पुरानी दिल्ली के कबूतरबाज बड़े टूर्नामेंट की तैयारी में जुटे, कबूतरों को विशेषज्ञ दे रहे ट्रेनिंग

कबूतरबाजी दिल्ली में मुगल काल से एक पारंपरिक स्थानीय खेल रहा है, जो अभी भी पुरानी दिल्ली के कुछ हिस्सों में लोकप्रिय है

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प्रतीकात्मक तस्वीर.
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  • टूर्नामेंट में कबूतरों के झुंड को नियंत्रित करने की कुशलता की परख
  • विजेता का फैसला करने के लिए विभिन्न खेलों में अलग अलग नियम
  • कबूतरों की कई लोकप्रिय प्रजातियां अन्य शहरों से दिल्ली लाई जाती हैं
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नई दिल्ली:

गणतंत्र दिवस और अगले वर्ष आयोजित होने वाले कबूतरबाजी के अन्य टूर्नामेंट के लिए पुरानी दिल्ली के कबूतरबाजों ने देश भर से विभिन्न प्रजातियों के 2,000 से अधिक कबूतर खरीदे हैं और उन्हें प्रशिक्षण देने में जुटे हैं. कबूतरबाजी दिल्ली में मुगल काल से एक पारंपरिक स्थानीय खेल रहा है, जो अभी भी पुरानी दिल्ली के कुछ हिस्सों में विशेष रूप से जामा मस्जिद, चांदनी चौक और मटिया महल जैसे क्षेत्रों में लोकप्रिय है.

कबूतरबाजी खेल के विशेषज्ञ आबिद ने बताया कि टूर्नामेंट में कबूतरों के झुंड को नियंत्रित करने की कबूतरबाज़ की कुशलता को परखा जाता है. कबूतरों के झुंड को नियंत्रित करने के कबूतरबाजी कौशल का परीक्षण किया जाता है. उन्होंने बताया कि विजेता का फैसला करने के लिए विभिन्न खेलों में अलग अलग नियम होते हैं.

उन्होंने बताया, ‘‘कबूतरों की स्थानीय रूप से कई लोकप्रिय प्रजातियों जैसे आगरा से ‘सब्जपरी' (लाल रंग), पंजाब से पटियाला, हैदराबाद से हैदराबादी को टूर्नामेंट की तैयारी के लिए महीनों पहले ही कबूतरबाज द्वारा दिल्ली लाया जाता है.''

दानिश इलाही ने बताया कि हर साल गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस और ईद जैसे त्योहारों समेत अन्य बड़े अवसरों पर टूर्नामेंट आयोजित किए जाते हैं, जहां कबूतरबाज कौशल और तकनीक का प्रदर्शन करते हैं.

इलाही इस महीने की शुरुआत तक खलीफा थे, लेकिन 3 नवंबर की शाम को जश्न-ए-ताजपोशी में उन्हें कबूतर उड़ाने वालों के बीच सर्वोच्च पद ‘उस्ताद' की उपाधि से सम्मानित किया गया. उन्होंने कहा, ‘‘इस साल हमें आगरा, हैदराबाद, अजमेर और पंजाब से सबसे बड़ा झुंड मिला है और उनका प्रशिक्षण भी शुरू कर दिया गया है.''

पुरानी दिल्ली के अधिकतर कबूतरबाजों ने कहा कि बचपन से ही उन्हें कबूतरबाजी का शौक लग गया था. इलाही ने कहा, ‘‘इस खेल के प्रति मेरा प्यार बचपन से ही शुरू हो गया था क्योंकि यह मेरे पूर्वजों की विरासत है जिसे मैं अपने बच्चों को सौंपना चाहता हूं.''

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पुरानी दिल्ली के एक अन्य कबूतरबाज सलाम ने कहा कि त्योहारों जैसे विशेष अवसरों के अलावा खिलाड़ी हमेशा चुनौतियों के लिए तैयार रहते हैं. उन्होंने कहा कि ‘कुश्ती' और ‘दौड़' जैसी स्पर्धा भी लोकप्रिय है.

एक अन्य खलीफा अयाज ने बताया कि ‘कुश्ती' में प्रतिस्पर्धी सबसे वफादार झुंडों को चुनते हैं जिन्हें दोनों पक्षों द्वारा आकाश की ओर उड़ने के लिए निर्देशित किया जाता है. दो झुंड मिलते हैं और हवा में ही विलीन हो जाते हैं, फिर मालिक उन्हें वापस आने का आदेश देते हैं, जिसकी छत पर ज्यादा कबूतर लौटते हैं, वह खेल जीत जाता है.

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अयाज ने कहा, ‘‘दौड़ भी कई उस्तादों के बीच लोकप्रिय है. इस खेल के लिए दोनों प्रतिस्पर्धियों द्वारा झुंड में से दो सबसे तेज कबूतरों को चुना जाता है. जो कबूतर सबसे पहले वापस आता है वह दौड़ जीत जाता है. विजेता के मूल्यांकन के लिए दिशा, ट्रैक और दूरी पर भी विचार किया जाता है.''

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