बिना कथा सुने सकट चौथ का व्रत माना जाता है अधूरा, जानिए गौरी गणेश से जुड़ी ये पौराणिक कथा

माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन सकट चौथ का व्रत रखा जाता है. इस साल सकट चौथ 21 जनवरी के दिन मनाई जाएगी. शास्त्रों के अनुसार, बिना कथा सुने कोई भी व्रत पूरा नहीं माना जाता है, इसीलिए सकट चौथ के दिन भी भक्तों को व्रत करने के बाद गणेश जी की कथा जरूर सुननी चाहिए.

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पढ़ें सकट चौथ से जुड़ी ये पौराणिक कथा
नई दिल्ली:

सकट चौथ का व्रत (Sakat Chauth Vrat) माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (Magh Month Chaturthi) के दिन रखा जाता है. इस साल सकट चौथ 21 जनवरी (Sakat Chauth 21st January) के दिन मनाई जाएगी. बता दें कि हर महीने में चतुर्थी तिथि दो बार आती हैं. पहली चतुर्थी तिथि शुक्ल पक्ष में आती है और दूसरी चतुर्थी तिथि कृष्ण पक्ष में आती है. मान्यता है कि इस दिन भगवान गौरी गणेश की विधि विधान से पूजा (Ganesh Ji Vrat) और व्रत रखने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है.

कहते हैं कि सकट चौथ का व्रत (Sakat Chauth Vrat) रखने से संतान और परिवार सुरक्षित रहता है. इतना ही नहीं, सकट चौथ के व्रत से जीवन में आ रही सभी समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है. सकट चौथ को संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों में यह कहा गया है कि किसी भी व्रत के बाद कथा सुनना बहुत ही महत्वपूर्ण होता है और इससे कई लाभ मिलते हैं. शास्त्रों के अनुसार, बिना कथा सुने कोई भी व्रत पूरा नहीं माना जाता है, इसीलिए सकट चौथ के दिन भी भक्तों को व्रत करने के बाद गणेश जी की कथा जरूर सुननी चाहिए.

सकट चौथ पहली व्रत कथा |Sakat Chauth Vrat katha

हिंदू शास्त्र के अनुसार, माघ माह में आने वाली सकट चौथ का विशेष महत्व माना जाता है. इसके पीछे की पौराणिक कथा विघ्नहर्ता भगवान गौरी गणेश जी से जुड़ी है. बताते हैं कि इस दिन गणपति महाराज पर बड़ा संकट आया था, जो टल गया था, इसी वजह से इस दिन को सकट चौथ के नाम से जाना जाता है. कथा के अनुसार, एक दिन माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं. इस दौरान उन्होंने अपने पुत्र भगवान गणेश को दरवाजे के बाहर पहरा देने का आदेश दिया. माता ने गणेश जी से कहा कि जब तक वे ना लौटें किसी को भी अंदर आने नहीं देना.

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मां की आज्ञा का पालन करते हुए गणेश जी पहरा देने लगे. उसके कुछ देर बाद वहां भगवान शिव माता पार्वती से मिलन पहुंचे, लेकिन गौरी गणेश ने भगवान शिव को दरवाजे पर ही रोक दिया. गणेश जी के रोकने पर क्रोधित भगवान शिव ने  त्रिशूल से वार कर बालक गणेश की गर्दन धड़ से अलग कर दी. गणेश जी की आवाज सुन माता पार्वती दौड़ी-दौड़ी बाहर आईं.

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भगवान गणेश को इस हालत में देख उन्होंने शिव जी से बेटे के प्राण वापस लाने की गुहार लगाई. तब शिव जी ने गणेश जी को जीवन दान दिया. भगवान शिव ने गणेश जी की गर्दन की जगह एक हाथी के बच्चे का सिर लगाया. उसी दिन से सभी महिलाएं अपने बच्चों की सलामती के लिए गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं.

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सकट चौथ पहली व्रत कथा |Sakat Chauth Vrat katha

सकट चौथ की दूसरी कथा मिट्टी के बर्तन बनाने वाले एक कुम्हार से संबंधित है. बताया जाता है कि एक राज्य में एक कुम्हार निवास करता था. एक दिन वह मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आवा ( मिट्टी के बर्तन पकाने के लिए आग जलाना ) लगा रहा था. उसने आवा तो लगा दिया, लेकिन उसमें मिट्टी के बर्तन पके नहीं. ये देख कुम्हार चिंतित हो उठा. इसके बाद वह राजा के पास पहुंचा और सारी बात बताई. कुम्हार की बात सुनकर राजा ने राज्य के राज पंडित को बुलाकर कुछ उपाय सुझाने को बोला. राज पंडित ने बताया कि, यदि गांव में हर दिन एक-एक घर से बच्चे की बलि दी जाए तो रोज आवा पकेगा.

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राज पंडित की बात सुनकर राजा ने आज्ञा दी की पूरे नगर से हर दिन एक बच्चे की बलि दी जाए. कई दिनों तक ऐसा चलता रहा. एक समय एक वृद्ध महिला के घर की बारी आई, लेकिन उसके बुढ़ापे का एकमात्र सहारा उसका अकेला बेटा अगर बलि चढ़ जाएगा तो वृद्ध महिला का क्या होगा, ये सोच-सोच वह चिंतित हो रही थी. इस दौरान उसने सकट की सुपारी और दूब देकर बेटे को कहा कि सकट माता तुम्हारी रक्षा करेंगी. वृद्ध महिला मन ही मन बार-बार सकट माता का स्मरण कर उनसे अपने बेटे की सलामती की कामना करने लगी.

अगली सुबह कुम्हार ने देखा की आवा भी पक गया और बालक भी पूरी तरह से सुरक्षित है. इसके बाद सकट माता की कृपा से नगर के अन्य बालक जिनकी बलि दी गई थी, वह सभी फिर से जीवित हो उठें, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, उसी दिन से सकट चौथ के दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए भगवान गौरी गणेश का विधि विधान से पूजन कर व्रत रखती हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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