पौष मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से शाकम्भरी नवरात्र (Shakambhari Navratri) की शुरुआत होती है. यह उत्सव पौष मास की पूर्णिमा तक मनाया जाता है. ऐसे में इस साल शाकम्भरी देवी का पूजन पौष शुक्ल अष्टमी 10 जनवरी यानि आज से शुरू हो रहा है, जो पौष पूर्णिमा 17 जनवरी को समाप्त होगा. देवी भागवत महापुराण में शाकंभरी माता को देवी दुर्गा का ही स्वरूप बताया गया है. 'श्री दुर्गासप्तशती' के एकादश अध्याय और 'अथ मूर्तिरहस्यम' में इस बात का उल्लेख है कि देवी की छह देवियां- नन्दा, रक्तदंतिका, शाकम्भरी, दुर्गा, भीमा और भ्रामरी हैं. एक कथा के अनुसार, एक समय पृथ्वी पर सौ वर्षों तक वर्षा नहीं हुई, तब मनुष्यों को कष्ट उठाते देख मुनियों ने देवी मां से प्रार्थना की, तब मां शाकम्भरी के रूप में माता ने अपने शरीर से उत्पन्न हुए शाकों के द्वारा ही संसार का भरण-पोषण किया था.
जानें कौन हैं माता शाकम्भरी
माता शाकम्भरी, देवी दुर्गा का ही अवतार हैं. मां दुर्गा के इस अवतार का विस्तृत वर्णन देवी पुराण में मिलता है. माना जाता है देवी शाकंभरी शाक सब्जियों और वनस्पतियों की देवी हैं. माता के अनेक नाम हैं, माता शाकंभरी को देवी वनशंकरी और शताक्षी भी कहा जाता है. कई जगहों पर माता शाकम्भरी को हरियाली का प्रतीक भी माना जाता है. कहा जाता है कि माता शाकम्भरी अत्यंत दयालु और विनम्र हैं. बता दें कि पूर्णिमा का दिन माता शाकम्भरी की जयंती के रूप में मनाया जाता है. शाकंभरी जयंति के दिन फल-फूल और हरी सब्जियों को दान करने का सबसे ज्यादा महत्व है.
शाकम्भरी पूर्णिमा का महत्व
शाकम्भरी नवरात्रि की पूर्णिमा का महत्व अत्याधिक है. पौष पूर्णिमा के नाम से इस दिन को देश के विभिन्न स्थानों पर बड़े ही धूनधाम से मनाया जाता है. इस दिन लोग पवित्र नदी पर जाकर स्नान करते हैं. माना जाता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी की कृपा उन पर हमेशा बनी रहती है. मान्यता है कि इन दिनों माता की विधि-विधान से उपासना और व्रत करने से व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं व सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)