Guru Purnima 2021 Date: गुरु पूर्णिमा कब है? आप भी जानें तारीख और गुरू-शिष्य की रोचक पौराणिक कथाएं

गुरू की महिमा ऐसी है कि उन्हें माता-पिता और ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है. ईश्वर जब मनुष्य के रूप में अवतार लेते हैं तो उन्हें भी गुरू की आवश्यकता होती है. गुरू पूर्णिमा के अवसर पर पढ़िए गुरू-शिष्य संबंधों पर आधारित रोचक पौराणिक कथाएं.

विज्ञापन
Read Time: 26 mins
आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा मनाई जाती है
नई दिल्‍ली:

Guru Purnima 2021 : महाभारत (Mahabharat) के रचयिता महान ऋषि वेद व्यास (Ved Vyas) का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन ही हुआ था, यही कारण है कि गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. इस दिन लोग ऋषि वेद व्यास, अपने गुरु, इष्ट और आराध्य देवताओं की पूजा करते हुए, उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. हमारे देश की प्राचीन परंपरा में गुरू को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है. गुरू की महिमा ऐसी है कि उन्हें मात-पिता और ईश्वर से भी बड़ा दर्जा दिया गया है. ईश्वर जब मनुष्य के रूप में अवतार लेते हैं तो उन्हें भी गुरू की आवश्यकता होती है. पौराणिक ग्रंथों की मानें तो ऋषि विश्वामित्र, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि सांदीपनी, ऋषि परशुराम ऐसे गुरू हुए हैं जिन्होंने पृथ्वी पर अवतार लेने वाले ईश्वर को भी शिक्षण दिया है. जाहिर है कि भारत में गुरू-शिष्य की परंपरा बेहद सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है. गुरू के सम्मान में आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा मनाई जाती है. इस साल ये दिन 24 जुलाई को आ रहा है. गुरू पूर्णिमा के अवसर पर पढ़िए गुरू-शिष्य संबंधों पर आधारित रोचक पौराणिक कथाएं.

एकलव्य-गुरू द्रोण की कथा

ये कथा द्वापर युग की है. एकलव्य नामक एक निषाद बालक ने महान गुरू द्रोणाचार्य को मन ही मन अपना गुरू मान लिया और उनकी पाषाण प्रतिमा बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा. इस प्रकार वह एक बेहतरीन धनुर्धर बन गया. एक बार जब द्रोणाचार्य ने एकलव्य को धनुर्विद्या का अभ्यास करते देखा तो स्वयं चौंक गए. द्रोणाचार्य ने एकलव्य से गुरुदक्षिणा के रूप में उसके दाएं हाथा का अंगूठा मांगा और एकलव्य ने प्रसन्नता से अपने गुरू के चरणों में अपना अंगूठा अर्पित कर दिया.

द्रोणाचार्य के आदेश पर अर्जुन का लक्ष्यवेध

द्रोणाचार्य कौरव व पांडव राजकुमारों के गुरू थे. एक बार उन्होंने अपने गुरुकुल में एक ऊंचे वृक्ष पर नकली पक्षी बांधकर अपने शिष्यों से पक्षी की आंख पर निशाना साधने को कहा. सभी राजकुमारों से पूछा गया कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है. सभी ने वृक्ष, पक्षी, आकाश, पत्ते, शाखें दिखाई देने की बात कहीं, लेकिन उनके परम प्रिय शिष्य अर्जुन ने कहा कि मुझे केवल वह लक्ष्य दिखाई दे रहा है, जिसे निशाना बनाने के लिए आपने आदेश दिया है, यानि पक्षी की आंख. गुरू अपने शिष्य अर्जुन के इस उत्तर से अति प्रसन्न हुए और अर्जुन लक्ष्यभेद में पूर्णत: सफल रहा.

Advertisement

आरुणि की गुरू भक्ति

आरुणि, ऋषि आयोदधौम्य का शिष्य था. एक बार आचार्य ने आरुणि को खेत में मेड़ जांचने के लिए भेजा. मेड़ एक ओर से टूट गई थी और वहां से पानी बह रहा था. आरुणि ने मेड़ बनाने का प्रयत्न किया लेकिन लगातार हो रही वर्षा के कारण वह मेड़ बनाने में सफल नहीं हो पा रहा था. आखिरकार आरुणि गुरू के आदेश के पालन के लिए स्वयं खेत की मेड़ पर इस प्रकार लेट गया कि पानी बहने से रोका जा सके. कई घंटे वह इसी प्रकार लेटा रहा. बाद में जब आचार्य आयोदधौम्य और दूसरे शिष्य आरुणि को ढूंढते हुए वहां पहुंचे तो आरुणि की गुरूभक्ति देश आश्चर्य में पड़ गए. आचार्य ने आरुणि को अपने ह्रदय से लगा लिया.

Advertisement

कर्ण-परशुराम कथा

गुरू परशुराम उस समय केवल ब्राह्मणों को शिक्षा दिया करते थे. कर्ण की पहचान सूतपुत्र की थी. ऐसे में कर्ण ने कोई उपाय न पाकर झूठ बोला और स्वयं का परिचय ब्राह्मण के रूप में देकर परशुराम के शिष्य बन गए. एक दिन परशुराम अपने शिष्य कर्ण की गोद में सिर रखकर विश्राम कर रहे थे. उसी समय एक कीट आया और कर्ण की जंघा पर काटने लगा. गुरू के विश्राम में कोई खलल न पड़े इसके लिए कर्ण ने अपनी जंघा को हिलना तक मुनासिब नहीं समझा. कीट कर्ण की जंघा को कुरेद रहा था, जिसके कारण उसका रक्त तेजी से बहने लगा. इतने में गुरू परशुराम की नींद खुल गई. पहले तो वे कर्ण की गुरू भक्ति से बेहद प्रसन्न हुए, लेकिन अगले ही क्षण उन्होंने कहा- “कोई ब्राह्मण इतनी पीड़ा सहन नहीं कर सकता, सत्य बता तू कौन है.” कर्ण की चोरी पकड़ी गई और गुस्से में परशुराम ने कर्ण को श्राप दिया कि झूठ बोलकर हासिल की गई विद्या को वह उस समय भूल जाएगा जब उसे इसकी सबसे ज्यादा आवश्यकता होगी.

Advertisement

गुरू की आज्ञा से उनके ही साथ युद्ध करने के लिए राजी हुए भीष्म

काशीराज की कन्या अंबा गुरू परशुराम की शरण में पहुंची और उन्हें कहा कि आपके शिष्य भीष्म ने मेरा लगन मंडप से हरण किया है, लेकिन अब मुझसे विवाह करने को तैयार नहीं है. परशुराम ने भीष्म को बुलाया और उनसे अंबा से विवाह करने को कहा. भीष्म ने अपनी प्रतिज्ञा का हवाला देते हुए इसमें असमर्थता जाहिर की. तब परशुराम ने कहा- “फिर मुझसे युद्ध करो.”. भीष्म अपने ही गुरू से युद्ध करने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन परशुराम ने इसे गुरुआज्ञा कहा. ऐसे में भीष्म के पास अपने गुरू से युद्ध करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. गुरू की आज्ञा पर भीष्म ने गुरू के साथ ही युद्ध किया. कई दिनों तक चला भीष्म-परशुराम युद्ध बिना परिणाम के ही समाप्त हो गया.

Advertisement
Featured Video Of The Day
US Election 2024: शुरुआती रुझानों में Donald Trump आगे, Kamala Harris दे रहीं टक्कर, कहां से कौन आगे