आर्थिक तंगी के बावजूद, कड़ी मेहनत के बूते बड़ी कामयाबी हासिल करने वालों की खबरें जब-तब आती रहती हैं. कभी किसी ऑटो-रिक्शा चालक की बेटी सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास कर जाती है. कभी घर-घर काम करने वाली अम्मा का बेटा अचानक करोड़ों के पैकेज वाली नौकरी पा लेता है. सवाल है कि आखिर इस तरह की खबरें सबको अपनी ओर खींचती क्यों हैं?
इस तरह की खबरें तो कई हैं. फिलहाल दो मिसाल लेते हैं. महाराष्ट्र के डोंबिवली में रहने वाले योगेश ने CA की फाइनल परीक्षा पास कर ली. खास बात ये कि उनकी मां सड़क किनारे सब्जियां बेचने का काम करती हैं. योगेश जब अपनी मां को खुशखबरी देने पहुंचे, तो वे किसी मासूम बच्चे की तरह फूट-फूटकर रोने लगीं. सड़क किनारे यह सीन देख बाकी लोगों की आंखें भी नम हो गईं. योगेश ने कड़ी मेहनत से अपनी मां की दो-ढाई दशकों की तपस्या को सफल कर दिया.
इसी तरह, यूपी के अलीगढ़ जिले के एक छोटे-से शहर में रहने वाले गगन की कहानी भी युवा-वर्ग को प्रेरणा देने वाली है. गगन के पिता एक गैस गोदाम में काम करते हैं. गगन भी अपने पिता के काम में जब-तब हाथ बंटाते रहे हैं. दिनभर दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते-करते जब गगन बुरी तरह थक जाते, तो रात में ऑनलाइन पढ़ाई कर लेते. उनकी मेहनत रंग लाई. JEE एडवांस्ड, 2024 में बढ़िया रैंक लाकर अब वे IIT BHU में दाखिला पा चुके हैं.
इस तरह की सक्सेस स्टोरी में ऐसे कई फैक्टर छुपे होते हैं, जो लोगों को सम्मोहित करते हैं. दरअसल, पैसों की तंगी के बावजूद अपनी लगन से सफलता पाने वाले ये होनहार असली नायक की तरह देखे जाते हैं. ठीक है कि रील वाले हीरो का भी अपना अलग आकर्षण होता है. ये हीरो कुछ घंटे तक पर्दे पर मनोरंजन करते हैं. लेकिन दर्शकों को यह अच्छी तरह मालूम होता है कि यहां सबकुछ 'स्क्रिप्टेड' है.
दूसरी ओर, योगेश और गगन जैसे हीरो को पूरे समाज का प्यार इसलिए मिलता है कि उनकी कामयाबी की स्क्रिप्ट, उनकी ही कलम से लिखी गई होती है. लगातार ऐसे हीरो का उभरना यही बताता है कि सफलता का आसमान सबके लिए खुला है. यहां हर कोई कामयाबी की ऊंची उड़ान भर सकता है. सोशल मीडिया पर इस तरह के वीडियो को ढेरों व्यूज मिलना महज इत्तेफाक की बात नहीं है.
आम तौर पर ऐसा मान लिया जाता है कि पैसों की तंगी कामयाबी की राह में बड़ी बाधा बनती है. कुछ बड़ा न कर सकने के पीछे भी कई बार आर्थिक स्थिति को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है. लेकिन जब-जब किसी योगेश या गगन की कहानी सामने आती है, तो यह बंधी-बंधाई धारणा टूटती है कि बिना पैसे के कुछ नहीं हो सकता. यही वह चीज है, जो इसे पूरे समाज से कनेक्ट करती है. ऐसी कहानियों से हर किसी की उम्मीदें परवान चढ़ती हैं.
यह बात ठीक है कि पैसे का भी अपना रोल होता है. पैसों के बिना कई बार बनते हुए काम भी बिगड़ जाते हैं. लेकिन पैसों की तंगी को नाकामी की एकमात्र वजह ठहरा दिया जाना सही नहीं है. अगर कामयाबी की बाकी शर्तें पूरी की जा रही हों, तो रास्ते निकल ही आते हैं.
जहां चाह, वहां राहपुरानी कहावत है. जाहिर है, सदियों आजमाई गई होगी. जरा सोचिए कि दिनभर में 250-300 सिलेंडर का बोझ उठाने के बाद किसी के पास पढ़ाई के लिए कितना समय बचता होगा? देह में ताकत कितनी बचती होगी? लेकिन ये सच्ची कहानियां बताती हैं कि कामयाबी का असल रहस्य तो कहीं और ही छुपा है. जोश, जज्बा, मेहनत और मजबूत इच्छा-शक्ति के आगे मुसीबतें अक्सर छोटी पड़ जाती हैं. यहीं सफलता का दरवाजा खुलने लगता है. और अगर एक बार किसी पत्थर में भी चमक दिख जाए, तो फिर उसे रास्ते से उठाकर गले लगाने वालों की कमी नहीं होती. अगर 'फिजिक्स वाला' के अलख सर ने गगन को खोज निकाला, तो इसमें ताज्जुब ही क्या?
वैसे महत्वाकांक्षा तो हर किसी में होती है. लेकिन महत्वाकांक्षा के हिसाब से अपनी क्षमताओं का विकास कर लेने पर मनचाहे नतीजे मिलने लग जाते हैं. ऐसे नतीजे एक बड़े वर्ग को अपनी ओर खींचते हैं.
टेक्नोलॉजी का रोलमोबाइल पर ज्यादा वक्त बिताना आज के दौर की एक बड़ी समस्या समझी जा रही है. दुनियाभर के एक्सपर्ट आशंका जताते रहे हैं कि स्मार्टफोन, सोशल मीडिया और वर्चुअल वर्ल्ड में ज्यादा खोए रहने वाले लोगों को सेहत संबंधी समस्याओं से जूझना पड़ सकता है. यह टेक्नोलॉजी का नकारात्मक पहलू है.
दूसरी ओर, यह बात भी उतनी ही सही है कि सस्ते स्मार्टफोन, एजुकेशनल ऐप और ऑनलाइन पढ़ाई ने बहुत बड़ी आबादी को फायदा पहुंचाया है. इनसे स्टूडेंट को कई तरह की मदद मिल रही है. एक तो ये कि ऑनलाइन कोर्स ऑफलाइन के मुकाबले काफी सस्ते होते हैं. इसे अफोर्ड करना किसी के लिए भी ज्यादा मुश्किल नहीं. यहां समझ न आने वाली चीजों को बार-बार देखने की सुविधा होती है. कोर्स का वीडियो देखने का टाइम भी अपनी मर्जी से चुना जा सकता है. ऐसे में अभावों के बीच, इन सुविधाओं के सहारे जब कोई गगन आगे बढ़ता है, तो उसके लिए वाहवाही के बोल निकलना स्वाभाविक है.
अनिश्चितताओं का रोमांचजीवन हर पल अनिश्चितताओं से भरा है. कई बार यह अनिश्चितता ही रोमांच पैदा करती चली जाती है. ऐसा खेलों में भी अक्सर देखा जाता है. दो मजबूत टीमों की भिड़ंत, हार-जीत की बराबर की संभावना सबको बांधकर रखती है. वहीं एकतरफा मुकाबले बोरियत पैदा करते हैं. और अगर कोई बड़ा उलट-फेर हो जाए, तो उसके रोमांच की बात ही क्या! दुनिया ने देखा कि लगातार 10 मैच धूम-धड़ाके से जीतने वाली टीम किस तरह सबसे बड़े मुकाबले के फाइनल में हार जाती है. यही जीवन की खूबसूरती है, जहां कुछ भी फिक्स नहीं.
रेस में जिन घोड़ों पर भूलकर भी कोई दांव नहीं लगाना चाहता, अगर वैसे घोड़े जीत जाते हैं, तो यह रोमांच की आखिरी सीमा होती है. ठीक इसी तरह, सब्जी बेचने वाली किसी अम्मा के बेटे पर, सिलेंडर उठाने वाले किसी लड़के पर भला कितने लोग पहले से दांव लगाने को तैयार होते हैं? और जब ये कोई बड़ी रेस जीत लेते हैं, तो इनके लिए हर तरफ से तालियों की गड़गड़ाहट सुनाई पड़ना तो लाजिमी ही है.
अमरेश सौरभ वरिष्ठ पत्रकार हैं... 'अमर उजाला', 'आज तक', 'क्विंट हिन्दी' और 'द लल्लनटॉप' में कार्यरत रहे हैं...
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