संघर्ष के दौर में गांधीवाद ही आखिरी उम्मीद, हरिजन सेवक संघ का 92वां स्थापना दिवस समारोह संपन्न

हरिजन सेवक संघ की स्थापना आजादी से पहले 1932 में महात्मा गांधी ने की थी. इसका उद्देश्‍य अस्‍पृश्‍यता मिटाने तथा जाति, पंथ, लिंग और वर्ण आ‍धारित सभी प्रकार के अन्‍याय, तिरस्‍कार और भेदभाव मुक्‍त समाज बनाना था.

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नई दिल्ली:

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के किंग्सवे कैम्प स्थित प्रतिष्ठित गांधी आश्रम में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ का दो दिवसीय  92वां स्थापना दिवस समारोह मनाया गया, जिसमें देशभर के गांधीवादियों का जुटान हुआ. वर्तमान वैश्विक संघर्ष के दौर में गांधीवादी विचारों की प्रासंगिकता और उनकी उपयोगिता पर बल देते हुए गांधीजी के विचारों को समाज में फैलाने का प्रण लेते हुए इस सद्भावना सम्मेलन का समापन हुआ. दो दिनों के दौरान वक्ताओं ने सामाजिक न्याय, समानता और एकता को बढ़ावा देने पर सम्मेलन में चर्चा की. सम्मेलन में इस बात पर भी चर्चा हुई कि कैसे गांधीवादी मूल्य हमें एक अधिक समावेशी और शांतिपूर्ण समाज बनाने की दिशा में मार्गदर्शन करते हैं.

हरिजन सेवक संघ की स्थापना आजादी से पहले 1932 में महात्मा गांधी ने की थी. इसका उद्देश्‍य अस्‍पृश्‍यता मिटाने तथा जाति, पंथ, लिंग और वर्ण आ‍धारित सभी प्रकार के अन्‍याय, तिरस्‍कार और भेदभाव मुक्‍त समाज बनाना था. यह संगठन सभी गांधीवादी संगठनों की जननी है. दो दिवसीय कार्यक्रम की शुरुआत मंगलवार को प्रार्थना और दीप प्रज्वलन से हुई. इस सत्र की अध्यक्षता हरिजन सेवक संघ के अध्यक्ष प्रोफेसर (डॉ.) शंकर कुमार सान्याल ने की. पहले दिन की चर्चा गांधीवादी सिद्धांतों का समग्र शिक्षा के उद्देश्यों से संबंध और उनके योगदान पर केंद्रित था. वक्ताओं ने शिक्षा में विशेषकर नैतिक विकास और सामुदायिक-उन्मुख शिक्षा को बढ़ावा देने पर जोर दिया.

दूसरी चर्चा 'पत्रकारिता और मीडिया में गांधीवादी मूल्य' पर केंद्रित थी, जिसकी अध्यक्षता नित्यानंद तिवारी ने की. वक्ताओं ने आज के मीडिया परिदृश्य में सत्य और अहिंसा के संरक्षण में नैतिक पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया. कई विश्वविद्यालयों के कुलपति और पूर्व कुलपति समेत कई गांधी वादी शिक्षाविदों ने इसमें भाग लिया.

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दूसरे दिन की शुरुआत योग और श्रमदान के एक सत्र से हुई, जिसने दूसरों की सेवा और आत्म-अनुशासन की गांधीवादी भावना को पुनः पुष्टि की. 

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चर्चा "गांधी और युवा" पर भी केंद्रित रहीं, जिसमें युवाओं की गांधीवादी आदर्शों के संरक्षण और प्रगति में महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा की गई.  युवा और उद्यमिता पर एक व्यावहारिक कार्यशाला भी आयोजित की गई, जिसमें युवा प्रतिभागियों को गांधीवादी मूल्यों के अनुसार नैतिक व्यवसाय प्रथाओं और सामुदायिक-उन्मुख विकास के साथ उद्यमिता की भावना को विकसित करने की व्यावहारिक जानकारी प्रदान की गई. इस दौरान बिहार से आए प्रोफेसर देवेन्द्र प्रसाद सिंह ने वर्तमान में गांधी की प्रासंगिकता पर प्रकाश डालते हुए बिहार में जड़ी-बूटियों के औषधीय बागवानी के माध्यम से ग्रामीण परिवर्तन पर अपने चल रहे कार्यों की रूपरेखा पेश की.

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अतिथियों में जैन आचार्यश्री रूपचंद्रजी महाराज, मानव मंदिर मिशन ट्रस्ट के संस्थापक साध्वी कंकालता जी महाराज, प्रोफेसर धनंजय जोशी, डीयू के वाइस चांसलर; डॉ. बी.एन. मिश्रा, मणिपुर विश्वविद्यालय के चांसलर; प्रोफेसर जसीम अहमद, केंद्र के निदेशक, दूरस्थ शिक्षा; प्रोफेसर बी.एम. शर्मा, पूर्व वाइस चांसलर, कोटा विश्वविद्यालय; और रॉबिन हीबू (आईपीएस) शामिल थे.

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