- हिमाचल में भारी बारिश और भूस्खलन के कारण कई हाईवे और सड़कों के बंद होने से सेब की सप्लाई प्रभावित
- भारी बारिश से सेब की पैदावार खराब हुई है, जिससे किसानों को गुणवत्ता और कीमत दोनों में नुकसान हुआ है
- सेब हिमाचल की GDP में 13% योगदान देता है. 1.5 लाख से अधिक परिवार इससे आजीविका चलाते हैं
हिमाचल प्रदेश में लगातार बारिश हो रही है. भारी बारिश के कारण कई जगहों पर जलभराव और बाढ़ जैसे हालात हैं. वहीं, बादल फटने और भूस्खलन होने से सड़कें टूट गईं और कई रास्ते बंद हैं जिससे यातायात बुरी तरह से प्रभावित हो गया है. इस प्राकृतिक आपादा के कारण आम जनजीवन बेपटरी हो गया है और हर तरफ तबाही का मंजर है. कुदरत के इस कहर का असर प्रदेश में सेब व्यापार पर भी पड़ रहा है.
बारिश और भूस्खलन से सेब की सप्लाई प्रभावित
हिमाचल प्रदेश को "एप्पल स्टेट" (Apple State). यहां बड़ी संख्या में सेब की पैदावार होती है लेकिन इस बार मानसून के कारण सेब के प्रोडक्शन और बिक्री दोनों पर असर पड़ा है. भारी बारिश व भूस्खलन के कारण राज्य के तीन हाईवे चंबा-भरमौर, मंडी में एनएच-03 और कुल्लू में एनएच 305 बंद हैं. इसके अलावा 400 सड़कें यातायात के लिए बंद हैं. ऐसे में सेब की सप्लाई मार्केट और अन्य राज्यों में नहीं हो पा रही. रास्ते बंद होने की वजह से ट्रक खड़े हैं.
कुल्लू के सेब व्यापारी दिनेश ठाकुर ने कहा, "दो महीने से सेब का का कारोबार ठप हो गया है. लगातार हो रही बारिश और भूस्खलन के कारण माल की सप्लाई नहीं हो पा रही है. गाड़ियां सामान लाद कर सड़कों पर 4 से 5 दिन से खड़ी हैं, जिससे माल मंडी तक नहीं पहुंच रहा है.
हिमाचल में 5 दिन पहले आया मानसून
हिमाचल प्रदेश में अमूमन मानसून 25 जून तक आता है. लेकिन इस बार 5 दिन पहले ही 20 जून को ही मानसून ने प्रदेश में दस्तक दे दी और 22 जून तक प्रदेश के अधिकतर हिस्सों में बारिश का पानी पहुंच गया. मौसम विभाग का अनुमान है कि अगले एक सप्ताह तक प्रदेश में मानसून सक्रिय रहेगा. इस बीच, 27 अगस्त तक प्रदेश के मंडी, कुल्लू, चंबा, कांगड़ा, बिलासपुर, ऊना और सिरमौर जिला में कई स्थानों पर भारी वर्षा का लेकर येलो अलर्ट जारी किया गया है.
मानसून ने उम्मीदों पर पानी फेरा
हिमाचल प्रदेश संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा, " इस बार निचले इलाकों में पैदावार अच्छी हो रही थी. यह साल 2010 के बाद ऐसा पहली बार हुआ था. लेकिन भारी बारिश और बाढ़ ने सेब की पैदावार को खराब कर दिया. " प्रदेश में लगातार हो रही बारिश के कारण सेब के पत्तियों में फंगस लग गए. इससे पत्तियां झड़ने लगी और सेब के साइज और रंग में फर्क पड़ा, जिससे किसानों को नुकसान हो गया. क्वालिटी सही नहीं होने की वजह से मार्केट भी क्रैश हुआ, जिससे किसानों को मन मुताबिक दम भी नहीं मिल पाए.
संयुक्त किसान मंच हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में साल 2010 में सबसे अधिक सेब की पैदावार हुई थी. उसे वक्त 5 करोड़ के ऊपर बॉक्स यानी करीब 10 लाख मैट्रिक टन सेब का उत्पादन हुआ था. इस बार भी निचले इलाकों में ऐसी ही पैदावार हुई थी, जिससे किसानों को बड़ी उम्मीद जगी थी. ऊपरी और बीच के हिस्से में सेब की पैदावार इतनी अच्छी नहीं हो पाई.
हिमाचल प्रदेश में लगातार हो रही भारी बारिश के कारण सेब गोदाम में रखे-रखे सड़ जा रहें हैं. राम सिंह कहते हैं, " रास्ते बंद होने की वजह से हम अपने खेतों में भी नहीं जा पा रहें हैं. वहीं पर सेब टूटकर खराब हो जा रहा है.ज्यादा वर्षा से सेब का रंग भी काला पड़ रहा है." हम लोगों के लिए बस यही एक कमाई का सहारा है, पर इस बार बहुत नुकसान हुआ है. हम साल भर इसी के सहारे जीते हैं. लेकिन इस बार पता नहीं कैसे काम चलेगा.
रोजगार और अर्थव्यवस्था की रीढ़ सेब उत्पादन
सेब हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है और लाखों लोगों को रोजगार प्रदान करता है. वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की सत्तर प्रतिशत आबादी कृषि में लगी हुई है, तथा राज्य के बागवानी उत्पादन में सेब का योगदान 80 प्रतिशत है. राज्य की 6.15 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से लगभग दो लाख हेक्टेयर भूमि फलों के बागों के लिए है, जिनमें से आधी (लगभग 1.15 लाख हेक्टेयर) भूमि पर सेब की खेती होती है. सेब उत्पादन से राज्य के 1.5 लाख से अधिक परिवार, विशेषकर छोटे और सीमांत किसान, अपनी आजीविका चलाते हैं.
5 जिलों में सेब की पैदावार, 13% जीडीपी में हिस्सा
हिमाचल प्रदेश के 5 जिलों में, जिसमें 17 विधानसभा में सेब की मुख्य खेती होती है. इसमें शिमला, कुल्लू, किन्नौर, मंडी, चंबा, सिरमौर और सोलन जैसे जिले सेब के प्रमुख उत्पादक हैं. प्रतिवर्ष 5000 से 6000 करोड़ रुपए का सेब का कारोबार है, जो हिमाचल प्रदेश की जीडीपी में 13 प्रतिशत का योगदान देता है. दिनेश ठाकुर ने कहा, " इस बार सेब गोदाम में रखे- रखे सड़ जा रही. ₹3000-3500 में बिकने वाली सेब की पेटी इस बार ₹1500 बेचना पड़ रहा है. "
1500 करोड़ रुपए के कारोबार का नुकसान
संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान ने कहा, " अभी हमारा अनुमान है कि इस साल सेब के कारोबार में 1200 से 1500 करोड़ रुपए का नुक्सान होगा. जबकि 80 लाख से एक करोड़ बॉक्स/पेटी की बिक्री कम होने की उम्मीद है. "
50 से 60 प्रतिशत गिरे सेब के दाम
उन्होंने बताया कि एक पेटी में 20 से 22 किलो सेब होता है. वहीं, वीर सिंह ने कहा, " जो सेब पहले 100 से 150 रुपए किलो बिकती थी, वो इस बार 50 से 60 रुपए किलो बिक रही है. इस बाहर हर वैरायटी की सेब भी मार्केट में नहीं आ रही है. अभी फिलहाल गला, रॉयल डिलीशियस, गोल्डन और रेड गोल्डन ही मार्केट में आ रहे हैं. "
साल उत्पादन | करोड़ पेटियां |
2020-2021 | 2,40,53,099 |
2021-2022 | 3,05,95,058 |
2022-2023 | 3,36,17,133 |
2023.2024 | 2,11,11,972 |
2024-2025 | 2,51,47,400 |
हिमाचल प्रदेश सेब उत्पादक संघ के राज्य कमेटी सदस्य संजय चौहान ने कहा, " मई में सरकार ने प्रारंभिक अनुमान लगाया था कि प्रदेश में चार करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होगा. लेकिन जिस तरीके से प्राकृतिक आपदा से उत्पादन प्रभावित हुआ है, उससे ऐसा प्रारंभिक अनुमान है कि इस बार ज्यादा से ज्यादा ढाई करोड़ पेटी सेब का उत्पादन होगा. " भारत के कुल सेब उत्पादन का लगभग 25% हिमाचल प्रदेश उत्पादित करता है. प्रदेश में प्रतिवर्ष औसतन 6.5 मैट्रिक टन सेब का उत्पादन होता है लेकिन पिछले डेढ़ दशकों में उत्पादन में लगातार गिरावट देखी जा रही है. ऐसे में साफ है कि जो प्रारंभिक अनुमान लगाया गया था उससे डेढ़ करोड़ पेटी कम सेब का उत्पादन होगा.
ये नुकसान और भी हो सकता है. क्यूंकि प्राकृतिक आपदाएं लगातार चुनौती पैदा कर रही हैं जिससे हमारी खेती पर और संकट आ जाएगा. इसका असर प्रदेश की अर्थव्यवस्था पर तो पड़ेगा ही साथ ही जो लोग राज्य के बाहर दुकान चला रहे हैं उनकी रोजी-रोटी भी प्रभावित होगी. हिमाचल प्रदेश का सेब अपनी मिठास के लिए देशभर में प्रसिद्ध है. यहां से सेब दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे देश के विभिन्न बड़े शहरों की मंडियों में भेजा जाता है.
सेब उत्पादन में कमी, अर्थव्यवस्था और रोजगार पर संकट
संजय चौहान ने कहा, "अगर इस बार किसान को अच्छा पैसा नहीं मिला, तो वह अगले साल खेती पर होने वाला खर्च—जैसे खाद डालना, दवा का छिड़काव और बाकी ज़रूरी काम—नहीं कर पाएगा. इसका असर आने वाले साल की फसल पर पड़ेगा. साल 2010 के बाद से लगातार सेब की पैदावार घट रही है, और अगर यही हाल रहा तो आने वाले समय में और नुकसान होगा. इससे प्रदेश की रोज़गार और अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ेगा."
कुल्लू में सेब के फल से लड़ा पेड़.
विशेषज्ञों की मानें तो, ग्लोबल वार्मिंग के कारण लगातर मौसम में बदलाव हो रहा. इसका असर सेब उत्पादन पर पड़ रहा है, जिसकी वजह से लगातार लगातार पैदावार घट रही है. ऐसे में अगर कोई ठोस रणनीति नहीं अपनाई गई, तो आने वाले समय में इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा.