जानें आखिर कैसे हुई मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति, पढ़ें ये पौराणिक कथा

देश के कई हिस्सों में छिन्नमस्ता को प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है. सनातन शास्त्र में मां को सवसिद्धि पूर्ण करने वाली अधिष्ठात्री भी कहा जाता है. छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवियों में से छठी देवी हैं. आइए जानते हैं कैसे हुई माता छिन्नमस्ता की उत्पत्ति और क्या है, इनसे जुड़ी पौराणिक कथा.

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पढ़ें मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा
नई दिल्ली:

माता छिन्नमस्ता, मां काली का ही एक रूप हैं. देश के कई हिस्सों में छिन्नमस्ता को प्रचंड चंडिका के नाम से भी जाना जाता है. सनातन शास्त्र में मां को सवसिद्धि पूर्ण करने वाली अधिष्ठात्री भी कहा जाता है. छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवियों में से छठी देवी हैं. गुप्त नवरात्रि में मां छिन्नमस्ता की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. भक्तों का मानना ​​है कि देवी छिन्नमस्ता जीवन देने वाली होने के साथ-साथ जीवनदायिनी भी हैं. कहते हैं कि मां की श्रद्धापूर्वक पूजा करने से साधक की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. आइए जानते हैं कैसे हुई माता छिन्नमस्ता की उत्पत्ति और क्या है, इनसे जुड़ी पौराणिक कथा.

मां छिन्नमस्ता की उत्पत्ति की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है मां भगवती अपनी सहचरियों के संग मंदाकनी नदी में स्नान-ध्यान कर रही थी. उसी समय माता की सहचरियों को तीव्र गति से भूख लगी. बढ़ती भूख की पीड़ा के चलते माता की दोनों सहचरियों का चेहरा मलीन पड़ गया. इस दौरान माता की सहचारियों ने उनसे भोजन की व्यवस्था करने की याचना की. सहचरियों की याचना को सुनकर माता ने कहा, सखियों! आप थोड़ा धैर्य रखें. स्नान करने के पश्चात आपके भोजन की व्यवस्था की जाएगी, लेकिन तेज भूख लगने के चलते माता की दोनों सहचरियों ने पुन: उनसे तत्काल भोजन प्रबंध की याचना की. इस दौरान मां भगवती ने तत्काल अपने खडग से अपना सिर काट लिया. तत्क्षण मां भगवती का कटा सिर उनके बाएं हाथ में आ गिरा. इससे रक्त की तीन धाराएं निकली. दो धाराओं से सहचरियों आहार ग्रहण करने लगी. वहीं, तीसरी रक्त धारा से मां स्वंय रक्त पान करने लगी. बताया जाता है कि उसी समय मां छिन्नमस्तिका का प्रादुर्भाव हुआ.

गुप्त नवरात्रि महत्व

भक्तों का मानना ​​है कि देवी छिन्नमस्ता जीवन देने वाली होने के साथ-साथ जीवनदायिनी भी हैं. कहते हैं कि तंत्र मंत्र सीखने वाले साधकों के लिए गुप्त नवरात्रि का विशेष महत्व है. ऐसे में गुप्त नवरात्रि से पहले ही माता की पूजा हेतु साधक तैयारियां शुरू कर देते हैं. गुप्त नवरात्रि के नौ दिनों तक उत्सव जैसा माहौल रहता है. छिन्नमस्ता दस महाविद्या देवी में से छठी हैं, जिन्हें मां काली का अवतार माना जाता है. देवी की पूजा से पहले पूजा घर की अच्छी तरह से साफ-सफाई की जाती है. इन दिनों मंदिरों को खूब सजाया जाता है. बता दें कि देवी छिन्नमस्ता को चिंतापूर्णी भी कहा जाता है. इसका भावार्थ यह है कि मां चिंताओं को हर लेती हैं. मान्यता है कि माता के दरबार में सच्ची श्रद्धा और भक्ति से जाने वाले भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण हो जाती हैं.

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छिन्नमस्ता देवी करोड़ों सूर्यों की भांति उज्ज्वल हैं, उनका रंग गुड़हल के फूल के समान लाल है. देवी ने एक हाथ में अपना सिर और दूसरे हाथ में कृपाण पकड़ा है. उनके गले से तीन खून की धाराएं निकल रही हैं. दो धाराएं उनके सेवकों की सहायता कर रही हैं, दाहिनी ओर दामिनी और दाहिनी ओर वर्णिनी, तीसरी धारा का वो स्वयं सेवन कर रही हैं. मान्यता है कि शत्रुओं पर विजय पाने के लिए छिन्नमस्ता माता की पूजा की जाती है. कहते हैं कि मां के उग्र स्वभाव के कारण तांत्रिकों द्वारा ये साधना की जाती है. वो अक्सर कुंडलिनी जागरण से जुड़ी होती हैं.

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(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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