1.8KM + 10 साल + बजट 178 से 725 करोड़ हुआ = रानी झांसी फ्लाईओवर, जानें क्‍या है पूरा मामला

रानी झांसी फ्लाईओवर को पूरा करने की पहली रेड डेडलाइन सितंबर 2010 थी यानी कॉमनवेल्थ गेम्स के समय थी, लेकिन यह डेडलाइन ऐसी मिस हुई कि आज तक डेडलाइन मिस होने के अंबार लगे हुए हैं.

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रानी झांसी फ्लाईओवर बनकर पूरी तरह तैयार है.
नई दिल्ली: दिल्ली का अब तक का सबसे ज्यादा इंतजार कराने वाला और देरी से बनने वाला रानी झांसी फ्लाईओवर बनकर तैयार है. सेट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट (CRRI) की गुणवत्ता जांच के बाद सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही इसे जनता के लिए खोल दिया जाएगा. उत्तरी दिल्ली नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक 'फ्लाईओवर का कार्य पूरा हो चुका है और बस फिनिशिंग टच दिया जा रहा है. 7 सितंबर को कोर्ट इसके पूरे होने पर सुनवाई है, जिसमे हमें उम्मीद है कि कोर्ट फ्लाईओवर को तुरंत आम जनता के लिए खोलने के लिए कहेगा लेकिन हम कोर्ट से 15 दिन का और समय मांगेंगे. CRRI जांच रिपोर्ट का अध्ययन कर उसके सुझावों पर अमल किया जाएगा. इसके बाद निगम इसके उद्घाटन की तारीख तय करेगा.'

1.8 किलोमीटर लंबा रानी झांसी फ्लाईओवर पूसा रोड अपर रिज और रोहतक रोड को फिल्मिस्तान सिनेमा, डीसीएम चौक, आजाद मार्केट और रोशनआरा रोड के जरिए ISBT कश्मीरी गेट से जोड़ेगा. इस फ्लाईओवर के खुल जाने से कश्मीरी गेट, करोल बाग, मोरी गेट, कमला नगर, सदर बाजार, पहाड़गंज और आजाद मार्केट में लगने वाले भारी ट्रैफिक और जाम से कुछ राहत मिलेगी. 6 लेन के रानी झांसी फ्लाईओवर को बनाने की बात 20 साल पहले शुरू हुई थी, लेकिन खराब तालमेल और तकनीकी समस्याओं के चलते 2006 में जाकर फ्लाईओवर बनाने के लिए टेंडर दिया गया. लेकिन कंस्ट्रक्शन 2009 में जाकर ही शुरू हुई. रानी झांसी फ्लाईओवर को बनाए जाने की पहली डेडलाइन सितंबर 2010 थी जब दिल्ली में कॉमनवेल्थ खेल होने थे.

'डेडलाइन का फ्लाईओवर'
रानी झांसी फ्लाईओवर को डेडलाइन का फ्लाईओवर भी कहा जाता है, क्योंकि जितनी डेडलाइन इस फ्लाईओवर ने चूकि हैं दिल्ली में शायद ही किसी दूसरे फ्लाइओवर ने चूकि हों. रानी झांसी फ्लाईओवर को पूरा करने की पहली रेड डेडलाइन सितंबर 2010 थी यानी कॉमनवेल्थ गेम्स के समय थी, लेकिन यह डेडलाइन ऐसी मिस हुई कि आज तक डेडलाइन मिस होने के अंबार लगे हुए हैं. ये फ्लाईओवर प्रोजेक्ट पहली डेडलाइन मिस होने के बाद सालों तक ऐसे ही चलता रहा, लेकिन एलजी अनिल बैजल की सख्ती के बाद साल 2017 में चार बार डेडलाइन देने के बावजूद यह फ्लाईओवर पूरा नहीं हो सका. इसके बाद इसी साल मार्च फिर जून और फिर 15 अगस्त की डेडलाइन मिस हो चुकी है. यानी यह फ्लाईओवर कुल 8 डेडलाइन मिस कर चुका है.

कितना महंगा पड़ा ये फ्लाईओवर?
साल 2006 में जब फ्लाईओवर का टेंडर दिया गया तो शुरुआती आंकलन में इस फ्लाईओवर निर्माण की कीमत करीब 178 करोड रुपए आंकी गई, लेकिन समय बीतता रहा, डेडलाइन मिस होती रही और इसी के चलते इस फ्लाईओवर की कीमत इसकी शुरुआती कीमत से कहीं गुना बढ़कर करीब 725 करोड रुपए तक पहुंच गई.

कितना कुछ बदल गया इस फ्लाईओवर के निर्माण में
रानी झांसी फ्लाईओवर बनने में इतना समय लग गया कि जैसे युग ही बीत गया. जिस समय रानी झांसी फ्लाईओवर के बारे में सोचा गया उस समय दिल्ली में शीला दीक्षित नई नई मुख्यमंत्री बन कर आई थी. यही नहीं जिस समय इस फ्लाईओवर का टेंडर दिया गया दिल्ली में नगर निगम केवल एक थी यानी एकीकृत थी इसी वजह से इस फ्लाईओवर को बनाने का काम शुरू तो किया दिल्ली नगर निगम ने लेकिन इसको पूरा कर रहा है उत्तरी दिल्ली नगर निगम. जिस समय इस परियोजना के बारे में सोचा गया या काम शुरू हुआ तब दिल्ली में कांग्रेस की सरकार और दिल्ली की ज़्यादातर लोकसभा सीटों पर कांग्रेस काबिज़ थी लेकिन आज ना दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस है और ना दिल्ली से कांग्रेस का नेता सांसद. 

क्यों ये फ्लाईओवर बना बीरबल की खिचड़ी?
रानी झांसी फ्लाईओवर के कार्य को पूरा करने के लिए एकीकृत निगम से लेकर निगम के बंटवारें के बाद उत्तरी दिल्ली नगर निगम को कई बाधाओं का सामना करना पड़ा था. सबसे बड़ी बाधा इसके निर्माण के रास्ते में आने वाली दुकानों को स्थानांतरित करना था.इतना ही नहीं दो बड़े धार्मिक स्थलों को भी हटाना किसी चुनौती से कम नहीं था. सुप्रीम कोर्ट से भी कई बार यहां की जमीन के अधिग्रहण पर रोक लगी. अधिकारी बताते हैं कि इस फ्लाईओवर की कीमत को बनाने की अधिकारी बताते हैं कि इस फ्लावर को बनाने में जो कीमत में कई गुना बढ़ोतरी हुई उसका सबसे बड़ा कारण है जमीन अधिग्रहण के लिए किया गया भुगतान. शुरुआत में जमीन अधिग्रहण के लिए करीब 70 करोड रुपए का अंदाजा था, लेकिन इसका आंकड़ा करीब 550 करोड रुपए तक पहुंच गया.
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