Kalashtami Katha: मान्यता है कि हर भय और बाधा को दूर करता है यह व्रत, कालाष्टमी पर करें इस कथा का पाठ

Kalashtami Vrat 2022: बाबा महाकाल (Mahakal) के कई रूप है, जिन्हें अलग-अलग तरीके से पूजा और पुकारा जाता है. इन्हीं में से एक हैं भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav). कालाष्टमी के दिन पूजन के समय बाबा काल भैरव की कथा जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए, कहते हैं कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

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Kalashtami Katha: 23 फरवरी को है कालाष्टमी, पूजन के समय पढ़ें यह व्रत कथा
नई दिल्ली:

Kab Hai Kalashtami 2022: हर मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी व्रत (Kalashtami Vrat) रखा जाता है. बता दें कि महाकाल (Mahakal) के कई रूप है, जिन्हें अलग-अलग तरीके से पूजा और पुकारा जाता है. इन्हीं में से एक हैं भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav). कहते हैं कि अघोरी समाज के लोग कालाष्टमी को उत्सव की तरह मनाते हैं. इस माह कालाष्टमी 23 फरवरी यानी आज के दिन मनाई जा रही है.

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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कालाष्टमी के दिन भगवान भैरव की विधि-विधान से पूजा-अर्चना और व्रत करने से व्यक्ति भयमुक्त हो जाता है, इसके साथ ही उसके जीवन की परेशानियां धीरे-धीरे दूर हो जाती हैं. कालाष्टमी के दिन पूजन करने वाले सभी भक्तों को भैरव बाबा (Kaal Bhairav Ki Puja) की कथा जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए, कहते हैं कि ऐसा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

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कालाष्टमी व्रत कथा | Kalashtami Vrat Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है कि जब भगवान ब्रह्मा, भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान महेश तीनों में श्रेष्ठता की लड़ाई चल रही थी. इस बात पर धीरे-धीरे बहस बढ़ती चली गई, जिसको कम करने के लिए सभी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई.

सभी देवताओं की मौजूदगी में हो रही इस बैठक में सबसे यही पूछा गया कि श्रेष्ठ कौन है? सभी ने अपने-अपने विचार व्यक्त किए और उत्तर खोजा, लेकिन उस बात का समर्थन भगवान शिव शंकर और भगवान श्री हरि विष्णु ने तो किया, परंतु भगवान ब्रह्मा ने भोलेनाथ को अपशब्द कह दिए. इस बात पर महादेव को क्रोध आ गया.

बताया जाता है कि भगवान शिव के इस क्रोध से उनके स्वरूप काल भैरव का जन्म हुआ. भोलेनाथ के अवतार काल भैरव का वाहन काला कुत्ता माना जाता है. इनके एक हाथ में छड़ी है. बता दें कि इस अवतार को 'महाकालेश्वर' के नाम से भी जाना जाता है, इसलिए ही इन्हें दंडाधिपति भी कहा जाता है. कथा के अनुसार, भोलेनाथ के इस रूप को देखकर सभी देवता घबरा गए.

कथा के अनुसार, भगवान काल भैरव ने क्रोध में भगवान ब्रह्मा के पांच मुखों में से एक मुख को काट दिया, तब से ब्रह्माजी के पास चार मुख ही हैं. इस प्रकार ब्रह्माजी के सिर को काटने के कारण भैरवजी पर ब्रह्महत्या का पाप चढ़ गया था. क्रोध शांत होने पर काल भैरव ने भगवान ब्रह्मा से माफी मांगी, तब जाकर भगवान भोलेनाथ अपने असली रूप में आए.

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इसके पश्चात भगवान काल भैरव को उनके पापों के कारण दंड भी मिला. कहा जाता है कि इस प्रकार कई वर्षों बाद वाराणसी में उनका दंड समाप्त होता है. इसका एक नाम 'दंडपाणी' पड़ा था.

काल भैरव के हैं आठ स्वरूप

कहते हैं कि काल भैरव माता सती के सभी शक्तिपीठों के अंगरक्षक के रूप में सदा उनके साथ तैनात रहते हैं. अगर आप किसी शक्तिपीठ के दर्शन करने जाएंगे तो आपको वहां काल भैरव का मंदिर जरूर मिलेगा. वर्तमान में काल भैरव की पूजा उपासना बटुक भैरव और काल भैरव के रूप में प्रचलित है, लेकिन तंत्र साधना में भैरव के आठ स्वरूपों के बारे में जानकारी दी गई है. इनके नाम भीषण भैरव, चंद्र भैरव, क्रोध भैरव, रूद्र भैरव, असितांग भैरव, संहार भैरव, कपाली भैरव और उन्मत्त भैरव हैं.

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कालाष्टमी के दिन भगवान काल भैरव को खिचड़ी, चावल, गुड़ आदि का भोग लगाया जाता है. कहते हैं कि कालाष्टमी का व्रत करने से व्रती के सभी दुख, रोग और शत्रु पीड़ा दूर हो जाते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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