Kalashtami February 2022: आज है कालाष्टमी, जानिए भैरव देव की पूजा विधि और महत्व

Kalashtami February 2022 Date: कालाष्टमी के दिन भगवान शिव (Lord Shiva) के स्वरूप भगवान काल भैरव  (Kaal Bhairav) का विधि-विधान से पूजन और व्रत किया जाता है. आइए, जानते हैं भगवान काल भैरव की पूजा विधि और महत्व.

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Kalashtami February 2022: यहां जानें कालाष्टमी की पूजा विधि और महत्व
नई दिल्ली:

हिंदी पंचांग के अनुसार, हर महीने कृष्ण पक्ष की अष्टमी को कालाष्टमी  (Kalashtami 2022) मनाई जाती है. इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) के स्वरूप भगवान काल भैरव  (Kaal Bhairav) का विधि-विधान से पूजन और व्रत किया जाता है. मान्यता है कि कालाष्टमी का व्रत (Kalashtami Vrat) करने से जीवन से दुख, दरिद्र, काल और संकट दूर हो जाते हैं और भगवान काल भैरव के साथ-साथ देवों के देव महादेव की कृपा बनी रहती है.

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काल भैरव को भगवान शिव शंकर (God Shiva) का पांचवा अवतार माना गया है. फाल्गुन माह में इस बार कालाष्टमी (Kalashtami) 23 फरवरी यानी आज के दिन है. आइए जानते हैं भगवान काल भैरव की पूजा विधि और महत्व.

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कालाष्टमी महत्व | Kalashtami Importance

कालाष्टमी के दिन शिवालयों और मठों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है, जिसमें बड़ी संख्या में भक्त अपनी हाजिरी लगाते हैं. कालाष्टमी पर्व का सबसे खास आयोजन मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित महाकालेश्वर मंदिर में होता है. इस दिन महाकालेश्वर मंदिर में विशेष पूजा-पाठ से महाकाल के साथ-साथ कालभैरव आह्वान किया जाता है. ज्ञात हो कि महाकाल मंदिर में रोजाना बाबा महाकाल को भस्म चढ़ाई जाती है, लेकिन कालाष्टमी में यहां विशेष महाभस्म आरती की जाती है, जिसे देखने दूर-दूर से भक्त यहां आते हैं.

कालाष्टमी के दिन महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों का तांता लगा रहता है. इस दिन कालाष्टमी पर्व की रौनक देखते ही बनती है. काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है. वहीं, काल भैरव तंत्र-मंत्र के देवता भी माने जाते हैं. भगवान भैरव नाथ की सवारी श्वान अर्थात कुत्ता है, इसलिए इस दिन कुत्ते को दूध पिलाना बेहद पुण्यदायी माना जाता है.

कालाष्टमी पूजा विधि | Kalashtami Puja Vidhi

इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर घर की साफ-सफाई करें.

इसके बाद स्नान-ध्यान कर व्रत संकल्प लें.

इसके लिए पवित्र जल से आमचन करें.

अब सर्वप्रथम सूर्य देव का जलाभिषेक करें.

बता दें कि काल भैरव की पूजा रात्रि के समय की जाती है और संभव हो तो पूरे दिन व्रत रखा जाता है.

इस दिन काल भैरव के मंदिर में जाकर रात्रि के समय काल भैरव की पूजा की जाती है.

अगर आसपास कोई मंदिर नहीं है, तो लकड़ी के पाट पर भगवान शिव और माता पार्वती के साथ कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें.

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भोलेनाथ के स्वरूप काल भैरव देव की पूजा पंचामृत, दूध, दही, बिल्व पत्र, धतूरा, फल, फूल, धूप-दीप आदि से करें.

काल भैरव को नारियल, इमरती, पान, मदिरा, गेरुआ आदि चीजें अर्पित करें.

इसके बाद चौमुखी दीपक जलाएं और धूप-दीप करें और कुमकुम या हल्दी से सभी को तिलक लगाएं.

सभी की एक-एक करके आरती उतारें.

रात्रि में धूप, दीप, काली उड़द और सरसों के तेल से पूजा करने के बाद शिव चालीसा और भैरव चालीसा का पाठ करें.

कालाष्टमी के दिन पूजन के समय बटुक भैरव पंजर कवच का पाठ करना शुभ माना जाता है.

भैरव मंत्रों की 108 बार जप करें और इसके बाद कालभैरव की उपासना करें.

काल भैरव की पूजा उपासना के बाद काले कुत्ते को मीठी रोटी या फिर कच्चा दूध पिलाएं और दिन के अंत में कुत्ते की भी पूजा करें.

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भगवान शिव शंकर की विधि-विधान से पूजा-आराधना करें.

पूजा के आखिर में आरती करें.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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