कौन था लॉर्ड मैकाले, PM मोदी ने लिया जिसका नाम... अंग्रेजों के आने से पहले कैसी थी भारत की शिक्षा व्यवस्था?

Who Was Lord Macaulay: पीएम मोदी ने अयोध्या में लॉर्ड मैकाले का जिक्र करते हुए कहा कि आने वाले 10 सालों का टारगेट है कि गुलामी से मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे.

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Lord Macaulay: पीएम मोदी ने किया मैकाले का जिक्र

Lord Macaulay PM Modi: लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति को लेकर अक्सर चर्चा होती है, तमाम शिक्षाविद् भी इस पर सवाल उठाते रहे हैं. अब इस एजुकेशन सिस्टम का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जिक्र किया है. उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर ध्वजारोहण कार्यक्रम के दौरान कहा कि मैकाले ने मानसिक गुलामी की नींव रखी थी. इस सिस्टम को आने वाले 10 सालों में खत्म करने का टारगेट रखा गया है. यानी अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह से खत्म करने की तैयारी चल रही है. ऐसे में आइए जानते हैं कि लॉर्ड मैकाले आखिर कौन थे और उनके एजुकेशन सिस्टम को मानसिक गुलामी का प्रतीक क्यों कहा जाता है. 

क्या बोले पीएम मोदी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मैकाले की शिक्षा नीति को लेकर कहा, मैकाले ने मानसिक गुलामी की नींव रखी. 10 साल बाद 2035 में उस अपवित्र घटना को 200 साल पूरे हो रहे हैं. आने वाले 10 सालों का टारगेट है कि गुलामी से मानसिकता से मुक्त करके रहेंगे. हमने विदेशों से लोकतंत्र लिया, जबकि सच यह है कि भारत लोकतंत्र की जननी है. 

कैसी थी भारत की शिक्षा व्यवस्था?

अंग्रेजों के आने से पहले भारत की शिक्षा व्यवस्था काफी अलग थी. पहले भारत में स्कूलों की जगह गुरुकुल चलते थे. भारत के लगभग हर गांव में गुरुकुल हुआ करता था, जिसमें तमाम बच्चों को अलग-अलग विषयों की शिक्षा दी जाती थी. उस जमाने में वैदिक गणित, खगोलशास्त्र, धातु विज्ञान, कारीगरी, रसायन शास्त्र और चिकित्सा शास्त्र जैसे कुल 18 विषयों की पढ़ाई होती थी. इसमें औषधि विज्ञान और शल्य क्रिया का विषय भी शामिल था, यानी उस जमाने में सर्जरी और मेडिसिन की पढ़ाई भी कराई जाती थी. कुल 15 से 16 साल में इन सभी विषयों की पढ़ाई पूरी होती थी. 

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रट्टामार नहीं ऐसे होती थी परीक्षा 

आज छात्रों को परीक्षा से ठीक पहले रट्टा मारते हुए आपने कई बार देखा होगा. जो किताब में लिखा है उसे दीमक की तरह बच्चे चाट लेते हैं और बिना समझे एग्जाम में टॉप भी कर लेते हैं. हालांकि वैदिक शिक्षा में ऐसा नहीं था. भारतीय शिक्षा प्रणाली में आचार्य एक विषय की पढ़ाई कराने के बाद उन्हें उसी के आधार पर काम सौंप देते थे, काम की कुशलता से ये तय होता था कि बच्चा वाकई पास है या फिर फेल... इस तरह से छात्रों को तमाम चीजों में निपुण किया जाता था. 

अंग्रेजों ने बदल दिया पूरा सिस्टम

अंग्रेज मानते थे कि भारत की शिक्षा व्यवस्था दुनिया की सबसे ज्यादा विकसित और अच्छी व्यवस्था है. इसे खत्म करने के लिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर ब्रिटिश संसद में काफी ज्यादा चर्चा हुई, जिसके बाद ये तय हुआ कि इसे पूरी तरह से बदल दिया जाएगा. इसके लिए ब्रिटिश लॉ मेकर लॉर्ड मैकाले के सुझाव पर इंडियन एजुकेशन एक्ट (1858) लाया गया. हालांकि 1835 में ही इसकी नींव रख दी गई थी. मैकाले ने सुझाव दिया कि भारत में अंग्रेजी में ही पढ़ाई होनी चाहिए. मैकाले का कहना था कि वो भारत के लोगों को ऐसी शिक्षा देना चाहते हैं, जिससे वो रंग या शक्ल से तो भारतीय रहें, लेकिन उनका दिमाग ब्रिटिश हो. 

कौन था लॉर्ड मैकाले?

लॉर्ड मैकाले का पूरा नाम थॉमस बैबिंगटन मैकाले था, उसे भारत में अंग्रेजी भाषा में पढ़ाई का जनक कहा जाता है. 10 जून 1834 को मैकाले ने गवर्नर जनरल की काउंसिल के कानूनी सदस्य के रूप में काम करना शुरू किया था. बौद्धिक क्षमता और शिक्षा के मामले में मैकाले ब्रिटिश सरकार के तमाम राजनेताओं में सबसे ऊपर थे. यही वजह है कि उन्हें भारत में लोक शिक्षा समिति का सभापति बनाया गया. इसके बाद 1935 में मैकाले ने अपना मशहूर स्मरण-पत्र गर्वनर काउंसिल के सामने रखा, जिसे इंडियन एजुकेशन एक्ट की नींव कहा जाता है. 

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लॉर्ड मैकाले ने गुरुकुलों को खत्म करने का काम किया, साथ ही संस्कृत में होने वाली पढ़ाई का भी अंत कर दिया. इनकी जगह कॉन्वेंट स्कूलों और अंग्रेजी पर जोर दिया गया. संस्कृत भाषा में चलने वाले गुरुकुलों को मान्यता देने से इनकार कर दिया गया. इसके बाद से ही अंग्रेजी मीडियम, सिलेबस और स्कूलों की व्यवस्था शुरू हो गई, जो आज तक चली आ रही है. यही वजह है कि इसे गुलामी की मानसिकता वाली शिक्षा व्यवस्था कहा जाता है. 

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