Bhagwan vishnu ki aarti : सनातन धर्म में श्रीहरि के नाम से पहचाने जाने वाले भगवान विष्णु (lord vishnu)सृष्टि के पालनहार कहे गए हैं. हिंदू धर्म में भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा का विधान है. मान्यता है कि भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा अर्चना करने पर घर में सुख शांति और समृद्धि का वास होता है. साल में आने वाली एकादशी तिथि पर भी भगवान विष्णु की पूजा के साथ साथ व्रत किया जाता है. भगवान विष्णु की पूजा के लिए सप्ताह में गुरुवार यानी बृहस्पतिवार का दिन विशेष होता है. भगवान विष्णु की विधिवत पूजा के बाद उनकी आरती करने के पश्चात ही पूजा पूरी मानी जाती है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान विष्णु की पूजा के उपरांत कौन सी आरती करनी जरूरी मानी जाती है. चलिए यहां जानते हैं.
जून में किस दिन मनाई जाएगी गंगा दशहरा, इस शुभ संयोग में करें पूजा, सुख-शांति से गुजरेगा साल
भगवान विष्णु की पूजा के दौरान करें ये काम
कहा जाता है कि गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा के साथ साथ व्रत करना चाहिए. पूजा के दौरान भगवान विष्णु को उनका पसंदीदा भोग जरूर लगाना चाहिए और उसके उपरांत आरती करनी चाहिए. तभी पूजा पूर्ण और सफल मानी जाती है. पूजा सफल होने पर भगवान विष्णु जातक को भाग्यशाली होने का आशीर्वाद देते हैं और इससे घर परिवार में धन संपत्ति का आगमन होता है.भगवान विष्णु को पूजा के दौरान पंचामृत का भोग जरूर लगाना चाहिए. उनको पूजा के दौरान तुलसी दल जरूर अर्पित करना चाहिए. इससे भगवान बेहद प्रसन्न हो जाते हैं और जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.कहा जाता है कि बिना तुलसी दल के भगवान विष्णु की पूजा अधूरी मानी जाती है और भगवान ऐसी पूजा स्वीकार नहीं करते हैं.
भगवान विष्णु की आरती
अगर आप भी भगवान विष्णु के लिए हर गुरुवार व्रत और पूजा करते हैं तो आपको उनकी आरती जरूर करनी चाहिए. भगवान विष्णु की आरती इस प्रकार है- ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।
स्वामी दुःख विनसे मन का।
सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥
ॐ जय जगदीश हरे।
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।
स्वामी तुम अन्तर्यामी।
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।
स्वामी तुम पालन-कर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे।
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
स्वामी सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥
ॐ जय जगदीश हरे।
दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
स्वामी तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
ॐ जय जगदीश हरे।
विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
स्वमी पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा॥
ॐ जय जगदीश हरे।
श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥
ॐ जय जगदीश हरे।