Lord Ram Murti : इस खास पत्थर से तैयार की गई है रामलला की मूर्ति, जानिए क्यों है रंग सांवला

Ram ji idol : भगवान राम विष्णु जी के अवतार माने जाते हैं और स्वयं विष्णु जी श्याम वर्ण के थे. भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों ही श्याम वर्ण के माने जाते हैं. तीनों भगवान की पूजा उनके श्याम वर्ण के साथ की जाती है. 

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Ram temple : क्या आप जानते हैं कि ये मूर्ति (Lord Ram Murti) श्याम वर्ण यानि सांवली क्यों है?

Ram Lalla Murti: अयोध्या में राम लला की मूर्ति का प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम पूरा हो चुका है. इस कार्यक्रम में यजमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) थे. उनके साथ राम मंदिर के गर्भग्रह में कुछ खास लोग मौजूद थे. इन लोगों में उत्तर प्रदेश की गवर्नर आनंदी बेन पटेल, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस के चीफ मोहन भागवत शामिल थे. इस अनुष्ठान के बाद राम लला (Ram Lalla) की नई विशाल मूर्ति भी स्थापित कर दी गई लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये मूर्ति (Lord Ram Murti) श्याम वर्ण यानि सांवली क्यों है? इस रंग के चुनाव के पीछे का कारण क्या है?

दरअसल, महर्षि वाल्मीकि की रामायण में भगवान राम के श्याम वर्ण का वर्णन किया गया है. भगवान राम के इसी अवतार को पूजा जाता है. इसके अलावा भगवान राम विष्णु जी के अवतार माने जाते हैं और स्वयं विष्णु जी श्याम वर्ण के थे. भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों ही श्याम वर्ण के माने जाते हैं. तीनों भगवान की पूजा उनके श्याम वर्ण के साथ की जाती है. 

श्याम शिला से बनी मूर्ति

ऐसा माना जाता है कि जिस श्याम शिला से ये राम लला की मूर्ति तैयार की गई है, उसकी आयु काफी मानी जाती है. श्याम शिला की आयु हजारों वर्ष की होती है. इसकी वजह से इस पत्थर का चयन किया गया है. संभावना है कि मूर्ति हजारों सालों तक अच्छी अवस्था में रहेगी और इसमें किसी तरह का बदलाव नहीं आएगा. हिंदू धर्म में पूजा पाठ के दौरान अलग-अलग चीजों से मूर्ति का अभिषेक किया जाता है. ऐसे में मूर्ति को जल, चंदन, रोली और दूध जैसी चीजों से भी नुकसान नहीं पहुंचेगा.

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बाल रूप में राम

हिंदू मान्यताओं के मुताबिक अयोध्या को भगवान राम का जन्म स्थल माना जाता है. जन्मभूमि में भगवान श्री राम के बाल स्वरूप की उपासना की जाती है. भगवान राम की मूर्ति इसलिए उनके बाल रूप में मनाई गई है.

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क्यों हुआ अनुष्ठान

हिंदू परंपराओं के मुताबिक प्राण प्रतिष्ठान अनुष्ठान का मतलब किसी मूर्ति में प्राण डालना होता है. बिना प्राण प्रतिष्ठा के किसी मूर्ति की पूजा नहीं की जाती है. इस अनुष्ठान के दौरान मंत्र उच्चारण के साथ देवताओं का आह्वान किया जाता है. इसलिए किसी भी मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही मंदिर का काम पूरा होता हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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