पैदा हो सकता है.