हिंदू धर्म में आस्था से जुड़े कई ऐसे मंदिर हैं, जो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. आज हम आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दुनिया का सबसे विशाल और भव्य मंदिर है. दुनिया में कई ऐसे बड़े मंदिर हैं, जो अपने वास्तुशिल्प, अद्भुत कलाकारी और विशालता के लिए जाने जाते हैं, लेकिन कंबोडिया (Cambodia) के अंकोरवाट मंदिर (Angkor Wat Temple) की बात ही कुछ अलग है. बता दें कि यह मंदिर अंकोरयोम नामक नगर में स्थित है, जिसे प्राचीन काल में यशोधरपुर कहा जाता था. यह मंदिर मेरु पर्वत का भी प्रतीक है. मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है.
वास्तु शैली के लिए प्रसिद्ध है यह मंदिर
प्राचीन काल में बनाए गए इस मंदिर की कलाकारी को देखकर ऐसा लगता है मानो जैसे इन्हें आज की मशीनों द्वारा बनाया गया हो. यह विशाल भव्य मंदिर भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है, जिसका निर्माण कम्बुज के राजा सूर्यवर्मा द्वितीय ने 12वीं सदी में कराया था. अंकोरवाट मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक है. बताया जाता है कि इस प्राचीन मंदिर की दीवारों पर भारतीय हिंदू धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का विस्तार से चित्रण किया गया है. इसमें असुरों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन का दृश्य भी दिखाया गया है.
अंकोरवाट मंदिर से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें
इस मंदिर के चारों ओर एक गहरी खाई है, जिसकी लंबाई ढाई मील और चौड़ाई 650 फीट बताई जाती है. बता दें कि यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है, जिसमें तीन खंड हैं. हर एक खंड में आठ गुम्बज हैं, जो 180 फीट ऊंचे हैं. इनमें सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं. वहीं, हर एक खंड से ऊपर के खंड तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां भी बनाई गई हैं. मुख्य मंदिर तीसरे खंड की छत पर स्थित है, जिसका शिखर 213 फीट ऊंचा फीट बताया जाता है. मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लंबी पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है. इस मंदिर की विशालता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार बनाया गया है, जो लगभग 1000 फीट चौड़ा है. इस दीवार के बाद 700 फीट चौड़ी खाई है, जिस पर 36 फीट चौड़ा पुल बना है. इस पुल के माध्यम से दिर के पहले खंड द्वार तक पहुंचा जा सकता है.
कंबोडिया देश का प्रतीक है अंकोरवाट मंदिर
बताया जाता है कि फ्रांस से आजादी मिलने के बाद अंकोरवाट मंदिर कंबोडिया देश का प्रतीक बन गया. राष्ट्र के लिए सम्मान के प्रतीक इस मंदिर को 1983 से कंबोडिया के राष्ट्रध्वज में भी स्थान दिया गया है. विश्व के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थानों में से एक होने के साथ ही यह मंदिर यूनेस्को के विश्व धरोहर स्थलों में से एक है. बता दें कि वर्ष 1986 से लेकर वर्ष 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर के संरक्षण का जिम्मा संभाला था.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)