This Article is From Apr 21, 2022

जानें क्या है पीके का कांग्रेस प्लान ?

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Manoranjan Bharati

पीके यानी प्रशांत किशोर को लेकर कांग्रेस में लगातार हलचल मची हुई है और राजनीतिक गतिविधियां तेज हैं. पिछले चार दिनों से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से पीके की लगातार मुलाकात हो रही है. माना जा रहा है कि गांधी परिवार ने पीके के कांग्रेस में आने का रास्ता साफ कर दिया है. मगर उस पर एक आम राय बनाने के लिए वरिष्ठ नेताओं को भी शामिल किया है. इसमें पी चिदंबरम, जयराम रमेश, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक,अंबिका सोनी, सुरजेवाला जैसे नेता मौजूद हैं. मगर यह पहली बैठक नहीं है. इससे पहले भी मुलाकातें हुई हैं, जिसमें एके एंटनी और वीरप्पा मोइली जैसे नेता मौजूद थे और मोइली ने तो खुलकर प्रशांत किशोर की वकालत कर दी कि उन्हें कांग्रेस मे शामिल कर लेना चाहिए. राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भी इसमें शामिल हैं. माना जा रहा है कि इन सभी नेताओं के सामने प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में दोबारा जान फूंकने के लिए प्लान दिया है. प्रशांत किशोर के आत्मविश्वास के पीछे उन्हें रणनीतिकार के रूप में मिली सफलता भी है. 

उन्होंने अपने करियर की शुरुआत राहुल गांधी के साथ की फिर 2014 में नरेंद्र मोदी की टीम में गए और उन्हें वहां सफलता दिलवाई. फिर नीतिश कुमार से साथ मिले और लालू नीतीश को एक मंच पर ले आए. फिर कभी कैप्टन अमरिंदर,जगन रेड्डी,एम के स्टालिन से जुड़े और उनको गद्दी तक पहुंचाया. ममता के साथ बंगाल में उनसे जुड़े और बीजेपी की तमाम कोशिशों के वावजूद ममता को शानदार जीत हाथ लगी. इसका मतलब यह है कि प्रशांत किशोर को अब कुछ साबित करने के लिए नहीं है इसलिए जब पीके अपना प्लान सोनिया गांधी के पास लेकर गए तो उन्हें पसंद आया वैसे भी गुजरात की जिम्मेदारी वह पीके को पहले ही दे चुकी हैं. यह भी कहा जा रहा है कि सोनिया गांधी ने बाकी नेताओं से पूछा कि क्या उनके पास इससे अच्छा कोई प्लान है तो वो भी दें और तब सबने पीके के इस प्लान पर हामी भर दी. 

माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर ने कांग्रेस नेताओं को बताया है कि उनकी लड़ाई किससे है और कैसे उससे लड़ा जा सकता है. पीके ने कांग्रेस नेताओं को समझाया कि उनका मुकाबला मोदी-शाह की जोड़ी से तो है ही, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपार लोकप्रियता शामिल है. मगर उसके पीछे कई ऐसे कारण हैं, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता.

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पीके का मानना है कि बीजेपी की सफलता में हिंदुत्व, उग्र राष्ट्रवाद के साथ-साथ कल्याणकारी योजनाएं जैसे मुफ्त राशन,घर और शौचालय जैसी चीजों का भी बहुत बड़ा हाथ है, जिससे इंकार नहीं किया जा सकता है. दूसरी बात जो बीजेपी के पक्ष में जाती है वो है बीजेपी में अध्यक्षों का समय-समय पर चयन. इस वक्त के बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा एक वक्त में बूथ लेवल के कार्यकर्ता होते थे. यानी लोगों में यह संदेश जाता है कि बीजेपी में एक आम कार्यकर्ता भी अध्यक्ष बन सकता है. यानी बीजेपी में पीएम का चेहरा और पार्टी का अध्यक्ष अलग-अलग हो सकता है, मगर क्या बाकी दलों या कहें कांग्रेस में यह संभव है.

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अब सवाल ये है कि क्या है पीके का कांग्रेस प्लान. माना जा रहा है कि पीके ने 4 M एम पर जोर दिया है. ये एम हैं, मैसेज, मैसेंजर, मिसनरी और मैकेनिक्स. यानी लोगों तक क्या मैसेज या संदेश पहुंचाना है. कौन उसे जनता तक ले कर जाएगा, क्या तरीका होगा जिससे लोगों तक पहंचा जाए और किस तरह से इन सबसे मिलने वाले अनुभव और आंकड़ों से लाभ उठाया जाए.

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दूसरी बात प्रशांत किशोर का मानना है कि कांग्रेस को हिंदू धर्म और हिंदुत्व के की बहस में नहीं पड़ना चाहिए. तीसरी बात बीजेपी को उनके उग्र राष्ट्रवाद में मात देने के लिए योजना बनाना जैसे कि आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल तिरंगा यात्रा करते हैं. पंजाब में भगत सिंह और अंबेडकर की तस्वीरें लगाते हैं. दिल्ली में अंबेडकर पर हफ्तों तक संगीत के प्रोग्राम चलाना ठीक कुछ इसी तरह. 

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पीके का यह भी मानना है कि कांग्रेस जैसा दल जिसने आजादी की लड़ाई लड़ी धीरे-धीरे अपने आर्दशों को भूलती गई. सरदार पटेल को बीजेपी ले गई और बाकियों को बाकी दल. हालात ऐसे हैं कि कांग्रेस जवाहर लाल नेहरू के पक्ष में उतना नहीं बोलती जितना उन्हें बोलना चाहिए. यानी पीके के प्लान में उग्र राष्ट्रवाद पर बीजेपी की काट के लिए तर्क हैं. प्रशांत किशोर का यह भी मानना है कि कांग्रेस को चलाने की जिम्मेवारी और प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार अलग अलग होना चाहिए यानी गांधी परिवार का एक व्यक्ति दोनों पदों पर नहीं होना चाहिए. मगर सबसे बड़ी बात है कि कांग्रेस जो कहती है कि उसके 4.5 करोड सदस्य हैं, जिसमें सवा 2 करोड़ डिजिटल रूप में जुड़े हैं, जिसके पास 138 साल का इतिहास है और जिसने 50 साल से ऊपर तक देश पर राज किया है आज आखिर ऐसे हालात में क्यों है, जहां उसके पास लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद भी नहीं है. इन्हीं सवालों का जवाब ढूंढ रहे हैं प्रशांत किशोर.

वैसे, यह भी तय हुआ है कि कांग्रेस अगले महीने राजस्थान में एक चिंतन शिविर भी करेगी.अब देखते हैं मौजूदा दौर में अपनी ही पार्टी के अंदर से उठती आवाजों  या G-23 जैसे गुटों में बंटी कांग्रेस की नैया क्या पीके पार लगा पाएंगे. क्या पीके कांग्रेस को बदल पाएंगें या कांग्रेस पीके को ?

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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