भारत में पीने का पानी बड़ा संकट.
होली का त्योहार गया और गर्मियों का मौसम आ रहा है. गर्मी आते ही देश के कई हिस्सों में लोग पानी को तरस जाते हैं. पीने के पानी की ख़ासतौर से कमी हो जाती है. बड़े शहरों में जब नल सूख (Water Crisis In India) जाते हैं तो सरकारी या प्राइवेट टैंकरों से लोगों की प्यास बुझती है. दूसरी तरफ़ लोग पीने का पानी खुले आम बर्बाद भी करते रहते हैं. जो पानी किसी के पीने के काम आ सकता है उससे लोग अपनी गाड़ियां धोते हैं और लॉन पर छिड़कते हैं. वैसे भी पानी की हर जगह कमी है. जिन नदियों से कभी हमें पानी मिलता था उन्हें हमने इतना प्रदूषित कर दिया है कि उसे मुंह लगाना भी अपनी जान जोखिम में डालना है. हालात इतने ख़राब हो गए हैं कि जिस बारे में बहुत पहले सख़्त फ़ैसले हो जाने चाहिए थे, वो अभी तक अटके पड़े हैं.
राजस्थान विधानसभा में ग्राउंड वाटर कंजर्वेशन एंड मैनेजमेंट अथॉरिटी बिल 2024 पर बुधवार को बहस हुई. जिसके बाद इसे एक बार फिर सेलेक्ट कमेटी के पास भेज दिया गया है. पिछले साल अगस्त में भी ये बिल सेलेक्ट कमेटी को भेजा गया था और उसने हाल ही में ज़रूरी संशोधनों के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. विधेयक में ग्राउंड वाटर के अवैध दोहन पर सख्त प्रावधान लगाए गए हैं, जिनमें बिना इजाज़त... ज़मीन के नीचे के पानी के इस्तेमाल पर 6 महीने तक की कैद और 1 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान शामिल है. बहस के दौरान विपक्ष के नेताओं ने कहा कि जिस तरह का क़ानून आ रहा है उसकी निगरानी के लिए सरकारी जल के कनेक्शनों के मीटर ही नहीं लगे हैं तो क़ानून का पालन कैसे होगा. देखना है कि अब ये बिल क़ानून कब बन पाता है.
(राजस्थान में पानी की किल्लत)
पानी पर क़ानून कितने ज़रूरी हैं?
दरअसल राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा रेगिस्तान है इसलिए ये पानी की कमी वाला राज्य हा. ये समस्या और गंभीर होती चली जा रही है. पानी का संकट यहां दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है.
राजस्थान के कुल 302 ब्लॉक में से 216 ब्लॉक अतिदोहित श्रेणी में आते हैं. यानी यहां की ज़मीन से पानी, हद से ज़्यादा निकाला जा चुका है. अभी जब ये हाल है तो गर्मी बढ़ने से हालात बद से बदतर होते चले जाएंगे.
- इससे राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में परेशानी और बढ़ेगी
- पीने के पानी के लिए बोरिंग ज़्यादा मुश्किल हो जाएगी क्योंकि पानी बहुत नीचे जा चुका है
- इसी कारण कुएं खोदना भी मुश्किल हो जाएगा
- इसलिए पीने के लिए भू-जल निकासी पर शुल्क लगाने की योजना है
ज़मीन के नीचे का पानी क्यों और किस रफ़्तार से कम हो रहा है, इसका अंदाज़ा उन आंकड़ों को देख कर लग जाता है जिनमें पता चलता है कि हर साल कितना भू-जल निकाला जाता है. बारिश के ज़रिए वो कितना वापस मिट्टी में जाता है...यानी रिचार्ज होता है.
(राजस्थान में भूजल पर कानून की मांग)
राजस्थान: सालाना भूजल दोहन-रिचार्ज
- राजस्थान में 2017 में 16.77 बिलियन क्यूसेक मीटर भूजल निकाला गया जबकि सिर्फ़ 13.21 बिलियन क्यूसेक मीटर पानी रिचार्ज हुआ.
- 2020 में 16.63 बिलियन क्यूसेक मीटर भूजल निकला और 12.24 बिलियन क्यूसेक मीटर पानी ज़मीन में वापस गया
- 2023 में 16.34 बिलियन क्यूसेक मीटर जल का दोहन हुआ और केवल 12.45 बिलियन क्यूसेक मीटर पानी रिचार्ज हो पाया.
इससे ये तो साफ़ है कि ज़मीन के नीचे पानी सूखता चला जा रहा है और पहुंच से दूर होता जा रहा है. लोगों की प्यास बढ़ती जा रही है. ये हाल अकेले राजस्थान का नहीं है. राजस्थान और उत्तर भारत के ही शहरों का नहीं बल्कि दक्षिण भारत में भी पानी की बेहद क़िल्लत रही है. पिछले साल भारतीय आईटी का गढ़ माने जाने वाले बेंगलुरु शहर बूंद बूंद पानी के लिए तरस गया था. वैसे हालात दोबारा न हों इसलिए इस बार सख़्त इंतज़ाम किए गए हैं. जो कोई भी पीने के पानी को बर्बाद करता हुआ, जैसे गाड़ी धोता हुआ या लॉन में पानी डालता हुआ पाया जाएगा तो उसके ऊपर पांच हज़ार रुपये का जुर्माना लगेगा.
लेकिन शायद कर्नाटक सरकार को भी लगता है कि ये काम अकेले इंसानों के बस का नहीं है. इसीलिए ऊपर वाले को भी याद किया जा रहा है. कहने को तो पानी बचाने की कोशिशें सरकारें कर रही हैं...लेकिन क्या जितनी कोशिशें की जा रही हैं वो काफ़ी हैं. या हमें अपनी नीतियों में ही मूल-चूल परिवर्तन करने की ज़रूरत है? पर्यावरणविद मानते हैं...कि हमें जल को नीतियों में प्राथमिकता देनी होगी तभी कुछ हो सकता है.
देश में जल का संकट बहुत गंभीर
पर्यावरणविद अनिल जोशी का कहना है कि सरकारें भी ये बात मानती हैं कि देश में जल का संकट बहुत गंभीर है. नीति आयोग ने 2019 में समग्र जल प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट जारी की जिसमें कुछ चौंकाने वाली बातें कहीं.
- रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के 60 करोड़ लोग जल संकट से जूझ रहे हैं
- दुनिया में जिन देशों कें पानी की जांच हुई उस जल गुणवत्तता सूचकांक में भारत 122 में से 120वें नंबर पर रहा. यानी यहां साफ़ पानी मिलना मुश्किल है.
- दुनिया की कुल आबादी में भारतीय आबादी का हिस्सा 18 प्रतिशत है
- जबकि दुनिया के कुल मीठे पानी में भारत का हिस्सा सिर्फ़ 4 फ़ीसदी है. इससे ख़ुद ही अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि भारत में पीने के पानी की कितनी कमी है.
- ये संकट गर्मियों में और बढ़ जाता है. उत्तर भारत में ख़ासकर जहां जलाशयों में पानी की कमी है और जब तक मॉनसून की बारिश फिर से इन्हें नहीं भर देती तब तक संकट और गहराता जाएगा.
पानी का संकट किसी एक वजह से होता तो उसका हल ढूंढना आसान था. लेकिन इस लड़ाई में कई मोर्चे खुले हैं इसलिए जंग भी मुश्किल है.
प्रदूषित नदियां- हमारी नदियां, अब नदियां कम और प्रदूषित नाले ज़्यादा हो गए हैं. जिनमें फ़ैक्ट्रियां ज़हरीले रसायन उगलती हैं और हमारें घरों का कचरा उनमें उंडेला जाता है.
ग़ायब होते तालाब- गांवों-क़स्बों और शहरों के पोखर-तालाबों को पाट कर वहां पर इमारतें बना दी गई हैं
जलवायु परिवर्तन ने मौसमों के समय को बिगाड़ दिया है, जिससे पानी का संकट बढ़ा है
घटता भूजल- ज़मीन से अनियंत्रित पानी निकालने के कारण भूजल का स्तर घटता चला जा रहा है जिससे पानी की क़िल्लत और बढ़ रही है.
कृषि पर असर- खेती का सारा दारो-मदार सिंचाई पर है, इसलिए पानी के संकट का सबसे ज़्यादा असर खेती पर पड़ता है
बिगड़ता स्वास्थ्य- पानी गुणवत्ता सूचकांक में भारत नीचे से तीसरे नंबर पर है. यानी यहां के पानी की गिनती दुनिया के सबसे ख़राब देशों में होती है. ज़ाहिर है ख़राब पानी का सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है
आर्थिक नुक़सान- कृषि में नुक़सान हो या सेहत पर असर पड़े या फिर कारख़ानों में पानी की कमी हो इन सबका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ता है. उससे पूरे देश को नुक़सान होता है.
हम और आप अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं?
जानकार मानते हैं कि अगर हम चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं...क्योंकि बूंद बूंद से ही सागर बनता है. तालाबों, झरनों, नदियों में बहता निर्मल उज्ज्वल जल जो कभी हर किसी को आसानी से और मुफ़्त में मिला करता था. आज नौबत ये आ गई है कि उसी के लिए लोग और राज्य एक दूसरे से लड़ने पर उतारू हैं और उसकी बूंद बूंद को तरस रहे हैं. पानी जिसका कभी मोल नहीं लगा और जिसकी शायद हमने और आपने उतनी क़द्र नहीं की जितनी की जानी चाहिए थी. वो आहिस्ता आहिस्ता लोगों की पहुंच से बाहर होता जा रहा है. अगर हालात बदलने हैं. संभलना है तो अभी तुरंत कुछ न कुछ करना होगा. अपने स्तर पर कोशिश कर पानी बचाना होगा. अपनी सरकारों पर दबाव डालकर ऐसे क़ानून लाएं. ऐसी व्यवस्था बनाएं जिससे हमें और आने वाली पीढ़ियों को प्यासा न रहना पड़े.