Matri Navami 2021: आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को मातृ नवमी (Matri Navami) का श्राद्ध कर्म किया जाता है. नवमी तिथि श्राद्ध पक्ष में बहुत श्रेष्ठ श्राद्ध माना गया है. नवमी तिथि को माता और परिवार की विवाहित महिलाओं का श्राद्ध किया जाता है. सनातन धर्म में अश्विन मास के कृष्ण पक्ष का विशेष महत्व है. इस पक्ष में मृत पूर्वजों और पितरों के श्राद्ध और तर्पण का विधान है, इसलिए इस पक्ष को पितर पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. इस तिथि को मातृ नवमी (Matri Navami) कहा जाता है. बता दें कि पितर पक्ष की प्रत्येक तिथि पर तिथि विशेष के अनुरूप श्राद्ध या तर्पण किया जाता है. इस साल मातृ नवमी 30 सितंबर, दिन गुरूवार को पड़ रही है. आइए जानते हैं मातृ नवमी की सही तिथि और श्राद्ध की विधि.
मातृ नवमी का महत्व (Significance Of Matru Navami)
पितर पक्ष की नवमी तिथि पर माताओं सुहागिन स्त्रियों और आज्ञात महिलाओं के श्राद्ध का विधान है. इस दिन परिवार की उन सारी महिलाओं की पूजा की जाती है और उनके नाम से श्राद्ध भोज किया जाता है. इस दिन का खास महत्व माना जाता है. मान्यता है कि मातृ नवमी (Matri Navami) का श्राद्ध कर्म करने से जातकों की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं. मातृ नवमी (Matri Navami) श्राद्ध के दिन घर की बहुओं को उपवास रखना चाहिए. इस श्राद्ध को सौभाग्यवती श्राद्ध भी कहा जाता है. इस दिन गरीबों या ब्राह्मणों को भोजन कराने से सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
Matri Navami 2021 Image: जानें श्राद्ध में मातृ नवमी का खास महत्व
मातृ नवमी की तिथि
पितर पक्ष की नवमी तिथि पर माताओं और सुहागिन स्त्रियों के श्राद्ध और तर्पण का विधान है. मातृ नवमी (Matri Navami) का पूजन अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की नवमी तिथि को किया जाता है. इस साल अश्विन मास की नवमी तिथि 29 सितंबर को रात्रि 8 बजकर 29 मिनट से शुरू होकर 30 सितंबर को रात्रि 10 बजकर 08 मिनट पर समाप्त हो रही है. तिथि की गणना सूर्योदय से होने के कारण मातृ नवमी (Matri Navami) का श्राद्ध कर्म 30 सितंबर, दिन गुरूवार को किया जाएगा. इस दिन भागवत गीता का पाठ करना चाहिए. पितरों के साथ माताओं स्मरण पक्षीयों को खाना खिलाने का चलन है.
मातृ नवमी का ऐसे करें श्राद्ध
- सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर घर की दक्षिण दिशा में हरा वस्त्र बिछाएं.
- पूर्वज पित्रों के फोटो या प्रतिक रूप में एक सुपारी हरे वस्त्र पर स्थापित करें.
- पित्रों के निमित्त, तिल के तेल का दीपक जलाएं, सुघंधित धूप करें.
- जल में मिश्री और तिल मिलाकर तर्पण भी करें.
- परिवार की पितृ माताओं को विशेष श्राद्ध करें. एक बड़ा दीपक आटे का बनाकार जलायें.
- पितरों की फोटो पर गोरोचन और तुलसी पत्र समर्पित करें.
- श्राद्धकर्ता कुशासन पर बैठकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करें.
- गरीबों या ब्राह्मणों को लौकी की खीर, पालक, मूंगदाल, पूड़ी, हरे फल, लौंग-इलायची व मिश्री के साथ भोजन दें.
- भोजन के बाद सभी को यथाशक्ति वस्त्र, धन-दक्षिणा देकर उनको विदाई करें.