NDTV World Summit 2025 Nick Booker : इंडोजीनियस (IndoGenius) के सह-संस्थापक और सीईओ ब्रिटिश नागरिक निक बुकर भारतीय ज्ञान परंपरा के काफी मुरीद हैं और इन विषयों को लेकर अक्सर रोचक वीडियो बनाने वाले बुकर के लाखों की संख्या में फालोवर्स हैं. अपनी इसी बात को निक बुकर ने एनडीटीवी वर्ल्ड समिट 2025 में रखते हुए कहा कि दुनिया अब उस भारतीय सदी के पहले दशक में जी रही है, जिसके लिए 21वीं सदी भारतीय सभ्यता के पुनरुत्थान का प्रतीक साबित होगी. उन्होंने इस मौके पर भारतीय और यूरोपीय चिंतन के दृष्टिकोणों की तुलना करते हुए बताया कि आखिर कैसे प्राचीन भारतीय विचार आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) को संभव बनाने में मदद करते हैं.
भारतीय ग्रंथों में पहले से मौजूद है नई तकनीक का ज्ञान
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जिसे चौथी औद्योगिक क्रांति का नाम दिया जा रहा है वह नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग पर आधारित है. इसका जो एल्गोरिदम है वह हमारे प्राचीन शास्त्रों में निहित है. इसी बात को निक बुकर ने स्लाइड के जरिए बताने की कोशिश की और कहा कि यज्ञ के लिए बनाई जाने वाली वेदियां और इससे जुड़े अनुष्ठान आदि में किस तरह ज्यामिति और एल्गोरिदम का प्रारंभिक रूप समाहित था. उसमें यह पूर्णत: स्पष्ट था कि हमारी यज्ञ वेदी किस तरह की होगी.
इसी प्रकार ज्यामिति के शुल्ब सूत्र और आर्यभट्ट और ब्रह्मगुप्त के समय खगोल विज्ञान के बारे बताया कि किस तरह वे गणित के माध्यम से सटीक गणना करते हुए लौकिक भविष्यवाणी किया करते थे. उन्होंने स्लाइड के जरिए यह तर्क देने की कोशिश की कि जिस बाइनरी सिस्टम और नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग पर आर्टिफिसियल सिस्टम बेस्ड है, वो सारी चीजें प्राचीन भारतीय ग्रंथों और शास्त्रों में पहले से मौजूद थीं. जिसे बाद में तमाम लोगों ने नये तरीके से पेश करने का काम किया.
निक बुकर ने भारत के उस अमूल्य ज्ञान-विज्ञान को स्लाइड के जरिए बताने की कोशिश की जिसकी अद्भुत क्षमता का आंकलन करने में भारतीय नाकाम रहे, जबकि यूरोप देशों में उसे नये स्वरूप में प्रस्तुत करके आधुनिक ज्ञान-विज्ञान का स्वरूप दिया. उन्होंने यह समझाने की कोशिश की कि भारत कैसे इस चौथी औद्योगिक क्रांति का नेतृत्व कर सकता है और किस तरह हम पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान से अलग हैं.
कुंभ की महिमा का गान
निक बुकर प्रयागराज में इस साल हुए महाकुंभ की याद को एक वीडियो के जरिए साझा करते हुए कहते हैं कि उन्होंने इसके सभी 6 शाही स्नान पर संगम में डुबकी लगाई. साथ ही साथ वे एक फोटो स्लाइड के जरिए त्रिवेणी संगम के उस पावन स्थान की महिमा को बताने का प्रयास करते हैं, जहां आज भी आपको गंगा, यमुना और पुराणो में वर्णित मां सरस्वती का संगम होता हुआ नजर आता है.
कुंभ और समुद्र मंथन का उदाहरण देते हुए निक बुकर ने कहा सिलिकान वैली में दो तरह की फोर्सेस हैं. बिल्कुल वैसे ही जैसे कभी पौराणिक काल में समुद्र मंथन के समय में देवता और दैत्य के रूप में थी. समुद्र मंथन के समय जब जहर निकलता है तो उसे पीने के लिए कोई तैयार नहीं होता है, लेकिन जब अमृत कलश निकलता है तो उसे पाने के लिए लड़ाई शुरु हो जाती है. कहने का तात्पर्य यह कि जब किसी चीज में मंथन होता है तो उसकी नकारात्मक चीजों से लोग दूर भागते हैं लेकिन, उसके प्रॉफिट और श्रेय को लूटने वालों के बीच होड़ लग जाती है.
उन्होंने यह तर्क देने की कोशिश की भारतीय दर्शन और ज्ञान प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाते हुए आगे बढ़ता है, जबकि पश्चिमी ज्ञान सूचनाओं पर एकत्रित आंकड़े पर आधारित है. इसी बात को एआई का उदाहरण देते हैं कि उसमें सबसे बड़ी दिक्कत है कि जो डाटा हमारे पास उपलब्ध है, उसी के आधार पर वह अपना निष्कर्ष देता है, जबकि भारतीय प्राचीन विज्ञान प्रकृति से सीख करके आगे बढ़ता था, जबकि आज के दौर में ज्यादातर चीजें कृतिम है. कुंभ और अन्य चीजों के संदर्भ में उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय ज्ञान-विज्ञान प्रकृति को चुनौती न देकर बल्कि उससे सीखते हुए और उसके सामंजस्य बिठाते हुए आगे बढ़ता है.
प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाता है भारतीय ज्ञान-विज्ञान
बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के इतिहासकार डा. सुशील पांडेय निक बुकर के तर्क को सही ठहराते हुए कहते हैं कि जब हम अपनी पांडुलिपियों पर नजर दौड़ाते हैं तो हमें अपने वास्तविक भारत की आत्मा नजर आती है, जिसमें हमारे वेद, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान, आयुर्वेद और ज्योतिष शास्त्र शामिल था. निक बुकर भी यही बात कह रहे हैं कि जिस बाइनरी सिस्टम का आज उपयोग में लाया जा रहा है, उसे भारतीयों ने बहुत पहले ही कर दिया. इसे बाद में युरोपियन सांइटिस्ट ने लोगों को बताया.
निक बुकर ने इस बात को समझाने की कोशिश की है कि भारतीय दर्शन में छोटे-छोटे तत्वों को भी बहुत ज्यादा महत्व दिया गया है. भारतीय वेद, पुराण आदि धार्मिक ग्रंथ प्रकृति से संघर्ष न करने की बजाय उसके साथ तालमेल बिठाते हुए आगे बढ़ने की सीख देते हैं. वे प्रयागराज महाकुंभ की आध्यात्मिक उर्जा और विशिष्ट ज्ञान-विज्ञान को बताना चाह रहे हैं जो प्रकृति के साथ सामंजस्य पर आधारित है. यही कारण है कि मौजूदा दौर में जो भी समस्याएं सामने आ रही हैं, उसका समाधान भारतीय दर्शन में है.