Paryushan Parv 2025: कब से शुरू होगा पर्युषण पर्व, जानें श्वेतांबर और दिगंबर कब और क्यों रखेंगे यह व्रत?

Paryushan Parv 2025: क्या होता है पर्युषण पर्व? जैन धर्म में इसका क्या महत्व है और यह कब मनाया जाता है? श्वेतांबर और दिगंबर इसे ​कितने दिनों तक मनाते हैं? जैन धर्म से जुड़े इस महाव्रत की विधि, धार्मिक महत्व और जप-तप के नियम आदि के बारे में विस्तार से जानने के लिए जरूर पढ़ें ये लेख. 

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श्वेतांबर और दिगंबर कब मनाएंगे पर्युषण पर्व? 

Paryushan Parv 2025 kab hai: जैन धर्म से पर्युषण पर्व का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। यह एक आध्यात्मिक पर्व है जो कि हर साल भाद्रपद मास में मनाया जाता है. पर्युषण पर्व कुल 18 दिनों का होता है. जिसमें 8 दिन श्वेतांबर के लिए होते हैं और 10 दिन दिगंबर संप्रदाय से संबंधित होते हैं. जिस दिन श्वेतांबर परंपरा का यह व्रत खत्म होता है, उसी दिन से दशलक्षण पर्व दिगंबर परंपरा के लिए प्रारंभ होता है. आइए जानते हैं कि इस साल पयुर्षण पर्व कब से कब मनाया जाएगा? इसकी विधि और धार्मिक महत्व क्या है?

कब है पर्युषण पर्व 

श्वेतांबर समुदाय के लोग भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि से लेकर भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तक पर्युषण पर्व को मनाते हैं. वहीं दिगंबर संप्रदाय से जुड़े लोग पर्युषण पर्व को भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि से प्रारंभ करके भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथि तक मनाते हैं. पंचांग के अनुसार इस साल श्वेतांबर संप्रदाय के लोग पर्युषण पर्व को 21 से 28 अगस्त 2025 के बीच में और दिगंबर संप्रदाय के लोग इस व्रत को 28 अगस्त 2025 से 06 सितंबर 2025 के मध्य में मनाएंगे. 

क्यों मनाया जाता है पयुर्षण पर्व?

जाने-माने आध्यात्मिक गुरु और जैन भिक्षु आचार्य डॉ. लोकेश मुनि के अनुसार जिस प्रकार चातुर्मास की परंपरा है, कुछ वैसे ही जैन धर्म में महावीर भगवान के काल से वर्षा ऋतु के दौरान साधु-साध्वी एक स्थान पर रहते हुए अपने तप, स्वाध्याय आदि में संलग्न रहते रहे हैं. इसके साथ पूरे साल भर में जो भी जाने-अनजाने में एक दूसरे के प्रति व्यवहार में वाणी, व्यवहार या फिर कर्म के माध्यम से किसी को पीड़ा पहुंची हो तो उन सभी से क्षमा मांगने और क्षमा करने का यह महापर्व है. 

कैसे मनाया जाता है पर्युषण पर्व

भगवान महावीर ने तप के 12 प्रकार - अनशन, अवमौदर्य, वृत्तिपरिसंख्या, रसपरित्याग कायक्लेश, संल्लिणता, आभ्यंतर तप, प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य, स्वाध्याय, ध्यान, और व्युत्सर्ग बताए हैं. इन सभी के माध्यम से आत्मचिंतन करने की सीख दी गई है. पर्युषण पर्व में लोग लोग अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार व्रत रखते हैं. कोई तीन दिन का तो कोई आठ दिन का उपवास रखता है. इस उपवास में जल के सिवा कुछ भी नहीं लिया जाता है. कुछ लोग इस व्रत को 30 दिनों तक भी रखते हैं. 

जैन भिक्षु आचार्य डॉ. लोकेश मुनि के अनुसार पर्युषण व्रत के दौरान लोग भगवान महावीर की मूल वाणी यानि आगम आदि का स्वाध्याय और मंत्रों का जप करते हैं. चूंकि महावीर भगवान ने ध्यान पर बहुत ज्यादा जोर दिया है, इसलिए कुछ लोग मौन रहते हुए इन दिनों में ध्यान भी करते हैं. महावीर के जीवनकाल में जो तपस्या और ज्ञान सबसे ज्यादा प्रमुख रही, वह इस व्रत में भी आपको देखने को मिलेगी. यह अपनी आंतरिक शक्तियों को जगाने का भी पर्व है. 

पर्युषण पर्व के दौरान क्या न करें 

  • पर्युषण पर्व के दौरान व्रती को क्रोध करने से बचना चाहिए. 
  • पयुर्षण व्रत को रखने वाले को किसी भी प्रकार का छल, कपट, प्रपंच और लालच नहीं करना चाहिए. 
  • चूंकि अन्न का मन पर सीधा प्रभाव पड़ता है, इसलिए पर्युषण पर्व के दौरान तामसिक चीजों का भूलकर भी सेवन न करें.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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