IIT दिल्ली पीएचडी स्कॉलर का "35,000 रुपये महीना" स्टाइपेंड, इतनी मेहनत और इतना कम स्टाइपेंड... LinkedIn पोस्ट वायरल

LinkedIn Viral Post: पोस्ट में-''मेरा एक दोस्त जो 33 साल का है, शादीशुदा है और आईआईटी दिल्ली में पीएचडी कर रहा है और उसे प्रति महीने मात्र 35 हजार रुपये स्टाइपेंड मिलता है.'' वह ब्रिल्यन्ट है, उसने जेईई, गेट भी पास किया है, फिर भी...

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IIT दिल्ली पीएचडी स्कॉलर का "35,000 रुपये महीना" स्टाइपेंड
नई दिल्ली:

IIT Delhi PhD Scholar's: सोशल मीडिया पर एक पोस्ट ने भारत में शोधकर्ताओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर फिर से चर्चा शुरू कर दी है. यह मामला तब सुर्खियों में आया जब रेहान अख्तर (Rehan Akhtar) ने लिंक्डइन (LinkedIn) पर एक वायरल पोस्ट (viral Post) साझा की, जिसमें उन्होंने बताया कि आईआईटी दिल्ली (IIT Delhi) जैसे प्रतिष्ठित संस्थान में एक पीएचडी छात्र, जो एडवांस्ड एआई (advanced AI) शोध में लगा हुआ है, उसे महज 35,000 रुपये महीने का स्टाइपेंड मिलता है. इस पोस्ट ने शोधकर्ताओं के वेतन और सम्मान को लेकर गहरे सवाल खड़े किए हैं.

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शैक्षणिक उपलब्धियों के बावजूद आर्थिक तंगी

रेहान अख्तर के अनुसार, यह पीएचडी छात्र कोई साधारण शख्स नहीं है. उसने जेईई (JEE), गेट ( GATE) और पीएचडी (Phd) इंटरव्यू जैसी कठिन परीक्षाओं को पास किया है. इसके अलावा, वह शोध कार्य के साथ-साथ अंडरग्रेजुएट छात्रों को भी पढ़ाता है. उसने 100 से अधिक शोध पत्रों की समीक्षा की और अपने कई शोध पत्र प्रकाशित किए. फिर भी, इतने प्रभावशाली योगदान के बावजूद उसे आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है. किराए और परिवार के खर्च जैसे बुनियादी जरूरतों को पूरा करना उसके लिए मुश्किल हो रहा है.

रेहान ने अपनी पोस्ट में लिखा, "हमारा सिस्टम औसत दर्जे को पैसों से नवाजता है और प्रतिभा को महज जीवित रहने के लिए छोड़ देता है. पीएचडी स्कॉलर सिर्फ छात्र नहीं हैं—वे एजुकेटर, इनोवेटर और भविष्य के निर्माता हैं. लेकिन उन्हें भुला दिया जाता है. जुनून के लिए गरीबी की कीमत नहीं चुकानी चाहिए. उन सभी शोधकर्ताओं के लिए जो चुपचाप मेहनत कर रहे हैं: आपका काम मायने रखता है. आप मायने रखते हैं. अब समय आ गया है कि सिस्टम भी इसे दिखाए."

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https://www.linkedin.com/posts/rehanakhtar-559340114_phdindia-researchmatters-phd-activity-7314531800100315137-J2Iv?utm_source=share&utm_medium=member_desktop&rcm=ACoAABWqGx8BjGtkAHKsQfe9D3oWZ-WDreq6nZY

सोशल मीडिया पर मिली प्रतिक्रियाएं

इस पोस्ट ने इंटरनेट यूजर्स को बहुत प्रभावित किया है और कई लोगों ने भारत में शोधकर्ताओं को दी जाने वाली सुविधाओं और सम्मान में बदलाव की जरूरत पर जोर दिया. कुछ यूजर्स ने 'ब्रेन ड्रेन' के मुद्दे को उठाया और कहा कि कम स्टाइपेंड और समर्थन की कमी के कारण प्रतिभाशाली शोधकर्ता विदेशी संस्थानों की ओर रुख कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, "यह सच है, पीएचडी छात्रों को मिलने वाली ग्रांट बहुत कम है. जब मैंने स्नातक किया, तो मैंने भी कम स्टाइपेंड की वजह से पीएचडी करने का इरादा छोड़ दिया, क्योंकि नौकरी में इससे कहीं ज्यादा कमाई थी. वहीं दूसरे ने कहा, "मैंने शोध छोड़कर कॉरपोरेट नौकरी चुन ली. जुनून तो था, लेकिन किराया और बिल अपने आप नहीं भरत." एक तीसरे यूजर ने टिप्पणी की, "भारतीय सरकार R&D पर बहुत कम खर्च करती है और मुफ्त सुविधाओं पर ज्यादा ध्यान देती है. मेरे कई दोस्तों ने एमटेक के बाद पीएचडी की, लेकिन मैं सोचता था कि क्या वे अपनी वित्तीय स्थिति को लेकर गंभीर हैं? महंगाई और खर्चों को देखते हुए एमटेक और पीएचडी स्तर पर मिलने वाला स्टाइपेंड टिकाऊ नहीं है और अक्सर निराशाजनक है."

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अलग-अलग मत भी आए सामने

हालांकि, कुछ लोगों ने इससे अलग राय भी रखी. एक चौथे यूजर ने लिखा, "सबसे पहले, यह सिस्टम सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी देशों में देखा जा सकता है. दूसरे किसी भी क्षेत्र में व्यक्ति की सैलरी उसकी बाजार मूल्य पर निर्भर करती है, जो कई अन्य कारकों से तय होती है. सम्मानपूर्वक, मेरा मानना है कि यह तुलना बहुत सतही है." बता दें कि कई रिपोर्ट्स में देखा गया है कि बेहतर वित्तीय समर्थन नहीं मिलने के चलते प्रतिभाएं विदेशों की ओर पलायन करती हैं. 

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