Rama Ekadashi 2019: आज है रमा एकादशी, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और महत्‍व

रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का विशेष महत्‍व है. इस एकादशी (Ekadashi) को रम्‍भा एकादशी (Rambha Ekadashi) के नाम से भी जाना जाता है. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश हो जाता है.

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Rama Ekadashi 2019: रमा एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु के साथ ही मां लक्ष्‍मी की पूजा का विधान है
नई दिल्‍ली:

रमा एकादशी (Rama Ekadashi) का हिन्‍दू धर्म में बड़ा महात्‍म्‍य है. मान्‍यता है कि इस व्रत के प्रभाव से सभी पाप नष्‍ट हो जाते हैं. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार जो भक्‍त सच्‍चे मन और विधि विधान से रमा एकादशी का व्रत करता है, कथा पढ़ता है या सुनता है उसे सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है और मृत्‍यु उपरांत उसे विष्‍णु लोक की प्राप्‍ति होती है. इस एकादशी (Ekadashi) के दिन भगवान विष्‍णु के साथ ही मां लक्ष्‍मी का पूजन (Maa Lakshmi Puja) करना भी बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है. रमा एकादशी धनतेरस से एक दिन पहले आती है.

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रमा एकादशी कब है
हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्‍ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहते हैं. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक यह एकादशी हर साल अक्‍टूबर या नवंबर महीने में आती है. इस बार रमा एकादशी 24 अक्‍टूबर को है.

रमा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त 
रमा एकादशी की तिथि:
24 अक्‍टूबर 2019
एकादशी तिथि आरंभ:  24 अक्‍टूबर 2019 को सुबह 01 बजकर 09 मिनट तक 
एकादशी तिथि समाप्‍त: 24 अक्‍टूबर 2019 को रात 10 बजकर 19 मिनट तक
द्वादश के दिन पारण का समय: 25 अक्‍टूबर 2019 सुबह 06 बजकर 32 मिनट से सुबह 08 बजकर 45 मिनट तक
द्वादश तिथि समाप्‍त: 25 अक्‍टूबर 2019 को शाम 07 बजकर 08 मिनट तक 

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रमा एकादशी का महत्‍व 
हिन्‍दू धर्म में रमा एकादशी का विशेष महत्‍व है. इस एकादशी को रम्‍भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्‍यता है कि इस व्रत को करने से सभी पापों का नाश हो जाता है. कहते हैं कि इस व्रत की कथा सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के बारबर पुण्‍य मिलता है. पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार रमा एकादशी के दिन भगवानविष्‍णु के साथ मां लक्ष्‍मी की पूजा करने से दरिद्रता दूर भाग जाती है और घर धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है.

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रमा एकादशी की पूजा विधि 
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रमा एकादशी का व्रत करने वाले को एक दिन पहले यानी कि दशमी से ही व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए. 
- व्रत के दिन सुबह जल्‍दी उठकर स्‍नान करें और स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. 
- एकादशी का व्रत निर्जला होता है. 
- अब घर के मंदिर में विष्‍णु की प्रतिमा स्‍थापित करें. 
- विष्‍णु की प्रतिमा को तुलसी दल, फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें 
- अब विष्‍णु जी की आरती उतारें और घर के सभी सदस्‍यों में प्रसाद वितरित करें. 
- मां लक्ष्‍मी का दूसरा नाम रमा है. यही वजह है कि इस एकादशी में भगवान विष्‍णु के साथ मां लक्ष्‍मी की पूजा भी की जाती है. 
- इस दिन घर में सुंदर कांड का आयोजन करना शुभ माना जाता है. 
- रात के समय सोना नहीं चाहिए. भगवान का भजन-कीर्तन करना चाहिए. 
- अगले दिन पारण के समय किसी ब्राह्मण या गरीब को यथाशक्ति भोजन कराए और दक्षिणा देकर विदा करें. 
- इसके बाद अन्‍न और जल ग्रहण कर व्रत का पारण करें.

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रमा एकादशी व्रत के नियम
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कांसे के बर्तन में भोजन न करें
- नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्‍जी और शहद का सेवन न करें.
- कामवासना का त्‍याग करें. 
- व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए. 
- पान खाने और दातुन करने की मनाही है.
- जो लोग एकादशी का व्रत नहीं कर रहे हैं उन्‍हें भी इस दिन चावल और उससे बने पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए. 

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रमा एकदशी व्रत कथा 
पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार प्राचीनकाल में मुचुकुंद नाम का एक राजा था. उसकी इंद्र के साथ मित्रता थी और साथ ही यम, कुबेर, वरुण और विभीषण भी उसके मित्र थे. राजा बड़ा धर्मात्मा, विष्णुभक्त और न्याय के साथ राज करता था. उस राजा की एक कन्या थी, जिसका नाम चंद्रभागा था. उस कन्या का विवाह चंद्रसेन के पुत्र शोभन के साथ हुआ था. एक समय वह शोभन ससुराल आया. उन्हीं दिनों जल्दी ही रमा एकादशी भी आने वाली थी. 

जब व्रत का दिन समीप आ गया तो चंद्रभागा के मन में अत्यंत सोच उत्पन्न हुआ कि उसके पति अत्यंत दुर्बल हैं और पिता की आज्ञा अति कठोर है. दशमी को राजा ने ढोल बजवाकर सारे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए. ढोल की घोषणा सुनते ही शोभन को अत्यंत चिंता हुई और अपनी पत्नी से कहा, "हे प्रिये! अब क्या करना चाहिए, मैं किसी प्रकार भी भूख सहन नहीं कर सकूंगा. ऐसा उपाय बतलाओ कि जिससे मेरे प्राण बच सकें, अन्यथा मेरे प्राण अवश्य चले जाएंगे."

चंद्रभागा कहने लगी, "हे स्वामी! मेरे पिता के राज में एकादशी के दिन कोई भी भोजन नहीं करता. हाथी, घोड़ा, ऊंट, बिल्ली, गौ आदि भी तृण, अन्न, जल आदि ग्रहण नहीं कर सकते, फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या है. यदि आप भोजन करना चाहते हैं तो किसी दूसरे स्थान पर चले जाइए, क्योंकि यदि आप यहीं रहना चाहते हैं तो आपको अवश्य व्रत करना पड़ेगा." ऐसा सुनकर शोभन कहने लगा, "हे प्रिये! मैं अवश्य व्रत करूंगा, जो भाग्य में होगा, वह देखा जाएगा." 

इस प्रकार से विचार कर शोभन ने व्रत रख लिया और वह भूख व प्यास से अत्यंत पीडि़त होने लगा. जब सूर्य नारायण अस्त हो गए और रात्रि को जागरण का समय आया जो वैष्णवों को अत्यंत हर्ष देने वाला था, परंतु शोभन के लिए अत्यंत दु:खदायी हुआ. प्रात:काल होते शोभन के प्राण निकल गए. तब राजा ने सुगंधित काष्ठ से उसका दाह संस्कार करवाया. शोभन की अंत्येष्टि क्रिया के बाद अपने पिता के घर में ही रहने लगी.

रमा एकादशी के प्रभाव से शोभन को मंदराचल पर्वत पर धन-धान्य से युक्त तथा शत्रुओं से रहित एक सुंदर देवपुर प्राप्त हुआ. वह अत्यंत सुंदर रत्न और वैदुर्यमणि जटित स्वर्ण के खंभों पर निर्मित अनेक प्रकार की स्फटिक मणियों से सुशोभित भवन में बहुमूल्य वस्त्राभूषणों तथा छत्र व चंवर से विभूषित, गंधर्व और अप्सराओं से युक्त सिंहासन पर आरूढ़ ऐसा शोभायमान होता था मानो दूसरा इंद्र विराजमान हो.

एक समय मुचुकुंद नगर में रहने वाले एक सोम शर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थयात्रा करता हुआ घूमता-घूमता उधर जा निकला और उसने शोभन को पहचान कर कहा कि यह तो राजा का जमाई शोभन है, उसके निकट गया. शोभन भी उसे पहचान कर अपने आसन से उठकर उसके पास आया और प्रणामादि करके कुशल प्रश्न किया. ब्राह्मण ने कहा, "राजा मुचुकुंद और आपकी पत्नी कुशल से हैं. नगर में भी सब प्रकार से कुशल हैं, परंतु हे राजन! हमें आश्चर्य हो रहा है. आप अपना वृत्तांत कहिए कि ऐसा सुंदर नगर जो न कभी देखा, न सुना, आपको कैसे प्राप्त हुआ."

तब शोभन बोला कि कार्तिक कृष्ण की रमा एकादशी का व्रत करने से मुझे यह नगर प्राप्त हुआ, परंतु यह अस्थिर है. यह स्थिर हो जाए ऐसा उपाय कीजिए. ब्राह्मण कहने लगा, "हे राजन! यह स्थिर क्यों नहीं है और कैसे स्थिर हो सकता है आप बताइए, फिर मैं अवश्यमेव वह उपाय करूंगा. मेरी इस बात को आप मिथ्या न समझिए." शोभन ने कहा, "मैंने इस व्रत को श्रद्धारहित होकर किया है. अत: यह सब कुछ अस्थिर है. यदि आप मुचुकुंद की कन्या चंद्रभागा को यह सब वृत्तांत कहें तो यह स्थिर हो सकता है."

ऐसा सुनकर उस श्रेष्ठ ब्राह्मण ने अपने नगर लौटकर चंद्रभागा से सब वृत्तांत कह सुनाया. ब्राह्मण के वचन सुनकर चंद्रभागा बड़ी प्रसन्नता से ब्राह्मण से कहने लगी, "हे ब्राह्मण! ये सब बातें आपने प्रत्यक्ष देखी हैं या स्वप्न की बातें कर रहे हैं." ब्राह्मण कहने लगा, "हे पुत्री! मैंने महावन में तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है. साथ ही किसी से विजय न हो ऐसा देवताओं के नगर के समान उनका नगर भी देखा है. उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थिर नहीं है. जिस प्रकार वह स्थिर रह सके सो उपाय करना चाहिए."

चंद्रभागा कहने लगी, "हे विप्र! तुम मुझे वहां ले चलो, मुझे पतिदेव के दर्शन की तीव्र लालसा है. मैं अपने किए हुए पुण्य से उस नगर को स्थिर बना दूंगी. आप ऐसा कार्य कीजिए जिससे उनका हमारा संयोग हो क्योंकि वियोगी को मिला देना महान पु्ण्य है." यह बात सुनकर ब्राह्मण चंद्रभागा को लेकर मंदराचल पर्वत के समीप वामदेव ऋषि के आश्रम पर गया. वामदेवजी ने सारी बात सुनकर वेद मंत्रों के उच्चारण से चंद्रभागा का अभिषेक कर दिया. तब ऋषि के मंत्र के प्रभाव और एकादशी के व्रत से चंद्रभागा का शरीर दिव्य हो गया और वह दिव्य गति को प्राप्त हुई.

इसके बाद बड़ी प्रसन्नता के साथ अपने पति के निकट गई. अपनी प्रिय पत्नी को आते देखकर शोभन अति प्रसन्न हुआ और उसे बुलाकर अपनी बाईं तरफ बिठा लिया. चंद्रभागा कहने लगी, "हे प्राणनाथ! आप मेरे पुण्य को ग्रहण कीजिए. अपने पिता के घर जब मैं आठ वर्ष की थी तब से विधिपूर्वक एकादशी के व्रत को श्रद्धापूर्वक करती आ रही हूं. इस पुण्य के प्रताप से आपका यह नगर स्थिर हो जाएगा और समस्त कर्मों से युक्त होकर प्रलय के अंत तक रहेगा." 

इस प्रकार चंद्रभागा ने दिव्य आभू‍षणों और वस्त्रों से सुसज्जित होकर अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी. 

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