जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) द्वारा मेरठ में नवंबर 1946 में फहराए गए खादी के एक तिरंगे को पुणे में पहली बार आम जनता के देखने के लिए रखा गया है. इस झंडे के बीच में चरखा बना हुआ है और मेजर जनरल दिवंगत गणपत आर. नागर के परिवार ने इसे संभालकर रखा है. मेजर जनरल नागर, आजाद हिंद फौज (INA) की तीसरी डिवीजन के प्रमुख थे. इस झंडे का आकार नौ फुट चौड़ा और 14 फुट लंबा है. इसे रविवार से तीन दिन के लिए पुणे के पिम्परी चिंचवड़ में स्थित एक कॉलेज में आयोजित एक कार्यक्रम में प्रदर्शित किया गया.
मेजर जनरल नागर के पोते देव नागर ने कहा कि झंडे को सुभाष चंद्र बोस (NetaJi Subhash Chandra Bose) की 125वीं जयंती, 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध (Indo-Pak War) के 50 वर्ष पूरे होने और कारगिल विजय दिवस (Kargil Victory Day) के स्मरण के अवसर पर प्रदर्शन के वास्ते रखा गया.
देश स्वतंत्र होने से पहले 1946 में कांग्रेस के अंतिम अधिवेशन में, बोस की आईएनए के अधिकारियों की उपस्थिति में उत्तर प्रदेश के मेरठ में नेहरू ने इस झंडे को फहराया था. मेरठ के एक स्कूल में प्रधानाध्यापक देव नागर ने कहा कि पहली बार इस झंडे को मेरठ से बाहर लाकर पुणे में प्रदर्शित किया गया है.
उन्होंने कहा, “स्वतंत्रता से पहले कांग्रेस का सत्र 24 नवंबर 1946 को मेरठ के विक्टोरिया पार्क (Victoria Park) में हुआ था जहां प्रतिभागियों में आईएनए के पदाधिकारी शामिल थे। पंडित नेहरू ने खादी का झंडा फहराया था जिसके बीच में चरखा बना हुआ था.”
प्रधानाध्यापक ने कहा कि उनके दादा को उस समारोह के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी जिसकी अध्यक्षता तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जे. बी. कृपलानी ने की थी. अधिवेशन में नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल और सुचेता कृपलानी भी मौजूद थे.
नागर ने कहा, “झंडे को अधिवेशन के अंतिम दिन नीचे उतारा गया था. नेहरू और आईएनए के जनरल शाहनवाज खान ने उस पर हस्ताक्षर किये और मेरठ के निवासी मेरे दादा को संभाल कर रखने के लिए दे दिया.”
देव नागर ने कहा कि उनके परिवार ने तब से उस झंडे को संभाल कर रखा था. देव नागर के अनुसार, नेहरू ने कहा था कि इस झंडे के तले उन्होंने स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी थी इसलिए वह देश का राष्ट्रीय ध्वज होगा. बाद में, देश के राष्ट्रीय ध्वज में तीनों रंग लिए गए लेकिन चरखे के स्थान पर अशोक चक्र कर दिया गया.
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