6000 साल पुराना है मां छिन्नमस्तिका का ये रहस्यमय मंदिर

असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है, जो झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है. आइए आपको बताते हैं इस शक्तिपीठ से जुड़ी और बातें.

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क्या आप जानते हैं माता छिन्नमस्तिका के इस शक्तिपीठ के बारे में...
नई दिल्ली:

गुप्त नवरात्रि में विद्या की दस महादेवियों की पूजा-उपासना की जाती है. ये दस महादेवियां मां तारा, मां त्रिपुर सुंदरी, मां भुवनेश्वरी, मां छिन्नमस्ता, मां काली, मां त्रिपुर भैरवी, मां धूमावती, मां बगलामुखी, मां मातंगी, मां कमला हैं, इनमें छठी देवी हैं मां छिन्नमस्तिका, जिनका एक मंदिर झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है. देवी का यह स्थान छिन्नमस्तिका मंदिर शक्तिपीठ के रूप में काफी विख्यात है. कहा जाता है कि इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है.

नवरात्रि के पावन मौके पर देवी के स्थान में श्रद्धालुओं का जमघट लगा रहता है. मान्यता है कि मां इस मंदिर में दर्शन के लिए आए सभी भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं. कहा जाता है कि कहना है इस मंदिर का निर्माण 6000 साल पहले हुआ था. वहीं, कई लोग इसे महाभारतकालीन का मंदिर बताते हैं. यहां हर साल बड़ी संख्या में साधु, महात्मा और श्रद्धालु नवरात्रि में शामिल होने के लिए आते हैं.

यहां स्थित है मंदिर

बता दें कि असम में स्थित मां कामाख्या मंदिर को दुनिया की सबसे बड़ी शक्तिपीठ कहा जाता है, जबकि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी शक्तिपीठ रजरप्पा में स्थित मां का छिन्नमस्तिका मंदिर है, जो झारखंड की राजधानी रांची से करीब 80 किलोमीटर दूर रजरप्पा में स्थित है. यहां छिन्नमस्तिका मंदिर के अलावा, महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से कुल सात मंदिर हैं.

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रजरप्पा के भैरवी-भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिके मंदिर आस्था की धरोहर है. मंदिर की उत्तरी दीवार के साथ रखे एक शिलाखंड पर दक्षिण की ओर रुख किए माता छिन्नमस्तिका का दिव्य रूप अंकित है. पश्चिम दिशा से दामोदर और दक्षिण दिशा से कलकल करती भैरवी नदी का दामोदर में मिलना मंदिर की खूबसूरती का बढ़ावा देता है.

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ऐसा है मां का स्वरूप

मंदिर के अंदर देवी मां काली की प्रतिमा है, जो दाएं हाथ में तलवार और बाएं हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर लिए हैं. शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं. बायां पैर आगे की ओर बढ़ाए हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी हैं. पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति शयनावस्था में हैं.

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मां छिन्नमस्तिके का गला सर्पमाला और मुंडमाल से सुशोभित है. खुले केश, आभूषणों से सुसज्जित हैं. इनके अगल-बगल डाकिनी और शाकिनी (पौराणिक कथा में इन्हें जया और विजया के रूप में बतलाया गया है) खड़ी हैं, जिन्हें वह रक्तपान करा रही हैं और स्वयं भी रक्तपान कर रही हैं. इनके गले से रक्त की तीन धाराएं बह रही हैं. 

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इसलिए काटा देवी ने सिर

माता द्वारा सिर काटने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके मुताबिक, एक समय की बात है मां भगवती अपनी सहचरियों जया और विजया के साथ मंदाकनी नदी में स्नान-ध्यान कर रही थी. उसी समय माता की सहचरियों को तीव्र गति से भूख लगी. बढ़ती भूख की पीड़ा के चलते माता की दोनों सहचरियों का चेहरा मलीन पड़ गया. इस दौरान माता की सहचारियों ने उनसे भोजन की व्यवस्था करने की याचना की.

सहचरियों की याचना को सुनकर माता ने कहा, सखियों! आप थोड़ा धैर्य रखें. स्नान करने के पश्चात आपके भोजन की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन तेज भूख लगने के चलते माता की दोनों सहचरियों ने पुन: उनसे तत्काल भोजन प्रबंध की याचना की. इस दौरान मां भगवती ने तत्काल अपने खडग से अपना सिर काट लिया. तत्क्षण मां भगवती का कटा सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा. इससे रक्त की तीन धाराएं निकली. दो धाराओं से सहचरियों आहार ग्रहण करने लगी. वहीं, तीसरी रक्त धारा से मां स्वंय रक्त पान करने लगी. बताया जाता है कि उसी समय मां छिन्नमस्तिका का प्रादुर्भाव हुआ.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)