पौष माह (Paush Month) के शुक्ल पक्ष की एकादशी ( Ekadashi) तिथि को वैकुंठ एकादशी व्रत (Vaikuntha Ekadashi Vrat) रखा जाता है. आज के दिन भगवान श्री हरि विष्णु का विधि-विधान से पूजन किया जाता है. इस एकादशी व्रत को वैकुंठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi) के अलावा मोक्षदा एकादशी और पौष पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. इसे मुक्कोटी एकादशी भी कहते हैं. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का पूजन करने व व्रत कथा को पढ़ने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. साथ ही इस व्रत को करने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति भी होती है. आज के दिन पूजा के समय वैकुंठ एकादशी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. आइए जानते हैं वैकुंठ एकादशी का महत्व और कथा.
वैकुंठ एकादशी का महत्व | Importance Of Vaikuntha Ekadashi
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वैकुंठ एकादशी के दिन भगवान श्री हरि विष्णु के धाम वैकुंठ का द्वार खुला रहता है. माना जाता है कि जो भी व्यक्ति आज के दिन सच्ची श्रद्धा से पूजन और व्रत रखता है, उसे मृत्यु के बाद वैकुंठ धाम में श्रीहरि के चरणों में स्थान मिलता है. उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत से संतान प्राप्ति का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है.
वैकुंठ एकादशी की कथा | Vaikuntha Ekadashi Vrat Katha
गोकुल नाम के नगर में वैखानस नामक राजा का राज्य था. कहा जाता है कि उनके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण निवास करते थे. राजा अपनी प्रजा का काफी ख्याल रखा करता था. एक बार राजा ने अपने सपने में देखा कि उसके पिता नरक की यातना भोग रहे हैं. सुबह होते ही राजा अपने राज्य के ब्राह्मणों को अपना सपना सुनाया. उन्होंने ब्राह्मणों को बताया कि उनके पिता ने सपने में कहा है कि वे नरक की यातना भुगत रहे हैं, पुत्र मुझे नरक के इन कष्टों से मुक्त कराओ. राजा ने ब्राह्मणों से आगे कहा कि सपने में पिताजी की ऐसी हालत देख मैं चिंतित हूं. राजा की बात सुन ब्राह्मणों ने कहा, हे राजन यहां पास ही में ज्ञाता पर्वत ऋषि का आश्रम है, वे आपकी इस समस्या का हल जरूर कर सकते हैं.
ब्राह्मणों की बातों को सुन राजा तत्काल पर्वत ऋषि के आश्रम के लिए निकल पड़े. आश्रम पहुंचते ही राजा ने पर्वत ऋषि को साष्टांग दंडवत करते हुए अपनी पूरी दास्तान सुनाई. राजा की व्यथा सुनकर पर्वत मुनि ने कहा, हे राजन आपके पिता ने पूर्व जन्म में कामातुर होकर एक पत्नी को रति दी, किंतु दूसरी पत्नी को ऋतुदान मांगने पर भी नहीं दिया. उसी पापकर्म के चलते उन्हें नरक जाना पड़ा.
राजा द्वारा उपाय पूंछने पर मुनि बोले- हे राजन आप मार्गशीर्ष एकादशी का उपवास करें और उस उपवास के पुण्य को अपने पिता को संकल्प कर दें. इससे आपके पिता की नरक से अवश्य मुक्ति होगी. पर्वत ऋषि की बात सुन राजा ने वैसा ही किया. माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और स्वर्ग में जाते हुए वे पुत्र से कहने लगे, हे पुत्र तेरा कल्याण हो. यह कहकर स्वर्ग चले गए.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है