Pithori Amavasya 2021 Date : आज है पिठौरी अमावस्‍या, करें मां दुर्गा की अर्चना, जानें पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Pithori Amavasya 2021 : भाद्र मास में पड़ने वाली अमावस्या को पिठौरी (Pithori amavasya) या फिर कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार पिठौरी अमावस्या के दिन महिलाएं अपनी संतान और सुहाग के लिए व्रत करतीं हैं. इस अमावस्या पर मां दुर्गा की पूजा की जाती है.

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Pithori Amavasya : मान्यता के अनुसार पिठौरी अमावस्या (Pithori amavasya) के दिन महिलाएं अपनी संतान और सुहाग के लिए मां दुर्गा की पूजा करती हैं..
नई द‍िल्‍ली:

Pithori Amavasya 2021 : भाद्रपद की अमावस्या का खास महत्व है, इसे पिठौरी अमावस्या (Pithori amavasya) भी कहा जाता है. इस साल पिठौरी अमावस्या 7 सितंबर 2021 को है. भाद्र मास में पड़ने वाली अमावस्या को पिठौरी या फिर कुशग्रहणी अमावस्या भी कहा जाता है. मान्यता के अनुसार पिठौरी अमावस्या के दिन महिलाएं अपनी संतान और सुहाग के लिए व्रत करतीं हैं. इस अमावस्या पर मां दुर्गा की पूजा की जाती है.

 तिथि और शुभ मुहूर्त  (shubh muhurat)

  • भाद्रपद अमावस्‍या तिथि का आरंभ: 6 सितंबर 2021 को शाम 7 बजकर 40 मिनट से 
  •  भाद्रपद अमावस्‍या तिथि का समापनः 7 सितंबर 2021 को शाम 6 बजकर 23 मिनट पर समाप्त होगी.

 पूजन की विधि (pujan vidhi)
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भाद्रपद अमावस्या (Pithori amavasya) का व्रत विशेष फलदायी होता है. मान्यता है कि इस व्रत को माताएं ही करतीं है, यानी कोई कुंवारी कन्या इस व्रत को नहीं कर सकती. इस दिन सुबह उठकर स्नान करें. स्नान करने से पहले पानी में गंगाजल छिड़क लें. इस अमावस्या पर नहाने के बाद साफ-सुथरे कपड़े पहनें और इस व्रत का संकल्प लें. पीठ का अर्थ आटा होता है, ऐसे में इस दिन 64 देवियों की आटे से मूर्ति यानी प्रतिमा बनाने की मान्यता है. बेसन का आटा गूंथकर उससे हार, मांग टीका, चूड़ी, कान बाली और गले के हार बनाकर प्रतिमाओं पर चढ़ाएं, फिर देवियों को फूल चढ़ाएं.

ब्राह्मण को दान देने की परंपरा (parampara)


इस अमावस्या (Pithori amavasya) पर पूजन के लिए गुझिया, शक्कर पारे और मठरी बनाएं और देवी-देवताओं को भोग लगाएं. पूजा-पाठ के बाद आटे से बनाए देवी-देवताओं की आरती करें. पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मण या घर के किसी बड़े को पकवान देकर उनके पैर छुएं. पंडित को खाना खिलाएं और दान-दक्षिणा दें. इस तरह से किए गए व्रत को ही पूर्ण माना जाएगा और इसी के बाद व्रत लाभ मिलता है.

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