Namvar Singh birth Anniversery: हिंदी साहित्य की दुनिया में नामवर सिंह का नाम एक ऐसे सितारे की तरह चमकता है, जिसने आलोचना को न केवल नया आयाम दिया, बल्कि उसे एक रचनात्मक कला के रूप में स्थापित किया। वे हिंदी साहित्य के ऐसे 'प्रकाश स्तंभ' हैं, जिनकी रोशनी हमेशा साहित्य प्रेमियों का मार्गदर्शन करती रहेगी. 28 जुलाई, 1926 को उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के जीयनपुर गांव में जन्मे नामवर सिंह हिंदी साहित्य के उन मूर्धन्य विद्वानों में से थे, जिन्होंने अपनी बेबाकी, गहन अध्ययन और प्रखर बुद्धिमत्ता से साहित्यिक जगत को समृद्ध किया.
हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नई दिशा दी
नामवर सिंह का साहित्यिक सफर कविता से शुरू हुआ. 1941 में उनकी पहली कविता 'क्षत्रियमित्र' पत्रिका में प्रकाशित हुई. उनकी असली पहचान आलोचक के रूप में बनी. काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से हिंदी साहित्य में एमए और पीएचडी करने के बाद उन्होंने अध्यापन शुरू किया. उनके गुरु, प्रख्यात साहित्यकार आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उनके भीतर आलोचना की गहरी समझ विकसित की.
नामवर सिंह ने समकालीन साहित्य तक को अपनी आलोचना का विषय बनाया और प्रगतिशील आलोचना के क्षेत्र में एक नया प्रतिमान स्थापित किया. उनकी प्रमुख कृतियों में 'छायावाद', 'कविता के नए प्रतिमान', 'दूसरी परंपरा की खोज', 'इतिहास और आलोचना', 'कहानी : नई कहानी' और 'वाद विवाद संवाद' शामिल हैं.इन रचनाओं ने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नई दिशा दी.
कभी जब याद आ जाते।
नयन को घेर लेते घन,
स्वयं में रह न पाता मन
लहर से मूक अधरों पर
व्यथा बनती मधुर सिहरन
न दुख मिलता न सुख मिलता
न जाने प्राण क्या पाते!
तुम्हारा प्यार बन सावन,
बरसता याद के रसकन
कि पाकर मोतियों का धन
उमड़ पड़ते नयन निर्धन
विरह की घाटियों में भी
मिलन के मेघ मड़राते।
झुका-सा प्राण का अंबर,
स्वयं ही सिंधु बन बन कर
हृदय की रिक्तता भरता
उठा शत कल्पना जलधर।
हृदय-सर रिक्त रह जाता
नयन-घट किंतु भर आते
कभी जब याद आ जाते।
आईएएनएस इनपुट के साथ
ये भी पढ़ें-JPSC Success Story: तीन बार मेन्स तक पहुंचने के बाद मिली असफलता, लेकिन नहीं मानी हार, जिद्द ने दिलाई सफलता