नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी)ने पिछले महीने केरल से एक इंजीनियर को गिरफ्तार किया था. उस पर विदेश से एलएसडी ब्लॉटर्स (लिसेर्जिक एसिड डाइएथाइलैमाइड में डूबे पेपर के टुकड़े) मंगवाने और पूरे देश में उसे बेचने का आरोप है.एनसीबी ने जिस मुलायमकुट्टी एडिसन को गिरफ्तार किया, वह काफी पढ़ा-लिखा है और एक सभ्य परिवार से आता है. मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले एडिसन ने जर्मनी और बेंगलुरु की टेक कंपनियों में काम किया है. वह एक सीधा-साधा नजर आने वाला युवा है. लेकिन एनसीबी अधिकारियों के मुताबिक एडिसन का पूरा कारोबार डार्कनेट या डार्क वेब के जरिए चलता था. एडिशन को लोग 'डार्कनेट'पर 'केटामेलोन' के नाम से जानते थे. उसे वहां पर 4 रेटिंग हासिल थी. डार्कनेट पर इतनी रेटिंग अभी तक किसी भी भारतीय को हासिल नहीं है. इतना पढ़ने के बाद आपके मन में यह सवाल पैदा हो रहा होगा कि आखिर यह डार्कनेट या डार्क-वेब है क्या और इस पर सक्रिय लोग करते क्या हैं. तो आइए हम आपको डार्कनेट या डार्क वेब के बारे में बताते हैं.
इंटरनेट और हमारी दुनिया
हम लोग रोजाना इंटरनेट का प्रयोग खबरें पढ़ने, वीडियो देखने, सोशल-मीडिया चलाने या ऑनलाइन खरीदारी के लिए करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस इंटरनेट की एक ऐसी भी दुनिया है जो आम लोगों की नजरों से छिपी हुई है. इस छिपी हुई दुनिया में सबसे गंभीर, गुप्त और अवैध गतिविधियां होती हैं. इस छिपी हुई दुनिया को ही डार्क वेब (Dark-Web) के नाम से जानते हैं. निअरकोस निअरचू की किताब 'कॉम्बैटिंग क्राइम ऑन द डार्क वेब: लर्न हाउ टू एक्सेस द डार्क वेब सेफली एंड नॉट फॉल विक्टिम टू साइबरक्राइम' हमें इस अदृश्य दुनिया से परिचित कराती है.
इंटरनेट ने दुनिया को एक नया आयाम दिया है.लेकिन इससे साइबर क्राइम की घटनाओं में बढ़ोतरी भी हो रही रही है. साइबर क्राइम इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों और इंटरनेट के माध्यम से किए जाते हैं. इसमें वित्तीय लाभ, व्यक्तिगत पहचान की चोरी और सरकारों के खिलाफ हमले शामिल होते हैं. प्रमुख साइबर अपराधों में साइबर स्टॉकिंग, वायरस ट्रांसमिशन, साइबर युद्ध और पहचान की चोरी जैसे अपराध शामिल हैं. साइबर हमले आजकल डिजिटल दुनिया का एक गंभीर खतरा बन गए हैं. ये हमले कंप्यूटर, नेटवर्क और स्मार्टफोन से लेकर कारों, पावर ग्रिड और यहां तक कि विमानों को भी प्रभावित कर रहे हैं.
कितने स्तरों पर बंटा हुआ है इंटरनेट
इंटरनेट को तीन स्तरों में बांटा गया है-सर्फेस वेब, डीप वेब और डार्क वेब. सर्फेस वेब वह हिस्सा है जिसे सामान्य सर्च इंजन जैसे गूगल से एक्सेस किया जा सकता है. यह कुल इंटरनेट सामग्री का करीह पांच फीसदी है. डीप वेब इंटरनेट सामग्री का करीब 90 फीसदी हिस्सा है. इसमें शैक्षिक पत्रिकाएं और निजी डेटाबेस शामिल हैं. यह सर्च इंजन द्वारा अनुक्रमित नहीं होते हैं. डार्क-वेब दरअसल डीप वेब का एक छोटा हिस्सा है.इसे TOR (The Onion Router) जैसे विशेष ब्राउजर के माध्यम से एक्सेस किया जाता है. इसमें वैध और अवैध दोनों प्रकार की गतिविधियां शामिल है. डार्क वेब की सुरक्षा और गुमनामी के लिए TOR और I2P जैसे टूल्स की जरूरत होती है.
डार्क वेब को TOR (The Onion Router) जैसे विशेष ब्राउजर से एक्सेस किया जाता है.
डार्क-वेब इंटरनेट का एक छिपा हुआ हिस्सा है. इसका विकास 1960 के दशक में तब हुआ जब ARPANET की शुरुआत हुई थी. 1970 के दशक में 'डार्कनेट' शब्द सामने आया. यह उन नेटवर्क के बारे में बताता है, जहां सभी ट्रैफिक छिपा होता है. TOR को 2002 में औपचारिक रूप से जारी किया गया था. इसके विकास के साथ ही डार्क-वेब भी बढ़ता गया. TOR, I2P और Freenet जैसे उपकरण यूजर्स को गुमनाम रूप से ब्राउजिंग की इजाजत देते हैं. इस वजह से यह यूजर्स और अपराधियों के लिए एक सुरक्षित स्थान बन गया.
डार्क वेब पर मानव तस्करी
डार्क-वेब पर मानव तस्करी, ड्रग्स वितरण और मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आपराधिक गतिविधियां होती हैं. इन अपराधों में बिटकॉइन और मोनेरो जैसे क्रिप्टोकरेंसी सुविधा प्रदान करते हैं. इस वजह से डार्क-वेब एक जटिल और निगरानी के लिए चुनौतीपूर्ण वातावरण बन जाता है. डार्क-वेब पर ड्रग्स का व्यापार तेजी से बढ़ रहा है. यहां ड्रग्स के विक्रेता और खरीदार गुमनाम रहते हैं. वे बिटकॉइन जैसी डिजिटल मुद्रा में लेन-देन करते हैं. यह मार्केट ड्रग्स की आसान से सुरक्षित खरीद-फरोख्त का अवसर देता है.
डार्क वेब पर बाल पोर्नोग्राफी एक गंभीर समस्या बन चुकी है. यहां पर पीडोफाइल्स बच्चों के यौन शोषण से संबंधित सामग्री साझा करते हैं. वहीं इंटरनेट और मोबाइल तकनीक में आए बदलाव ने इस प्रकार की सामग्री के व्यापार को बढ़ावा दिया है. कोरोना महामारी के दौरान यह समस्या और भी बढ़ी. बाल यौन शोषण सामग्री (CSAM) दुनिया भर में शेयर की जाती है और बेची जाती है. वहीं सरकारें और कंपनियां इसे रोकने के लिए संघर्ष कर रही हैं. डार्क-वेब पर बाल यौन शोषण सामग्री से जुड़े अपराधी अपनी इच्छाओं,फिटिश और बच्चों के शोषण के अनुभव साझा करते हैं. ये अपराधी बच्चों के यौन शोषण के चित्रों का व्यापार करते हैं. ये अपराधी दूसरे अपराधियों से जुड़कर बच्चों के शोषण के तरीकों पर चर्चा करते हैं.
मानव तस्करी को आधुनिक दासता कहा जाता है. यह एक गंभीर अपराध है, जो लाखों लोगों को शिकार बनाता है. डार्क वेब इसे बढ़ाने में मदद करता है, क्योंकि यहां वे आसानी से पीड़ितों को खरीद सकते हैं और उनका शोषण कर सकते हैं. तस्करी के प्रमुख कारणों में गरीबी, श्रमिकों की सस्ती मांग और युद्ध क्षेत्र शामिल हैं. डार्क वेब पर अपराधियों को अपनी पहचान सार्वजनिक नहीं करनी होती है. इससे उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है. इसके पीड़ितों को धोखे, धमकियों और शारीरिक शोषण से नियंत्रित किया जाता है.
साइबर आतंकवाद का बढ़ता खतरा
साइबर आतंकवाद आज के समय एक बड़ा खतरा बन गया है. इसे कंप्यूटर प्रणालियों पर हमले के रूप में अंजाम दिया जाता है. यह विशेष रूप से डार्क-वेब पर पाया जाता है. डार्क-वेब आतंकवाद के पारंपरिक तरीकों से काफी सस्ता है, इसलिए आतंकवादी इसका इस्तेमाल करते हैं. डार्क-वेब पर आतंकवादी गुमनाम रहते हुए कहीं से भी कार्रवाई को अंजाम दे सकते हैं. बिजली ग्रिड और आपातकालीन सेवाएं डार्क वेब पर सक्रिय आतंकवादी इसका इस्तेमाल अपनी गतिविधियों को छिपाने, भर्ती करने, प्रचार करने और धन जुटाने के लिए करते हैं. वे वर्चुअल करेंसी से अपनी वित्तीय लेन-देन को गुप्त रखते हैं.
डार्क-वेब पर अपराध और अपराधियों से निपटने के लिए पुलिस कई तकनीकों का उपयोग करती है. डार्क-वेब की गुमनामी के कारण अपराधियों का पता लगाना मुश्किल होता है, इसलिए ओपन सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) जैसे तरीकों से पुलिस जानकारी इकट्ठा करती है. पुलिस डार्क-वेब पर अपराधियों को पकड़ने के लिए 'हनीपॉट ट्रैप' जैसी रणनीतियों का भी सहारा लेती है. इसमें वे अपराधियों को फंसाने के लिए नकली वेबसाइट बनाती है. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और सख्त कानूनों के पालन से भी डार्क-वेब पर अपराधों को कम करने का प्रयास किया जाता है. डार्क-वेब मॉनिटरिंग टूल्स और तकनीकों में OSINT (ओपन सोर्स इंटेलिजेंस) शामिल हैं. यह साइबर अपराध से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
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