Lalita Jayanti: आज है ललिता जयंती के दिन पूजा के समय पढ़ें ये व्रत कथा

साल 2022 में ललिता जयंती आज 16 फरवरी को है, इस तिथि को माघ पूर्णिमा कहते हैं, जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि ललिता जयंती के दिन माता की आराधना करने से जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है और व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति भी मिल जाती है. आज के दिन पूजा के समय इस कथा का पाठ किया जाता है. 

विज्ञापन
Read Time: 11 mins
Lalita Jayanti: आज ललिता जयंती पर पूजा के दौरान जरूर पढ़ें ये व्रत कथा
नई दिल्ली:

हर साल माघ माह की पूर्णिमा तिथि को ललिता जयंती ( Lalita Jayanti) मनाई जाती है. साल 2022 में ललिता जयंती आज 16 फरवरी को है, इस तिथि को माघ पूर्णिमा कहते हैं, जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है. आज के दिन मां ललिता की पूरे विधि-विधान के साथ पूजा-आराधना की जा रही है. शास्त्रों के अनुसार, माता ललिता दस महाविद्याओं की तीसरी महाविद्या मानी जाती हैं.

मान्यता है कि ललिता जयंती के दिन विधि-विधान मां ललिता की आराधना करने से जीवन में सुख समृद्धि का आगमन होता है और व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति भी मिल जाती है. इस दिन पूजा के समय इस कथा का पाठ किया जाता है. आइए जानते हैं ललिता जयंती की इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है.

ललिता जयंति व्रत कथा | Lalita Jayanti Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब नैमिषारण्य में यज्ञ किया जा रहा था, उसी वक्त दक्ष प्रजापति भी वहां पहुंच गए, जिन्हें देख सभी देवगण उनके सम्मान में खड़े गए, लेकिन भगवान भोलेनाथ अपने आसन पर विराजमान रहे. भगवान शिव शंकर के ना उठने पर दक्ष प्रजापति क्रोधित हो उठे. दक्ष प्रजापति ने इस अपमान का बदला लेने के लिए महादेव को अपने यज्ञ में न्यौता नहीं दिया.

वहीं माता सती को जब इस बारे में जानकारी हुई तो वे भोलेनाथ से इजाजत लिए बगैर ही अपने पिता दक्ष प्रजापति के महल चली गईं, इस दौरान दक्ष प्रजापति ने माता सती के सामने ही महादेव के बारे में काफी बुरा भला कहा. भोलेनाथ की निंदा को माता सती सहन नहीं कर पाईं और वे उसी अग्निकूंड में कूद गई और अपने प्राण त्याग दिए. इधर महादेव को जब पूरी बात पता चली तो वे सती के वियोग में व्याकुल हो उठे. उन्होंने माता सती के शरीर को अपने कंधे पर उठाया और चारों दिशाओं में हैरान-परेशान भाव से इधर-उधर घूमना शुरु कर दिया.

भगवान शिव की ऐसी व्याकुल दशा देखकर भगवान श्री हरि विष्णु ने अपने चक्र से विश्व की पूरी व्यवस्था माता सती के पार्थिव शरीर के 108 टुकड़े कर दिए. बताया जाता है कि उनके अंग जहां-जहां भी गिरे, वह उन्हीं आकृतियों में वहां विराजमान हुईं. बाद में ये स्थान शक्तिपीठ स्थल बने. इन्हीं में से एक स्थान मां ललिता का भी है.

बताते हैं कि नैमिषारण्य में माता सती का हृदय गिरा. यह एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल माना जाता है. यहां शंकर भगवान का लिंग स्वरुप में पूजन किया जाता है और ललिता देवी की पूजा-अर्चना भी की जाती है. गौरतलब है कि भगवान शिव को हृदय में धारण करने पर सती नैमिष में लिंगधारिणीनाम से प्रसिद्ध हैं. इन्हें ही ललिता देवी के नाम से पुकारा जाता है.

Advertisement

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

Featured Video Of The Day
SCO Summit 2025: भारत में जातीय हिंसा भड़काना चाहता है America? | Donaldo Trump | Peter Navarro