कुछ राज्यों की क्षुद्र राजनीति के चलते मई महीने में पटरी से उतरा टीकाकरण अभियान : केंद्र

कुछ राज्यों की ओर से टीकाकरण अभियान को लेकर उठाए गए सवाल, सुझाव और सियासत के चलते मई के महीने में देश में इस अभियान को गहरा धक्का पहुंचा है, यह वही महीना था जिसमें कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप चरम पर रहा.

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नई दिल्ली:

कुछ राज्यों की ओर से टीकाकरण अभियान को लेकर उठाए गए सवाल, सुझाव और सियासत के चलते मई के महीने में देश में इस अभियान को गहरा धक्का पहुंचा है, यह वही महीना था जिसमें कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप चरम पर रहा. सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन राज्यों ने टीकाकरण अभियान को पटरी से उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. न टीकों की खरीद ठीक से की गई और न ही टीकाकरण अभियान को सही ढंग से अंजाम दिया गया. इसी कारण मई के पहले तीन सप्ताहों में देश में टीकाकरण की रफ्तार सुस्त रही। हालांकि अच्छी बात यह है कि जून के पहले सप्ताह में इसने गति पकड़ ली है. 31 मई को जहां 28 लाख टीके लगाए गए वहीं एक जून को 24, दो जून को 24, 3 जून को 29, 4 जून को 36.5 और पांच जून को 33.5 लाख टीके लगाए गए. 

सरकारी सूत्रों के मुताबिक भारत सरकार ने कोविड 19 से लड़ने के लिए ‘संपूर्ण सरकार' की नीति अपनाई थी.  इसमें एक देश एक नीति के तहत काम करने का फैसला किया गया था. लेकिन कुछ राज्य सरकारों के परस्पर विरोधी रवैये और राजनीतिक दलों के रुख ने भ्रम फैलाने का काम किया. संकीर्ण स्वार्थ आधारित कई मुख्यमंत्रियों और राजनेताओं के बयानों ने हैल्थकेयर और फ्रंटलाइन वर्कर्स के मनोबल पर असर डाला. इससे भ्रम फैला और आम लोगों में हताशा बढ़ी. इनके बयानों के चलते लोगों की टीके के प्रति हिचकिचाहट बढ़ी और इससे राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान को नुकसान पहुंचा. 

हालांकि समय रहते कुछ मुख्यमंत्रियों को समझ आ गया कि टीकाकरण अभियान के विकेंद्रीकरण से नुकसान हुआ है लिहाजा इस नीति को बदलने की आवश्यकता है. कई मुख्यमंत्रियों ने इस बारे में पत्र लिख कर मांग की. पंजाब के मुख्यमंत्री ऐसा करने वाले सबसे पहले प्रशासक थे. उन्होंने 15 मई को इस बारे में पत्र लिखा. इसके बाद केरल के मुख्यमंत्री ने 24 मई को, सिक्किम के मुख्यमंत्री ने 30 मई को, मिजोरम और मेघालय के मुख्यमंत्रियों ने 31 मई को, आंध्र प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने एक जून को तथा ओडीशा, त्रिपुरा और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने दो जून को इस बारे में पत्र लिखा. इनमें से कई मुख्यमंत्रियों ने स्पष्ट मांग की कि टीका खरीद का काम केंद्र सरकार पहले की तरह अपने हाथों में ले ले. इसके बाद एक जून को पीएम नरेंद्र मोदी को प्रजेंटेशन दिया गया और उन्होंने केंद्रीकृत मुफ्त टीका नीति को सैद्धांतिक अनुमति दे दी. 

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वैक्सीन की बर्बादी
बार-बार चेताने के बावजूद भी राज्यों में टीकों की बर्बादी बदस्तूर जारी है. स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक कुछ राज्यों में यह बर्बादी दस प्रतिशत से भी अधिक है. कोविन प्लेटफॉर्म पर डाले गए राज्य सरकारों के ही आंकड़ें बताते हैं कि एक मई से 31 मई के बीच झारखंड में 33.95% और छत्तीसगढ़ में 15.79% टीकों की बर्बादी हुई. हालांकि यहां पर यह स्पष्ट करना जरूरी है  इन दोनों ही राज्यों ने यह कहा था कि कोविन प्लेटफॉर्म में तकनीकी गड़बड़ी के चलते आंकड़ें अपडेट नहीं हो सके थे और ये आंकड़ें सही नहीं हैं.  लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से सात जून को दी गई जानकारी में यही आंकड़ें बता रही है. इनके अलावा मध्य प्रदेश, पंजाब में सात प्रतिशत से अधिक बर्बादी हुई. आंध्र प्रदेश, दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में यह आंकड़ा तीन प्रतिशत से अधिक है. 

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कितना खर्च 
सरकारी सूत्रों के मुताबिक मई, जून और जुलाई में 16 करोड़ खुराक के लिए 2,520 करोड़ रुपए दिए गए हैं. इसके लिए पांच मई को ऑर्डर दिया गया. यह रकम घरेलू बजट सपोर्ट (डीबीएस) से आवंटित की गई है. इसमें प्रति खुराक के लिए 150 रुपए तथा जीएसटी अतिरिक्त चुकाया गया है. इसमें कोवीशील्ड और कोवैक्सीन दोनों शामिल हैं. जबकि मार्च से मई तक के लिए 12 करोड़ खुराक का ऑर्डर 12 मार्च को दिया गया था. यह ऑर्डर 1,890 करोड़ रुपए का था और रकम डीबीएस से आवंटित की गई. इनमें दस करोड़ कोविशील्ड और दो करोड़ कोवैक्सीन शामिल है जो प्रति खुराक 150 रुपए और जीएसटी अतिरिक्त में खरीदी गई. इस ऑर्डर में से 96.83% की आपूर्ति हो चुकी है. जबकि पीएम केयर्स फंड से 6.6 करोड़ खुराक खरीदी गईं. इनमें कोवीशील्ड 5.6 और कोवैक्सीन एक करोड़ खुराक है. इसके लिए 1,392.825 करोड़ रुपए चुकाए गए. इसमें कोवीशील्ड की एक खुराक 200+ जीएसटी और कोवैक्सीन 295+ जीएसटी (30% मुफ्त) ली गई. ये सभी खुराक मिल चुकी हैं और इन्हें प्रयोग में लाया जा चुका है. 

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इसके अलावा गावी कोवैक्स फैसीलिटी से कोवीशील्ड की एक करोड़ खुराक मिलीं जिन्हें प्रयोग में लाया जा चुका है। साथ ही, राज्य सरकारों, केंद्र शासित प्रदेशों और निजी अस्पतालों ने भी वैक्सीन की सीधी खरीद की. इसके जरिए कोवीशील्ड की 11 करोड़, कोवैक्सीन की पांच करोड़ और स्पूतनिक वी की दो करोड़ खुराक खरीदी गईं. इसमें स्पूतनिक वी के पहले कंपोनेंट की 31.5 लाख और दूसरे कंपोनेंट की 60 हजार खुराक मिल चुकी हैं. इस तरह अब तक 53.6 करोड़ खुराक ली गई हैं.  

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दिसंबर तक टीके 
अगर वैक्सीन के हिसाब से गणना करें तो कोवीशील्ड की 50 करोड़ खुराक, कोवैक्सीन की 38.6 करोड़ खुराक, बायो ई सब यूनिट वैक्सीन की 30 करोड़ खुराक, ज़ायडस कैडिला डीएनए वैक्सीन की पांच करोड़ खुराक और स्पूतनिक वी की 5 करोड़ खुराक मिला कर दिसंबर तक 133.6 करोड़ खुराक का इंतजाम होगा. अगर जनवरी से अभी तक की खुराक मिला दें तो इस तरह दिसंबर 2021 तक भारत में अलग-अलग टीकों की 187.2 करोड़ खुराक उपलब्ध होंगी. 

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