Daata Movie Song: चाहे कोई शादी हो या विदाई का मौका यह गाना जरूर बजता है. गाने की धुन पर लोग नाचते जरूर हैं लेकिन हर एक की आंखों में नमी और जुदाई का गम झलकने लगता है. यह गाना था साल 1989 में आई फिल्म दाता का 'बाबुल का यह घर बहना कुछ दिन का ठिकाना है'. जितना बड़े परदे पर एक पिता का दुख इस गाने में दिखाई पड़ता है उतना ही इस गाने में संगीतकार की अपनी पीड़ा छिपी है.
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फिल्म दाता को उस समय की सुपरहिट फिल्मों में गिना जाता है. डायरेक्टर सुल्तान अहमद थे और फिल्म की स्टारकास्ट में मिथुन चक्रवर्ती (Mithun Chakraborty), पद्मिमिनी कोल्हापुरे, शमी कपूर, सदीन जाफरी और प्रेम चोपड़ा शामिल थे. फिल्म को अगर आज भी याद किया जाता है तो इसकी एक बड़ी वजह फिल्म का म्यूजिक है. फिल्म में यूं तो कई गाने थे लेकिन बाबुल का यह घर बहना ऐसा गाना है जो पत्थर को भी मोम कर दे. इस फिल्म को म्यूजिक दिया था भाइयों की बेमिसाल जोड़ी आनंदजी और कल्याणजी ने, इस गाने को अपनी आवाज दी थी प्लेबैक किंग किशोर कुमार (Kishore Kumar) और अल्का याग्निक जी ने. गाने को अंजान ने लिखा था और इसे फिल्म में शादी से बिल्कुल पहले के सीन के लिए लिया गया था.
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यह एक बेहद ही इमोशनल गाना है जिसे आमदिनो में भी सुना जाए तो मन रुआंसा होने लगता है. इस गाने के संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी ((Kalyanji-Anandji) को किसी परिचय की जरूरत नहीं है. उनके गानों की तारीफ की जाए तो शायद शब्द कम पड़ने लगें. क्लायाणजी वीरजी शाह और आनंदजी वीरजी शाह म्यूजिक कंपोजर और म्यूजिक डायरैक्टर थे जिन्हें क्लायणजी-आनंदजी के नाम से जाना जाता है. इनकी धुनों में जो दम था उसने 'गोविंदा आला रे', 'मेरे अंगने में', 'सलाम ए इश्क', 'जिंदगी का सफर', 'चंदन सा बदन', 'अपनी तो जैसे तेसे' और जाने कितने ही गानों को एवरग्रीन बना दिया. वे जिन गानों को बनाते थे उस फिल्म की हर एक बारीकी को ध्यान में रखते थे, क्या जगह है, किस शहर में गाने की शूटिंग हो रही है, किरदारों की क्या भाषा है वगैरह-वगैरह. लेकिन, बाबुल का यह घर बहना गाने से आनंदजी का अपना एक्सीपिरियंस, अपनी फीलिंग्स और अपना दुख जुड़ा है.
यह वो वक्त था जब आनंदजी की बेटी शादी के बाद से ही लंदन में थीं और प्रेग्नेंट थीं. आनंदजी अपनी बेटी के बेहद करीब थे. बेटी प्रेग्नेंट थी और परेशान भी थी तो पिता से कहा कि "डैडी, आई एम नॉट कंफर्टेबल, आप यहां आ जाइए". आनंदजी बोले कि मां को भेज देता हूं तो बेटी ने कहा नहीं आप आओ तो अच्छा लगेगा मुझे. तो आनंदी जी ने कहा कि मैं तो अभी 3-4 महीने तक नहीं निकल सकूंगा. उसने कहा तब तक तो डिलीवरी भी हो जाएगी. फिर उसने एक बात पूछी, कि बेटी का क्या इतना हक नहीं होता कि एक बार ससुराल भेज दी तो कुछ मांग नहीं सकती. यह सुनकर आनंदजी को बड़ी तकलीफ हुई, एक पिता का दिल टूटने लगा. इसी दौरान उनके पास सुल्तान अहमद जी की फिल्म आई और इस तरह पिता के अपने दुख से निकला यह कालजयी गाना. कहते हैं जब यह गाना स्टूडियो में रिकॉर्ड हो रहा था तो आनंदजी की आंखों से आंसू बहने लगे थे. और बस, ऐसे बनकर तैयार हुआ यह विदाई का गीत.
जब संगीतकार Anandji के अपने जीवन से प्रेरित हुआ 'बाबुल का यह घर बहना' गाना