दिहाड़ी मजदूर की बेटी जब बनी CISF में कांस्टेबल, जज्बे से भरी ये कहानी छू लेगी आपका दिल

एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी ने अपनी मेहनत और जज्बे के बल पर सीआईएसएफ तक का सफर पूरा किया और कांस्टेबल के पद पर चयनित हुई है.

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इंटर तक की पढ़ाई और फिर स्नातक पास करने के बाद रमा को करियर का रास्ता समझ नहीं आ रहा था.

Success story : कहते हैं कि हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, अगर इंसान में हिम्मत और मेहनत करने का जज़्बा हो तो मंज़िल तक पहुंचना नामुमकिन नहीं होता है. आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम जिले के राजम मंडल के पोगिरी गांव की रहने वाली येज्जीपुरापु रमा ने यही कर दिखाया. दिहाड़ी मजदूरी करने वाले पिता की बेटी रमा ने गरीबी, अकेलेपन और लगातार असफलताओं से लड़ते हुए आखिरकार अपनी जगह बनाई और आज CISF में कांस्टेबल बनकर न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे गांव का नाम रोशन किया है.

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बचपन में ही मां और भाई को खो दिया

रमा की जिंदगी की शुरुआत ही मुश्किलों से भरी थी. उनकी मां और छोटा भाई बचपन में ही गुजर गए. पिता ने सिंगल पेरेंट बनकर मजदूरी की कमाई से बेटी को पाला और पढ़ाई कराई. आर्थिक तंगी हमेशा उनके रास्ते में रही लेकिन पिता ने कभी रमा के सपनों को टूटने नहीं दिया.

करियर गाइडेंस की कमी से परेशान हुई

इंटर तक की पढ़ाई और फिर स्नातक पास करने के बाद रमा को करियर का रास्ता समझ नहीं आ रहा था. गाइड करने वाला कोई नहीं था. 2018 में उनकी सहेली ने उन्हें राजम मंडल की प्रतिभा लाइब्रेरी के बारे में बताया. यह लाइब्रेरी जीएमआर की जीएसआर शाखा वरलक्ष्मी फाउंडेशन चलाती है. यहां करियर काउंसलिंग और तैयारी की सुविधा मिलती है. रमा ने वहां पंजीकरण कराया और अपनी तैयारी को नई दिशा दी.

बार-बार असफल हुई लेकिन हार नहीं मानी

शुरुआत में रमा ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं दीं लेकिन हर बार नाकामी हाथ लगी. वह टूटने लगी थीं. तब फाउंडेशन ने उनका हौसला बढ़ाया और उन्हें डिजिटल कोचिंग क्लासेस करवाईं. इसके बाद रमा ने लगातार 30 महीनों तक मेहनत की. दिन-रात पढ़ाई की और हर टेस्ट में खुद को बेहतर बनाने की कोशिश की.

2021 में पूरी हुई मंजिल

फरवरी 2021 में आखिरकार रमा का सपना पूरा हुआ. उन्होंने एसएससी की परीक्षा पास की और CISF कांस्टेबल पद पर चयनित हो गईं. फिलहाल वह ट्रेनिंग कर रही हैं और जल्द ही देश की सेवा में तैनात होंगी. रमा की यह कहानी उन सभी युवाओं के लिए प्रेरणा है जो हालात से हार मान लेते हैं. उन्होंने साबित किया है कि अगर जज़्बा मजबूत हो तो गरीबी, अकेलापन और असफलता भी इंसान को मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकती.


 

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