क्या है अष्टमी का महत्व, दुर्गा अष्टमी पर किन चीजों का लगता है भोग

इन दिनों हम सभी नवरात्रि का त्योहार मना रहे हैं. देश के कई हिस्सों में भक्तों के लिए मंदिरों को सामजिक दूरी के मानदंडों के साथ खोल दिया गया है.

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नवरात्रि के दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा करते हैं .
कुछ भक्त नवरात्रि के व्रत भी रखते हैं.
नवरात्रि के आठवें दिन को अष्टमी के रूप में जाना जाता है.

इन दिनों हम सभी नवरात्रि का त्योहार मना रहे हैं. देश के कई हिस्सों में भक्तों के लिए मंदिरों को सामजिक दूरी के मानदंडों के साथ खोल दिया गया है. वहीं जो लोग मंदिर नहीं जा सकते, वे घर पर ही  इस उत्सव को मना रहे हैं. ऐसा कहा जाता है यह वह शुभ समय है जब देवी दुर्गा नौ दिनों के लिए अपने भक्तों के बीच धरती पर आती हैं. नवरात्रि के दिनों में लोग जल्दी उठते हैं और देवी के नौ रूपों की पूजा करते हैं, साथ ही अलग अलग प्रकार का भोग चढ़ाते हैं. कुछ भक्त नवरात्रि के व्रत भी रखते हैं. नवरात्रि के आठवें दिन को अष्टमी के रूप में जाना जाता है. यह दिन कई मायनों में बहुत से भक्तों के लिए विशेष होता है. देश के विभिन्न हिस्सों में इस दिन को कई अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है. इस साल 24 अक्टूबर को देशभर में अष्टमी मनाई जाएगी. आइए जानते इस शुभ दिन से जुड़ी अन्य बातें:

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अष्टमी पूजा का समय और तिथि

अष्टमी तिथि शुरू होती है - 23 अक्टूबर, 2020 को सुबह 06:57 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त हो रही है - 06:58 AM 24 अक्टूबर, 2020 (स्रोत द्रिकपंचाग डॉटकॉम)  

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अष्टमी का महत्व और भोग

अष्टमी पर विभिन्न पूजा अनुष्ठान होते हैं. कई हिंदू परिवार इस दिन कंजक, कन्या पूजा या कन्या भोज रखते हैं. इस दिन नौ छोटी लड़कियों को घर पर आमंत्रित किया जाता है और उन्हें काला चने, हलवा और पूरी का स्वादिष्ट भोजन परोसा जाता है. कहा जाता है कि ये लड़कियां स्वयं देवी दुर्गा के अवतार होती हैं. उनके पैरों को पानी से धोया जाता है, उन्हें कलाई पर लाल पवित्र धागा या मोली बांधी जाती है और लड़कियों के बीच पेंसिल बॉक्स, क्लिप और पानी की बोतल जैसे कुछ छोटे उपहार भी बांटे जाते हैं.

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वहीं बंगाल में दुर्गा अष्टमी का पर्व बेहद ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है. इन पांच (षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी) सबसे महत्वपूर्ण दिनों में से दुर्गा अष्टमी वह दिन है जिस दिन विशेष संधि पूजा की जाती है. इस विशेष दिन के अवसर पर एक सौ आठ मिट्टी के दीपक जलाए जाते है और देवी दुर्गा को 108 ही कमल के फूल और बिल्व के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं. माना जाता है कि इस दिन देवी काली देवी दुर्गा की तीसरी आंख से प्रकट हुई जब उन्होंने राक्षस राजा महिषासुर को युद्ध के नियमों का उल्लंघन करते देखा.

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इस दिन, दुर्गा पूजा का भोग सामान्य भोग से थोड़ा अलग होता है. पंडाल में मौजूद सभी भक्तों दोपहर के खाने में स्पेशल प्रसाद दिया जाता है. इनमें चना दाल, पनीर, पलाओ, खिचड़ी, राजभोग, टमाटर की चटनी, पापड़, सलाद, चिरचोरी (मिश्रित सब्जी) से लेकर पेएश और मिष्टी दोई जैसी चीजें शामिल होती है. हम सभी हर साल इस स्पेशल भोग का इंतजार करते हैं.
 

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