Vivah Panchami 2021: विवाह पंचमी पर करें श्रीराम-जानकी की स्तुति

मान्यता है कि विवाह पंचमी के दिन पूजन में राम रक्षा स्तोत्र का पाठ व श्रीराम-जानकी की स्तुति सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है. विवाह पंचमी मार्गशीर्ष (अग्रहयान) में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आती है. इस वर्ष विवाह पंचमी 8 दिसंबर यानि आज है.

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Vivah Panchami 2021: विवाह पंचमी पर इस विधि से करें राम रक्षा स्तोत्र का पाठ
नई दिल्ली:

विवाह पंचमी एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे बहुत उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, विवाह पंचमी मार्गशीर्ष (अग्रहयान) में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आती है. इस वर्ष विवाह पंचमी 8 दिसंबर यानि आज है. मान्यता है कि इस दिन भगवान राम और माता सीता का विवाह हुआ था, इसलिए इस दिन को हर साल उनकी शादी की सालगिरह के रूप में मनाया जाता है. विवाह पंचमी का त्योहार भारत और नेपाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. वैसे तो भारत के लगभग सभी क्षेत्रों में राम और सीता के विभिन्न मंदिरों में विवाह पंचमी का त्योहार मनाया जाता है, लेकिन विवाह पंचमी का सबसे पवित्र और भव्य उत्सव अयोध्या (भगवान राम का जन्मस्थान) और जनकपुर (नेपाल में स्थिति देवी सीता का जन्मस्थान) में आयोजित किया जाता है. मान्यता है कि विवाह पंचमी के दिन पूजन में राम रक्षा स्तोत्र का पाठ सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करता है, लेकिन राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने का कुछ विशेष विधान है.

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राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करने की विधि

  • सबसे पहले दायें हाथ में जल लेकर इस पाठ विनियोग को पढ़ें.

अस्य श्रीरामरक्षास्त्रोतमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः। श्री सीतारामचंद्रो देवता। अनुष्टुप छंदः। सीता शक्तिः। श्रीमान हनुमान कीलकम। श्री सीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे रामरक्षास्त्रोतजपे विनियोगः।

  • अब जल को जमी न पर छोड़ दें और फिर भगवान राम का ध्यान करें.

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपदमासनस्थं पीतं वासो वसानं नवकमल दल स्पर्धिनेत्रम् प्रसन्नम। वामांकारूढ़ सीता मुखकमलमिलल्लोचनम् नीरदाभम् नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डलम्रामचंद्रम ।।

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राम रक्षा स्त्रोत

चरितं रघुनाथस्य शतकोटि प्रविस्तरम् । एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् । 1।

ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् । जानकीलक्ष्मणोपेतं जटामुकुटमण्डितं ।2।

सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तंचरान्तकम्। स्वलीलया जगत्त्रातुमाविर्भूतमजं विभुम् ।।3।।

रामरक्षां पठेत प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम्। शिरो मेराघवः पातुभालं दशरथात्मजः ।। 4।।

कौसल्येयो दृशो पातुविश्वामित्रप्रियः श्रुति। घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सलः ।।5।।

जिह्वां विद्यानिधिः पातुकण्ठं भरतवन्दि तः। स्कन्धौ दिव्यायुधः पातुभुजौ भग्नेशकार्मुकः ।। 6।।

करौ सीतापतिः पातुहृदयं जामदग्न्यजित। मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रयः ।।7।।

सुग्रीवेशः कटी पातु सक्थि नी हनुमत्प्रभुः। उरु रघूत्तमः पातु रक्षःकुलविनाशकृताः ।।8।।

जानुनी सेतुकृत पातुजंघे दशमुखांतकः। पादौ विभीषणश्रीदः पातुरामअखिलं वपुः ।।9।।

एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृति पठेत। स चिरायुः सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ।।10।।

पातालभूतल व्योम चारिणश्छद्मचारिणः। न द्रष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभिः ।।11।।

रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन। नरौ न लिप्यतेपापैर्भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।।12।।

जगज्जैत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम्। यः कण्ठेधारयेत्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ।।13।।

वज्रपञ्जरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत। अ रे व्याहताज्ञाः सर्वत्र लभते जयमंगलम् ।।14।।

आदिष्टवान्यथा स्वप्नेरामरक्षामिमां हरः। तथा लिखितवान्प्रातः प्रबुद्धो बुधकौशिकः ।। 15।।

आरामः कल्पवृक्षाणां विरामः सकलापदाम्। अभिरामस्त्रिलोकानां रामः श्रीमान स नः प्रभुः ।।16।।

तरुणौ रूपसम्पन्नौ सुकुमारौ महाबलौ। पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ।।17।।

फलमूलाशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ। पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ।।18।।

शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम्। रक्षःकुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघूत्तमौ ।।19।।

आत्तसज्जधनुषाविषुस्पृशा वक्ष याशुगनिषङ्गसङ्गिनौ। रक्षणाय मम रामलक्ष्मणावग्रतः पथि सदैव गच्छताम ।।20।।

सन्नद्धः कवची खड्गी चापबाणधरो युवा। गच्छन्मनोरथान नश्च रामः पातुसलक्ष्मणः ।। 21।।

रामो दाशरथी शूरो लक्ष्मणानुचरो बली। काकुत्स्थः पुरुषः पूर्णः कौसल्येयो रघूत्तमः ।।22।।

वेदान्तवेद्यो यज्ञेशः पुराणपुरुषोत्तमः। जानकीवल्लभः श्रीमानप्रमेयपराक्रमः।।23।।

इत्येतानि जपन नित्यं मद्भक्तः श्रद्धयान्वितः। अश्वमेधाधिकं पुण्यं सम्प्राप्नोति न संशयः ।। 24।।

रामं दुर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम। स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्नतेसंसारिणो नरः ।।25।।

रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं धार्मिकम। राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथतनयं श्यामलं शांतमूर्तिं वन्देलोकाभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम।।26।।

रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे। रघुनाथाय नाथाय सीतायाः पतये नमः ।।27।।

श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम। श्रीराम राम रणकर्कश राम राम। श्रीराम राम शरणं भव राम राम ।।28।।

श्रीराम चन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि श्रीराम चंद्रचरणौ वचसा गृणामि। श्रीराम चन्द्रचरणौ शिरसा नमामि श्रीराम चन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ।।29।।

माता रामो मत्पि ता रामचन्द्रः स्वामी रामो मत्सखा रामचन्द्रः । सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालुर्नान्यं जानेनैव जाने न जाने ।।30।।

दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे च जनकात्मज। पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनन्दनम् ।।31।।

लोकाभिरामं रणरंगरं धीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथं। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये ।।32।।

मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रि यं बुद्धिमतां वरिष्ठम। वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।।33।।

कूजन्तं रामरामेति मधुरं मरं धुराक्षरम। आरुह्य कविताशाखां वन्देवाल्मीकिकोकिलम ।।34।।

आपदामपहर्तारं दातारं सरं र्वसम्पदाम्। लोकाभिरामं श्रीरामंभूयो भूयो नमाम्यहम् ।।35।।

भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसम्पदाम्। तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ।।36।।

रामो राजमणिः सदा विजयतेरामं रमेशं भजेरामेणाभिहता निशाचरचमूरामाय तस्मै नमः।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतुमे भो राम मामुद्धराः।।37।।

राम रामेति रामेति रमेरामे मनोरमे। सहस्त्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।38।।

श्री जानकी स्तुति

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।

जानकि त्वां नमस्यामि सर्वपापप्रणाशिनीम्।।

दारिद्र्यरणसंहर्त्रीं भक्तानाभिष्टदायिनीम्।

विदेहराजतनयां राघवानन्दकारिणीम्।।

भूमेर्दुहितरं विद्यां नमामि प्रकृतिं शिवाम्।

पौलस्त्यैश्वर्यसंहत्रीं भक्ताभीष्टां सरस्वतीम्।।

पतिव्रताधुरीणां त्वां नमामि जनकात्मजाम्।

अनुग्रहपरामृद्धिमनघां हरिवल्लभाम्।।

आत्मविद्यां त्रयीरूपामुमारूपां नमाम्यहम्।

प्रसादाभिमुखीं लक्ष्मीं क्षीराब्धितनयां शुभाम्।।

नमामि चन्द्रभगिनीं सीतां सर्वाङ्गसुन्दरीम्।

नमामि धर्मनिलयां करुणां वेदमातरम्।।

पद्मालयां पद्महस्तां विष्णुवक्ष:स्थलालयाम्।

नमामि चन्द्रनिलयां सीतां चन्द्रनिभाननाम्।।

आह्लादरूपिणीं सिद्धिं शिवां शिवकरीं सतीम्।

नमामि विश्वजननीं रामचन्द्रेष्टवल्लभाम्।

सीतां सर्वानवद्याङ्गीं भजामि सततं हृदा।।

कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरज सुन्दरं।

पट पीत मानहु तड़ित रूचि शुचि नौमि जनक सुतावरं।।

भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकंदनं।

रघुनंद आनंदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरधूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।

मम ह्रदय-कंज निवास कुरु, कामादी खल-दल-गंजनं।।

मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सांवरो।

करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।

एहि भांती गौरि असीस सुनी सिय सहित हियं हरषीं अली।

तुलसी भवानिही पूजि पुनी पुनी मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

।।सियावर रामचंद्र की जय।।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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