'12वीं के मार्क्स तय नहीं करते कि...' - ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने अपने पुराने आर्मी स्कूल के बच्चों को लिखी थी यह चिट्ठी

8 दिसंबर को वायुसेना के चॉपर क्रैश में घायल हुए ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह ने अपने पुराने आर्मी स्कूल के बच्चों के नाम एक चिट्ठी लिखी थी. इस दर्दनाक हादसे के वो अकेले सर्वाइवर थे और हादसे के बाद से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर लड़ रहे थे. बुधवार की सुबह उनका निधन हो गया.

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नई दिल्ली:

'औसत दर्जे का होने में कोई बुराई नहीं है....लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि आपकी जिंदगी में आने वाली चीजें भी औसत ही होंगी. अपनी जिंदगी की पुकार सुनिए... जो भी आप कर रहे हैं, उसमें पूरी जान लगा दीजिए...कभी हिम्मत मत हारिए.' 8 दिसंबर को वायुसेना के चॉपर क्रैश में घायल हुए ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह (Group Captain Varun Singh) ने ये शब्द अपनी उस चिट्ठी में कहे थे, जो उन्होंने अपने पुराने आर्मी स्कूल के बच्चों के नाम लिखा था. इस दर्दनाक हादसे के वो अकेले सर्वाइवर थे और हादसे के बाद से लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर लड़ रहे थे. बुधवार की सुबह उनका निधन हो गया. इस हादसे ने देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और एयरफोर्स के 11 अधिकारियों की जान ले ली थी. इस घटना में कैप्टन वरुण बुरी तरह से घायल हुए थे. 

ग्रुप कैप्टन वरुण सिंह को अभी इसी साल अगस्त में शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया था. एक उड़ान के दौरान उनके तेजस फाइटर एयरक्राफ्ट में कुछ तकनीकी गड़बड़ी आ गई थी, जिसका उन्होंने सूझबूझ का परिचय देते हुए हिम्मत से सामना किया था.

सेना का ये सम्मान पाने के बाद सितंबर में उन्होंने हरियाणा के चंडीमंदिर कैंटोन्मेंट स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल, जिससे उन्होंने पढ़ाई की थी, के प्रिंसिपल को एक चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने लिखा था कि वो ये चिट्ठी 'अपनी शेखी बघारने या अपनी ही पीठ थपथपाने के लिए' नहीं लिख रहे हैं, बल्कि इस आशा के साथ अपने जीवन के अनुभव साझा कर रहे हैं कि 'जो बच्चे इस तेज प्रतिद्वंद्विता वाली दुनिया में खुद को औसत महसूस करते हैं, उन्हें इससे कुछ प्रेरणा मिले.'

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चार पन्नों की इस चिट्ठी में ग्रुप कैप्टन ने नेशनल डिफेंस एकेडमी में बिताए अपने वक्त और अपनी जिंदगी की कॉलिंग यानी उद्देश्य- एविएशन- को पहली बार महसूस करने के बारे में बताया है. हालांकि, वो कहते हैं कि उनमें तबभी उतना आत्मविश्वास नहीं था. वो लिखते हैं, 'मैं बहुत ही औसत दर्जे का छात्र था, जो बड़ी मुश्किल से 12वीं कक्षा में फर्स्ट डिवीजन ला सकता था. मैं स्पोर्ट्स और दूसरी करिकुल गतिविधियों में भी उतना ही एवरेज था, लेकिन एयरप्लेन और एविएशन को लेकर मेरे अंदर एक जुनून था...' 

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वो लिखते हैं, '...मैं हमेशा सोचता था कि मैं हमेशा औसत ही रहूंगा और ज्यादा बेहतर करने की कोशिश करने का कोई फायदा नहीं है. लेकिन एक फाइटर स्क्वाड्रन में एक युवा फ्लाइट लेफ्टिनेंट के तौर पर मेरी कमीशनिंग होने के बाद मुझे यह समझ आया कि अगर मैं किसी चीज में दिलो-दिमाग से लग जाऊं तो बेहतर कर सकता हूं.' 'यह वही वक्त था, जब पर्सनल और प्रोफेशनल जिंदगी में मेरे लिए चीजें बदलने लगीं. मैंने हर टास्क में अपनी पूरी क्षमता लगाने का संकल्प लिया...' 

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उनका यह संकल्प रंग लाया.

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उन्होंने चुनौतीपूर्ण फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर्स कोर्स में दो ट्रॉफी जीतीं, कठिन एक्सपेरिमेंटल टेस्ट पायलट कोर्स में उनका चयन हुआ और आखिरकार उन्हें तेजस फाइटर स्क्वाड्रन में जगह मिली, इसके बावजूद कि वो वरिष्ठता की सीमा को पार कर चुके थे. यहां तक कि वरुण सिंह इसरो (ISRO) के ऐतिहासिक गगनयान कार्यक्रम में शामिल होने वाले 12 कैंडिडेट्स की पहली लिस्ट में भी शामिल थे, लेकिन एक मेडिकल कंडीशन के चलते वो इसका हिस्सा नहीं बन सके. 

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अपनी इस चिट्ठी में ग्रुप कैप्टन सिंह ने खुद में विश्वास रखने पर जोर दिया है. उन्होंने लिखा था, 'ये कभी मत सोचना कि कक्षा 12वीं के मार्क्स ये तय करते हैं कि तुम जिंदगी में क्या हासिल करोगे. खुद में हमेशा भरोसा रखना और उद्देश्य पाने के लिए मेहनत करते जाना....' जब ऐसे एजुकेशन सिस्टम में जिसमें बच्चों में, खासकर रिजर्व रहने वाले बच्चों में जबरदस्त दबाव की प्रवृत्ति दिखती है, उनके शब्द लाखों बच्चों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं.

आप उनकी चिट्ठी यहां पढ़ सकते हैं- 

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