पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एनडीटीवी से कहा कि वो बीजेपी में नहीं जा रहे हैं लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि वो कांग्रेस से भी इस्तीफा देंगे. मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद से ये कयास लगाए जा रहे हैं कि कैप्टन का अगला कदम क्या होगा? क्या वो किसी पार्टी का दामन थामेंगे? क्योंकि ऐसा नहीं है कि कैप्टन हमेशा से कांग्रेस में रहे हैं. राजीव गांधी कैप्टन को कांग्रेस में लेकर आए थे. दोनों एक साथ दून स्कूल में थे और कैप्टन 1980 में लोकसभा का चुनाव जीते थे. मगर 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी थी और अकाली दल में चले गए थे. फिर 1992 में अकाली दल से निकल कर शिरोमणि अकाली दल पैंथिक बनाया जिसका विलय 1998 में कांग्रेस में हुआ. इसका मतलब ये हुआ कि कैप्टन अपनी पार्टी भी बना चुके हैं और दूसरे दलों में भी रह चुके हैं. फिर इस बार कैप्टन यह क्यों कह रहे हैं कि वो बीजेपी में नहीं जाएंगे. उनके पास आम आदमी पार्टी में भी जाने का विकल्प है. यही सबसे बड़ा सवाल है कि आखिरकार कैप्टन का गेम प्लान क्या है?
आखिर कैप्टन और गृह मंत्री अमित शाह के बीच हुई मुलाकात में क्या हुआ? क्या खिचड़ी पकी है वहां पर? जो खबरें वहां से आ रही हैं उसके अनुसार कैप्टन कोई नई पार्टी नहीं बनाने जा रहे हैं और जैसा कि उन्होंने खुद कहा है वो बीजेपी में नहीं जा रहे हैं. कैप्टन का गेम प्लान है अखिल भारतीय जाट महासभा को पुनर्जीवित करना. ये जाटों का एक बड़ा संगठन है जिसके अध्यक्ष 2013 में कैप्टन बनाए गए थे और अभी भी हैं. यदि इस संस्था में जान फूंकी जाए तो तीन राज्यों के किसानों को खुश किया जा सकता है, वो हैं पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश. अब कैप्टन के जिम्मे है कि इस जाट महासभा के जरिए इन तीनों राज्यों में किसानों से जुड़ा जाए और उनका नेटवर्क खड़ा किया जाए.
बीजेपी नेतृत्व ने कैप्टन को यह भी कहा है कि वो फिलहाल के लिए पंजाब को भूल जाएं क्योंकि बीजेपी को लगता है कि यदि कैप्टन बीजेपी में आ भी जाते हैं तो बहुत फर्क नहीं पड़ेगा. चुनाव में कैप्टन को लगता है कि यदि बीजेपी गए तो जो सहानुभूति अभी मिल रही है, पंजाब में वो भी गंवा देंगे, भले ही कैप्टन अपनी सीट जीत जाएं. दरअसल, बीजेपी का टारगेट उत्तर प्रदेश और हरियाणा है. उत्तर प्रदेश में बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है, क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सीटें ही तय कर देंगी कि लखनऊ की गद्दी पर कौन बैठता है?
गेम प्लान के अनुसार जब कैप्टन इस महासभा का संगठन दुबारा से खड़ा कर लेंगे फिर सरकार उनसे बातचीत करने के लिए किसानों की एक समिति बनाएगी. उस समिति को यह अधिकार होगा कि वो अन्य किसान संगठनों से बातचीत करें और अपनी सिफारिश सरकार को भेजे. अब गेम प्लान ये है कि ये समिति, जाहिर है जिसका अध्यक्ष कैप्टन होंगे, सरकार से यह कहेगी कि किसानों के एमएसपी यानी न्यूनतम सर्मथन मूल्य तो अपनी उपज का मिलना ही चाहिए. अब सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसान के फसल को सरकार खरीदे या कोई व्यापारी उसे समर्थन मूल्य के नीचे नहीं खरीद सकता है. अब ये कैसे होगा वो तय होना बाकी है क्योंकि सरकार ने कैप्टन से ये भी कहा है कि तीनों कानून तो वापिस नहीं होंगे.
यानी उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले सरकार ने किसान आंदोलन को कमजोर करने और उसकी हवा निकालने के लिए कैप्टन को एक गेम प्लान दिया है. देखना होगा कि कैप्टन इस खेल को जीत पाते हैं या नहीं. फिलहाल कांग्रेस की लड़ाई तो हार गए हैं. अब जब दिल्ली कैप्टन के साथ है तो क्या पता किसान आंदोलन का मैच वो दिल्ली के गेम प्लान के सहारे जीत जाएं.
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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