गुप्त नवरात्रि को अषाढ़ नवरात्रि भी कहते हैं, क्योंकि यह अषाढ़ महीने में आती है. नवरात्रि के पहले दिन सबसे पहले कलश स्थापना की जाती है और उसके बाद माता के शैलपुत्री स्वरूप की पूजा होती है. हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण शैलपुत्री हुआ. घटस्थापना या कलश को भगवान गौरी गणेश का रूप माना जाता है. इस दिन मंदिरों और मठों को सजाया जाता है. गाजे-बाजे से वातावरण संगीतमय रहता है. मां का आह्वान कर उनकी पूजा की जाती है. आइए जानते हैं मां शैलपुत्री की उत्पत्ति की कथा.
हिन्दू धर्म में किसी भी देवी-देवता की पूजा से पहले भगवान गणपति महाराज का पूजन किया जाता है, इसलिए नवरात्रि की पूजा करने से पहले कलश स्थापित किया जाता है. गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्याओं की देवी तारा, त्रिपुर सुंदरी, भुनेश्वरी, छिन्नमस्ता, काली, त्रिपुर भैरवी, धूमावती, बगलामुखी की पूजा-उपासना की जाती है.
मां शैलपुत्री की उत्पत्ति की कथा | Maa Shailputri Katha
पौराणिक कथा के अनुसार, चिरकाल में प्रजापति दक्ष ने आदिशक्ति को प्रसन्न करने के लिए कठिन तपस्या की. प्रजापति दक्ष की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके घर में पुत्री रूप में जन्म लेने का वरदान दिया. कालांतर में जब प्रजापति दक्ष के घर आदिशक्ति का जन्म सती रूप में हुआ, तो वह सब कुछ भूल गई. युवावस्था में एक समय रात में उनके स्वप्न में महादेव आए और उन्हें सब कुछ स्मरण करवाया. इसके बाद मां सती भगवान शिव शंकर की पूजा-अर्चना में लीन रहने लगीं. इस दौरान उनके पिता प्रजापति दक्ष उनके विवाह हेतु वर ढूंढने लगे, लेकिन मां सती मन ही मन शिव जी को अपना पति मान चुकी थीं. आखिरकार मां सती ने पिता प्रजापति दक्ष के प्रस्ताव को ठुकरा दिया, जिसके बाद मां सती का भगवान शिव से विवाह हो गया.
बताया जाता है कि मां सती और भगवान शिव के इस विवाह से प्रजापति दक्ष बिल्कुल खुश नहीं थे. एक बार प्रजापति दक्ष ने महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने कई देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन अपनी ही पुत्री मां सती और उनके पति भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. जब मां सती को इस बात की जानकारी हुई, तो वह शिव जी से यज्ञ में जाने की जिद करने लगीं. ऐसे में महादेव ने मां सती से कहा, हे देवी! इस यज्ञ में समस्त लोकों को आमंत्रित किया गया है, लेकिन आपको आमंत्रित नहीं किया गया. इसका अर्थ है कि आप उस यज्ञ में शामिल न हों. आपके लिए यह उत्तम होगा कि आप वहां न जाएं, लेकिन मां सती नहीं मानीं तो शिव जी ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी.
जब मां सती पिता प्रजापति दक्ष द्वारा आयोजित इस यज्ञ में शामिल हुईं तो किसी ने भी उनका आदर-सत्कार नहीं किया. इसके अलावा वहां भगवान शिव के प्रति अपमानजनक बातें भी होने लगीं. तब मां सती को आभास हुआ कि उन्होंने यहां आकर गलती कर दी. इसके बाद उन्होंने यज्ञ वेदी में अपनी आहुति दे दी. कालांतर में मां सती शैलराज हिमालय के घर जन्म लेती हैं और आखिर में उन्हें मां शैलपुत्री कहा जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)