अंग्रेजी में एक मशहूर कहावत है- Old Wine in New Bottles. यानी नई बोतल में पुरानी शराब. हिंडनबर्ग रिपोर्ट मामला ऐसा ही है. हिंडनबर्ग ने बोतल बदली है, लेकिन पुरानी शराब डाली है. गौर करने वाली बात ये है कि ये वाइन पहले भी सड़ी हुई थी और आज भी सड़ी हुई है. हिंडनबर्ग की रिपोर्ट कुछ और नहीं, बल्कि एक फालतू सेंसेशनलिज्म है. जिसका इसबार मार्केट पर कोई असर नहीं हुआ.
मेरी उम्मीद यही है कि हिंडनबर्ग ने एक बार फिर से शॉर्ट सेलिंग की है. हो सकता है कि इनको मालूम हो कि इसबार मार्केट पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इसलिए किसी दूसरे से रिपोर्ट लीक कराया गया होगा. इनकी जान निकली हुई है, क्योंकि SEBI इनके पीछे पड़ी हुई है.
इंडियन मार्केट में हिंडनबर्ग जो कर रहा है, वो हमारे देश की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों के लिए अच्छा नहीं है. उनको मालूम है कि भारत में कोई भी खबर छाप दो. किसी की बुराई कर दो... लोग उसे उछालने लग जाते हैं. लोग ऐसा मानते हैं कि बस यही सच है.
हिंडनबर्ग को लगा कि अगर वो इंडियन मार्केट में आग लगा देगी, तो पिछली बार की तरह नुकसान कर पाएगी. लेकिन इस बार स्टॉक मार्केट ने मैच्योरिटी दिखाई है. अब इसका राजनीतिक मुद्दा बनता है या नहीं बनता है... ये आगे की बात है. लेकिन मेरा मानना है कि कुछ पहलवान फिर इसपर याचिका लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाएंगे. दिक्कत ये है कि जो भी ऐसा केस करता है, उसे मीडिया भी फ्रंटपेज कवरेज देता है. ये सही प्रैक्टिस नहीं है.
जो लोग मार्केट में हैं, वो बताते हैं कि अमेरिका में अब थोड़ा रियालिटी चेक आया है. भारत तेजी से ग्रोथ के रास्ते पर बढ़ रहा है. इसलिए कुछ लोगों को ये बर्दाश्त नहीं हो रहा. भारत के विकास की कहानी कइयों को पच नहीं रही है.
भारत की सक्सेस स्टोरी से लोगों को तकलीफ तो है, क्योंकि इससे दुनिया का पावर बैलेंस शिफ्ट होता है. लोग कोशिश तो करेंगे ही कि भारत में राजनीतिक अस्थिरता आए. इसके लिए वो कुछ तो ऐसा करेंगे, जिससे भारत की सक्सेस स्टोरी का एक-आध टायर तो पंक्चर हो जाए. ताकि विकास की गति कमजोर हो.
मार्केट रेगुलेटर SEBI ढीली है... इसलिए ऐसे मामले दूसरी बार, तीसरी बार होते हैं. किसी और देश में होते और ऐसी रिपोर्ट आती, तो हिंडनबर्ग को ठोक दिया जाता.
(हरीश साल्वे भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल हैं)