Sawan Putrada Ekadashi Vrat 2022: सावन मास की पुत्रदा एकादशी का खास महत्व है. यह सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस बार सावन मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत 8 अगस्त 2022 सोमवार को यानी आज रखा जा रहा है. पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है. धार्मिक मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने से संतान के कष्ट दूर हो जाते हैं. साथ ही इस व्रत के प्रभाव से पुत्र की प्राप्ति होती है. ऐसे में जानते हैं पुत्रदा एकादशी व्रत (Putrada Ekadashi Vrat) का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा.
सावन पुत्रदा एकादशी शुभ मुहूर्त | Sawan Putrada Ekadashi Shubh Muhurat
श्रावण मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत 8 अगस्त को यानी आज रखा जा रहा है. एकादशी तिथि का आरंभ 7 अगस्त, 2022 को सुबह 11 बजकर 50 मिनट से शुरू है .जबकि एकादशी तिथि की समाप्ति आज सुबह 9 बजे होगी. वहीं पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 9 अगस्त, मंगलवार को सुबह 6 बजकर 7 मिनट से 8 बजकर 42 मिनट तक किया जा सकता है.
पुत्रदा एकादशी पूजा-विधि | Sawan Putrada Ekadashi Puja Vidhi
सावन पुत्रदा एकादशी (Sawan Putrada Ekadashi 2022) के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और उसके बाद साफ वस्त्र धारण करें. इसके बाद पूजा स्थान पर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक जलाएं. इसके बाद हाथ में गंगाजल लेकर व्रत का संकल्प लें. भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी के पत्ते का इस्तेमाल करना अनिवार्य माना गया है. ऐसे में इस बात का ध्यान रखें. 8 अगस्त को पुत्रदा एकादशी के साथ साथ सावन सोमवार भी पड़ रहा है. ऐसे में भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ भगवान शिव की पूजा भी करें और शिवलिंग पर जल अर्पित करें. एकादशी व्रत में सात्विकता का खास ख्याल रखा जाता है, इसलिए इस बात का ध्यान रखें. व्रत के दिन कुछ ना खाएं. एकादशी के अगले दिन ब्रह्मण भोजन कराने के बाद व्रत का पारण करें.
पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Sawan Putrada Ekadashi Vrat Katha
पद्मपुराण की कथा के अनुसार, द्वापर युग में महिष्मती पुरी का राजा महिजित बेहद शांत और धर्म प्रिय था, लेकिन उसका कोई पुत्र नहीं था. जिसको लेकर वह बहुत चिंतित रहता था. कहते हैं कि राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई. जिसके बाद महामुनि ने बताया कि पिछले जन्म में राजा द्वारा बहुत अत्याचार किए गए हैं. एक बार एकादशी के दिन वे दोपहर के वक्त नदी के किनारे पहुंचे. वहां एक प्यारी गाय को रोककर खुद पानी पीने लगे. राजा का यह कर्म धर्म के विपरीत था. हालांकि पूर्व जन्म के कुछ पुण्यों की वजह से राजा तो बन गए, लेकिन उस एक पाप के कारण संतान विहीन हैं. राजा के शुभचिंतकों ने महामुनि से पुत्र प्राप्त का उपाय पूछा. तब उन्होंने बताया कि सावन शुक्ल पक्ष की एकादशी को विधिपूर्वक व्रत रखें और उसका पुण्य राजा को दें. ऐसा करने से निश्चित रूप से सांतान की प्राप्ति होगी. महमुनि के कहने पर प्रजा ने ऐसा ही किया. प्रजा के साथ-साथ राजा ने भी एकादशी का व्रत रखा. कुछ महनों के बाद रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. माना जाता है कि तभी से पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाने लगा.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)