पौष पूर्णिमा से माघ स्नान की शुरुआत हो रही है और माघ पूर्णिमा को इसका समापन होगा. बता दें कि अभी पौष माह चल रहा है. इस तरह पौष माह की पूर्णिमा 17 जनवरी के दिन पड़ रही है. 18 जनवरी से नए माह की शुरुआत होगी. सनातन परंपरा में माघ मास को काफी पवित्र महीना माना गया है. मान्यताओं के अनुसार, माघ मास में स्नान और दान का विशेष महत्व है. इस दिन स्नान व दान के बाद पुण्य अर्जित करना श्रेष्ठ माना गया है. धार्मिक मान्यता है कि जो भी भक्त माघ माह में गंगा स्नान करता हैं, उससे भगवान श्री हरि विष्णु अति प्रसन्न होते हैं और उस पर भगवान विष्णु का आर्शीवाद सदैव बना रहता है. आइए आपको बताते हैं पवित्र माघ मास का महत्व और जुड़ी प्रचलित कथा.
माघ मास का महत्व | Significance Of Magh month
हर माह का अपना एक अलग महत्व होता है. माघ मास से एक पौराणिक कथा जुड़ी है, जो काफी प्रचलित है. कथा के अनुसार, गौतमऋषि ने माघ मास में इन्द्रेदव को श्राप दिया था. इन्द्रेदव द्वारा क्षमा याचना करने के बाद भी गौतम ऋषि नहीं माने और उन्होंने माघ मास में ही इन्द्रेदव को गंगा स्नान कर प्रायश्चित करने को कहा, जिसके बाद इन्द्रेदव ने गौतम ऋषि की बात मानते हुए गंगा स्नान किया था, जिसके फलस्वरूप इन्द्रदेव को गौतमऋषि के श्राप से मुक्ति मिली थी, इसीलिए इस माह में माघी पूर्णिमा व माघी अमावस्या के दिन का स्नान पवित्र माना जाता है.
माघ माह की धार्मिक कथा | Religious Story Of Magh Month
प्राचीन काल में शुभव्रत नाम का एक ब्राह्मण नर्मदा तट पर वास करता था. शुभव्रत को वेद-शास्त्रों का अच्छा ज्ञान अर्जित था. स्वभाव से शुभव्रत धन संग्रह करने की प्रवृत्ति वाले थे. काफी समय बीत जाने के बाद जब वे वृद्धा अवस्था में पहुंचे, तब तक वे कई रोगों से ग्रसित हो चुके थे. इस स्थिति उन्हें आभास हुआ कि उन्होंने अपना सारा जीवन सिर्फ धन संग्रह करने में गवां दिया.
उन्होंने विचार किया कि अब मुझे परलोक सिधार जाना चाहिए. इस बीच उन्हें एक श्लोक स्मरण हुआ, जिसमें माघ मास के स्नान की विशेषता बताई गई थी. उसी समय उन्होंने माघ स्नान का संकल्प लिया और 'माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति..' इसी श्लोक के आधार पर नर्मदा में स्नान करने लगे. शुभव्रत ने 9 दिनों तक प्रात: नर्मदा में जल स्नान किया और 10वें दिन स्नान के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)