Prayagraj Shaktipeeth: त्रिशक्ति के दर्शन बगैर अधूरी है आपकी प्रयागराज यात्रा, जानें कहां है कुंभ नगरी का शक्तिपीठ?

​Prayagraj ke Shaktipeeth: आपकी कुंभ नगरी प्रयागराज की धार्मिक यात्रा तब तक अधूरी है, जब तक आप यहां पर स्थित त्रिशक्ति मां ललिता, मां कल्याणी और मां अलोपशंकरी के दर्शन नहीं कर लेते हैं. देवी के इन पावन पीठों में किसका सबंध सती के 52 शक्तिपीठों से जुड़ा हुआ है? नवरात्रि में इन देवियों के दर्शन का पुण्यफल मिलता है, जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख. 

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Prayagraj ke Shaktipeeth: प्रयागराज के प्रसिद्ध देवी मंदिर
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Famous Devi Temples in Prayagraj: कुंभ नगरी प्रयागराज न सिर्फ मां गंगा, मां यमुना और मां सरस्वती के पवित्र संगम और हर 6 और 12 साल में लगने वाले कुंभ मेले के लिए जाना जाता है, बल्कि यह त्रि​शक्ति के दर्शन और और पूजन के लिए भी प्रसिद्ध है. देश के 52 शक्तिपीठ में से एक पावन पीठ इसी शहर में स्थित है. यही कारण है कि प्रयाराज आने वाला कोई भी व्यक्ति संगम स्नान के साथ यहां की तीन देवियों मां कल्याणी, मां ललिता और अलोपशंकरी देवी का दर्शन करना नहीं भूलता है. प्रयागराज में शक्ति के इन तीन पावन धाम का क्या महत्व है, आइए इसे विस्तार से जानते हैं. 

कल्याणी देवी मंदिर (Kalyani Devi Temple, Prayagraj)

प्रयागराज जिन तीन देवी धाम के दर्शन करना बेहद शुभ और मंगलकारी माना गया है, उसमें मां कल्याणी मंदिर अत्यंत ही प्रसिद्ध है. गौरतलब है कि नवरात्रि में चार साल की कन्या को पूजने पर मां कल्याणी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. बहरहाल, प्रयागराज में स्थित मां कल्याणी का यह मंदिर काफी प्राचीन माना जाता है. मान्यता है कि महर्षि याज्ञवल्क्य ने कभी इसी सिद्ध स्थान पर मां कल्याणी की 32 अंगुल वाली प्रतिमा को स्थापित करके साधना की थी. 

Photo Credit: Facebook@Prayagraj

मां कल्याणी की यह मूर्ति बेहद आकर्षक है, जिसमें एक शिला में मां कल्याणी के साथ शिव-पार्वती, मां छिन्नमस्तिका, परमपिता ब्रह्मा जी, गणपति और संकटमोचक हनुमान जी स्थापित हैं. देवी के इस पावन धाम पर साल में पड़ने वाली चारों नवरात्रि पर भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. न सिर्फ नवरात्रि बल्कि पूरे साल यहां पर कोई न कोई यज्ञ या देवी पूजन चलता रहता है. 

अलोपीदेवी मंदिर (Alopi Devi Temple, Prayagraj)

प्रयागराज की तीन बड़ी शक्तियों में मां अलोपीदेवी (अलोपशंकरी देवी मंदिर)  का बड़ा नाम है. संगमतट से कुछ ही दूरी पर गंगा नदी के किनारे स्थित इस पावनपीठ का संबंध भी सती की कथा से जोड़ा जाता है. ​हिंदू मान्यता के अनुसार इस स्थान पर कभी सती का पंजा गिरा था. मान्यता है कि मां सती का पंजा यहां के हवन कुंड में गिरते ही लोप हो गया था, जिसके कारण यह सिद्धपीठ अलोपी देवी कहलाया. 

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देवी के इस शक्तिपीठ की खासियत है कि यहां पर माता की कोई प्रतिमा नहीं है. यहां सिर्फ देवी का एक झूला है, जिसमें उनकी अदृश्य शक्तियां समाहित मानी जाती हैं. पुष्प, लाल चुनरी, घंटियों आदि से सुसज्जित इस पावन झूले को ही देवी का प्रतीक माना जाता है. यहां आने वाला साधक अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए एक लाल रंग का धागा बांधता है और जब वह पूरी हो जाती है तो कोई भी एक धागा खोलकर मां को धन्यवाद देता है. देवी के इस मंदिर में पूरे साल भक्तों की भारी भीड़ रहती है. 

ललिता देवी मंदिर (Lalita Devi Temple, Prayagraj)

प्रयागराज में जहां अलोपी देवी का मंदिर गंगा नदी के किनारे स्थित है, वहीं मां ललिता का पावन धाम यमुना किनारे मीरापुर मोहल्ले में स्थित है. पौराणिक मान्यता के अनुसार जब महादेव सती के अधजले अंग को लेकर घूम रहे थे, तब भगवान विष्णु ने उनके मोह को दूर करने के लिए चक्र से सती का शरीर काट दिया था, जिसके बाद उनके तमाम भाग अलग-अलग स्थान पर गिरे थे.

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हिंदू मान्यता के अनुसार प्रयाग राज में इसी स्थान पर माता की अंगुलियां गिरी थीं. जिसके बाद से अब तक यह स्थान देवी के ललिता धाम के रूप में पूजा जाता है. 52 शक्तिपीठों में से एक ललिता के इस मंदिर में नवरात्रि के समय भारी भीड़ जुटती है. प्रयागराज की यात्रा करने वाला कोई भी व्यक्ति देवी के इस पावन शक्तिपीठ में आना नहीं भूलता है. मान्यता है कि मां ललिता के आशीर्वाद से व्यक्ति को भोग और मोक्ष दोनों की ही प्राप्ति होती है. 

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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