डॉ. प्रेम कुमार: भाजपा का EBC चेहरा, मोक्ष की नगरी से 30 साल से जीत रहे लगातार, नीतीश सरकार में संभाले कई मंत्रालय

2015 के विधानसभा चुनाव में इन्हें BJP की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था क्योंकि बीजेपी पिछले 25 सालों से राज्य की सत्ता, जो पिछड़े वर्ग (लालू-राबड़ी-नीतीश) के हाथों में रही, उसे अब अति पिछड़े वर्ग को सौंपने की योजना पर काम कर रही थी.

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नई दिल्ली:

बिहार भाजपा में डॉ. प्रेम कुमार एक जांचा-परखा और जीत का पर्याय बन चुका नाम है. वो पिछले 30 सालों से लगातार गया शहर विधानसभी सीट से भाजपा के टिकट पर जीतते आ रहे हैं. बीजेपी ने लालू यादव के ओबीसी पॉलिटिक्स के काट में जब ईबीसी समुदाय को लुभाने की कोशिश की तो प्रेम कुमार उसके अहम शिल्पकार और सिपाही रहे. वो भाजपा के सर्वमान्य ईबीसी चेहरा हैं. चंद्रवंशी समाज से आने वाले प्रेम कुमार मगध विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएचडी डिग्रीधारी हैं. 

1990 के विधान सभा चुनावों में वो पहली बार चुनकर बिहार विधान सभा पहुंचे. तब से सात बार हो चुके विधान सभा चुनावों में वो अपराजित रहे हैं. 65 वर्षीय प्रेम कुमार सौम्य स्वभाव के मिलनसार नेताओं में शुमार रहे हैं. फरियादियों के लिए वो हमेशा उपलब्ध रहे हैं. फिलहाल नीतीश सरकार में वो कृषि एवं पशुपालन मंत्री हैं.

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गया शहर सीट से प्रेम कुमार भाजपा के स्थाई और जिताऊ उम्मीदवार रहे हैं, जबकि विपक्ष ने हर बार नए चेहरे को उनके खिलाफ उतारा है. 2015 में विपक्षी गठबंधन की तरफ से प्रिय रंजन तो 2010 में सीपीआई के जलालुद्दीन अंसारी मैदान में थे. साल 2005 में उनके खिलाफ कांग्रेस के टिकट पर जाने-माने रंगकर्मी और साहित्यकार संजय सहाय चुनाव लड़ रहे थे. उन्हें भी प्रेम कुमार ने करीब 25,000 वोटों के अंतर से हराया था.

30 साल से लगातार यानी 1990 से प्रेम कुमार यहां से जीतते रहे हैं. सौम्य स्वभाव के प्रेम कुमार की जनता पर विशेष पकड़ है. 2015 से 2017 के बीच वो विपक्ष के नेता भी रह चुके हैं. कुमार ने अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के सदस्य के रूप में छात्र जीवन में राजनीति में कदम रखा था. 1980 में उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली और तब से इसी पार्टी के होकर रह गए. 

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2015 के विधान सभा चुनाव में इन्हें भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था क्योंकि बीजेपी पिछले 25 सालों से राज्य की सत्ता, जो पिछड़े वर्ग (लालू-राबड़ी-नीतीश) के हाथों में रही, उसे अब अति पिछड़े वर्ग को सौंपने की योजना पर काम कर रही थी. तब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू बीजेपी से अलग होकर लालू के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही थी. लेकिन इस बार फिर से बीजेपी और जेडीयू एनडीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है.

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